खरी-खरी

देश है मजबूत… तो क्यों लोग देश छोडऩे को मजबूर

देश का खाते हैं… देश में नाम कमाते हैं… देश में पढ़ते हैं… देश में पलते-बढ़ते हैं… लेकिन जब कुछ बन जाते हैं… जिनके भविष्य संवर जाते हैं… वो देश छोडक़र चले जाते हैं… और उन्हें हम प्रवासी कहकर गले लगाते हैं… पिछले 11 सालों में 16 लाख लोगों ने इस देश की नागरिकता छोडक़र विदेशों को अपना बना लिया… जिन लोगों ने देश छोड़ा जाहिर है, वो फकीर तो थे नहीं… उन्होंने इस देश में कमाया… किसी ने ज्ञान पाया… डॉक्टर, इंजीनियर बनकर ख्याति को पाया… उद्यमी, उद्योगपति बनकर पैसा कमाया और जब संपन्नता का शिखर पाया तो देश से पीछा छुड़ाया…आकंडों के लिहाज से देखें तो, जैसे-जैसे देश समृद्ध होता गया… मजबूत बनता गया, वैसे-वैसे इस देश का अमीर या तो मगरूर या फिर मजबूर होता गया और देश छोड़ता गया… वर्ष 2015 से हर साल सवा लाख से ज्यादा लोग देश छोड़ते रहे और यह आंकड़ा पिछले वर्ष सवा 2 लाख पर पहुंच गया… अडानी मामले पर चल रही बहस में प्रधानमंत्री ने छाती ठोककर कहा कि देश मजबूत हुआ… देश के लोग भी यह मानते हैं… लेकिन यह भी सच है कि पैसा कमाने वाला देश छोडऩे के लिए मजबूर हुआ… इन लोगों के देश छोडऩे के दो कारण हो सकते हैं… पहला उनकी संपन्नता, दूसरा देश की नीतियां…बढ़ता भ्रष्टाचार… जातीय वैमनस्यता, भविष्य को लेकर घबराहट और कानून की पेचीदगियां… देश में अफसरशाही बढ़ती जा रही है… राजनीति रौब जमा रही है… नीतियां हर दिन बदली जा रही हैं… एकरूपता और समानता की खाई बढ़ती जा रही है… सरकारी खजाना भरता जा रहा है… आम आदमी कंगाल होता जा रहा है… बेरोजगारियां बढ़ रही हैं और उनका बोझ उद्योगपतियों पर लादा जा रहा है… गरीबों को मुफ्त बिजली बांटी जा रही है… कीमत पैसे वालों से वसूली जा रही है… करों की पेचीदगियां व्यापार के लिए संकट बनती जा रही है… ऐसे में भविष्य की असुरक्षा की भावनाएं देश के लोगों को बाहर का रास्ता दिखा रही है… सच तो यह है कि जो सक्षम है, वो देश छोडक़र जा रहे हैं, लेकिन देश में रहने वाले लोग कसमसा रहे हैं… देश आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है, लेकिन यहां रहने वाला यदि मजबूर लग रहा है तो सरकार को समय रहते संभलना चाहिए… विकास तो हो रहा है पर विश्वास को भी परखना चाहिए… देश से भय, डर और दहशत का माहौल मिटना चाहिए… जनप्रतिनिधियों को जनता तक पहुंचना चाहिए… उनके दर्द की आवाज बनना चाहिए और सरकार को भी नेताओं की बात सुनना चाहिए… करों का बोझ, अफसरों का आतंक मिटना चाहिए… कानून की हद तय होना चाहिए… देश में लोकतंत्र होना ही नहीं लगना भी चाहिए… देश चाहे जितना मजबूत हो पर देशवासी मजबूत होना चाहिए…

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