खरी-खरी

शिक्षिका की चीख में खूब रोया इंदौर का विकास… आग में राख हुआ कानून का दंभ….

विकास का दंभ और शांति भंग… सुकून का अंत…संस्कार की मौत… पिशाचों का शंखनाद… आतंक का कोहराम… मौत का तांडव… यह इन्दौर है या तबाही-बर्बादी और चीखों की ओर बढ़ता शहर… ऐसा है प्रदेश के मुखिया के सपनों का शहर… जहां है दहशत… भय और सिहरन का कहर…एक शिक्षिका को एक दुष्ट ने कॉलेज में घुसकर जिंदा जला दिया… जिसने इस शहर में ज्ञान का सवेरा किया… उसके घर को अंधकार में डुबा दिया… परिवार की रोशनी को मिटा दिया… बच्चों को अनाथ बना दिया… और हम विकास के नाम पर सडक़ों की चौड़ाई नाप रहे हैं… मेट्रो ट्रेन पर इतरा रहे हैं… ब्रिजों की कतार लगा रहे हैं…विकास के गीत गा रहे हैं, लेकिन इस शहर की शांति के विनाश पर जरा भी नहीं शरमा रहे हैं… वो पहले भी चाकूबाजी में गिरफ्तार हो चुका है… वह पहले भी शिक्षकों को धमका चुका है… उसके खिलाफ पुलिस में पहले भी शिकायतें हो चुकी हैं, लेकिन वो फिर भी छुट्टा घूम कर आतंक फैलाता रहा…और इस कदर दुर्दांत बन गया कि कालेज में पेट्रोल भरकर लाया और शिक्षिका को जिंदा जला डाला… शहर में खुले में तो पेट्रोल बेचने पर पाबंदी है ना… फिर उसे खुला पेट्रोल कैसे मिल गया… कैसे वो कॉलेज पहुंच गया…कैसे वो ऐसी हिम्मत कर पाया…गुंडों के शहर में तो पुलिस कमिश्नरी बन चुकी है ना… केवल गुंडों को पकडऩे के ही नहीं अब तो उन्हें जेल में रखने के अधिकार भी पुलिस को मिल गए हैं, फिर वो आजाद कैसे घूमता रहा…कमिश्नरी क्या केवल तमगे लगाने… रूतबा बढ़ाने… पदनाम में आकर्षण लाने के लिए है क्या…पुलिस का ओहदा भले ही बढ़ गया हो पर खाकी वर्दी आज भी शरीफों को कानून सिखाने, जुल्म ढाने और रौब झाडऩे का काम कर रही है…हर दिन शहर में चाकूबाजी हो रही है… महिलाएं डरती हुईं जिंदगी जी रही हैं…कारोबारी सहमे हुए हैं… सूदखोर आतंक फैला रहे हैं, लेकिन हमारा कानून भीगी बिल्ली की तरह दुबका हुआ है… चंद दिनों के लिए गुंडों पर रौब दिखाया… घरों पर बुलडोजर चलाया, कुछ पुरानों को मिटाया और नयों को पनपाया… पुलिस भी क्या करे… कभी वह प्रवासी भारतीयों की तिमारदारी में झोंकी जाती है… कभी इन्वेटर्स को संभालती है…कभी जी-20 की मेजबानी में जुट जाती है… कभी चौराहों पर चालान बनाती है तो कभी नेताओं को खुश करने में समय बिताती है… शहर के नेता देखता चालो और टिकट बचा लो में लगे हैं…पार्षद गली-मोहल्ले की सडक़, पानी, बिजली में घुसे हैं… दमदार और असरदार नेता इस शहर में अब कहां बचे हैं…इसलिए हमारे शहर में हर दिन पांच-सात दुखियारे आत्महत्या करते हैं… फरियाद लेकर सीधे भगवान के पास पहुंचते हैं… अखबार खबर बनाते हैं और समाज के लोग उन्हें जिंदगी से हार मानने वाले कायर बताते हैं… लेकिन उनका गम… उनकी तकलीफ… उनकी मौत तक पहुंचने की मजबूरी समझ नहीं पाते हैं… हम बढ़ते जा रहे हैं…सीमाएं बढ़ा रहे हैं… इन्दौर को उज्जैन, देवास, महू तक एक कर बड़ा बनाने की जुगत में भिड़े जा रहे हैं, लेकिन इसी शहर के कोने में लोग दहशत, खौफ की जिंदगी बिता रहे हैं…वहशी दरिंदे बच्चों से दुष्कर्म का कारनामा दिखा रहे हैं… शिक्षकों को जला रहे हैं… अदालतें फटाफट सजा देकर इंसाफ का दंभ भर रही हैं, लेकिन ऐसे वहशियों को सीखचों में रखने और उनकी हिमाकतों को रोकने की कोशिश में नाकाम हो रही है… पुलिस पकड़ती है तो दरिंदे कानून से छूट जाते हैं और किसी शरीफ का घर, जीवन, परिवार, आशाएं, उम्मीदें लूट ले जाते हैं… वो शिक्षिका जलकर भी ज्ञान दे रही है… जागो, उठो, इस शहर को बचा लो की पुकार लगा रही है…वक्त है पुलिस, अदालतें, नेता और जनता आगे आए… इस शहर को बचाए, वरना इमारतें खड़ी रह जाएगी… इंसानियत मिट जाएगी…

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