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मालदीव में भारत विरोधी मुहिम का चेहरा मोइज्जू की जीत के मायने

– संजीव

पूर्व और पश्चिमी देशों के बीच मुख्य शिपिंग मार्ग पर स्थित हिंद महासगर में 1100 से ज्यादा छोटे-बड़े द्वीपों से बने मालदीव के चुनाव नतीजों ने प्याली में तूफान की रंगत ला दी है। प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के उम्मीदवार और देश के मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह चुनाव हार गए हैं। भारत समर्थक माने जाने वाले मोहम्मद सोलिह को पीपुल्स नेशनल कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद मोइज्जू ने हराया है। राजधानी माले के मेयर मोइज्जू को चीन का प्रबल समर्थक माना जाता है। मोइज्जू हमेशा से चीन के साथ मजबूत संबंधों पर जोर रहे हैं।

मालदीव के चुनावी नतीजों ने भारत की चिंता इसलिए बढ़ा दी है क्योंकि भारत और चीन, दोनों ही देशों के लिए मालदीव की भौगोलिक स्थिति का रणनीतिक महत्व है। दोनों देश दशकों से यहां अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास करते रहे हैं। चीन बीआरआई के साथ कर्ज व तेल आपूर्ति के जरिये अपना प्रभाव जमाता रहा है तो भारत की तरफ से अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट यहां चलाए जा रहे हैं। यही वजह से दोनों देश यहां की चुनावी प्रक्रिया पर गहरी नजर रख रहे थे। 8 सितंबर को शुरुआत में पहले दौर के मतदान तक यहां न तो मोइज्जू जीते न सोलिह ने। चुनावी जीत के लिए अनिवार्य 50 फीसदी मत दोनों में से किसी को नहीं मिले। शनिवार को हुए चुनाव में मोइज्जू ने अपने प्रतिद्वंद्वी इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को 18 हजार मतों से हरा दिया। मोइज्जू को 53 प्रतिशत और सोलिह को 46 प्रतिशत मत मिले।

मोइज्जू ने अपने चुनावी मुहिम के दौरान भारत विरोध को यह कहते हुए हवा दी थी कि सत्ता में आने पर देश से भारतीय सैनिकों को हटाएंगे और मालदीव के व्यापारिक संबंधों को संतुलित करेंगे। पेशे से इंजीनियर रहे 45 वर्षीय मोइज्जू सात साल तक आवास मंत्री रहे हैं और जब उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया, उस समय वे राजधानी माले के मेयर थे। मोइज्जू ने ब्रिटेन से सिविल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है।


दरअसल, मोइज्जू अचानक बदले राजनीतिक घटनाक्रमों की सीढ़ियों पर चढ़कर सत्ता तक पहुंचे हैं। 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप के चलते मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन को सत्ता छोड़नी पड़ी। उस समय मोइज्जू देश के कंस्ट्रक्शन मिनिस्टर थे। यामीन फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोप में 11 साल की जेल की सजा काट रहे हैं। यामीन के जेल जाने के बाद मोइज्जू को अपनी पार्टी का नेतृत्व संभालने का मौका मिला। यामीन के राष्ट्रपति रहते ही मालदीव बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) बना था। इस दौरान चीन मालदीव में पांव जमाने में कामयाब रहा। उस दौर में विपक्ष में रहे सोलिह लगातार आरोप लगाते रहे थे कि यामीन ने मालदीव को चीन के कर्ज जाल में धकेल कर रख दिया। मालदीव पर चीन का 23 हजार करोड़ का कर्ज है।

भ्रष्टाचार के मामले में फंस कर सत्ता गंवाने वाले यामीन का चीन प्रेम मोइज्जू के रूप में जारी रहा। मोइज्जू ने चीन समर्थन को और मजबूत किया। 2021 के चुनाव में मोइज्जू माले शहर के मेयर बने और शहर के विकास को लेकर चीन के साथ 16 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके तहत माले एयरपोर्ट से जोड़ने वाले एक पुल का निर्माण कराया जाएगा। ब्रिज को फ्रैंडशिप ब्रिज भी कहा जाता है।

लिहाजा, मोइज्जू जब विपक्षी गठबंधन की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने तो उन्होंने मालदीव में भारत विरोध को लगातार हवा दी। पार्टी की तरफ से इंडिया आउट कैंपेन का सहारा लिया। 2018 में राष्ट्रपति चुने गए सोलिह पर उन्होंने मालदीव में भारत को मनमर्जी से काम करने देने का आरोप लगाया। दरअसल, भारत ने मालदीव को 2010, 2013 में दो हेलिकॉप्टर और 2020 में एक छोटा विमान उपहार के रूप में दिया। भारत का कहना है कि इस विमान का इस्तेमाल खोज एवं बचाव अभियानों के लिए या मरीजों को एक स्थान से दूसरे जगह ले जाने में किया जाना था।

इसे लेकर 2021 में जब मालदीव की सेना की तरफ से बताया गया कि इस विमान के संचालन व उसकी मरम्मत के लिए भारतीय सेना के करीब 75 जवान देश में मौजूद हैं तो सियासी तूफान मच गया। मोइज्जू की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंडिया आउट मुहिम शुरू कर भारतीय सुरक्षा बलों को मालदीव छोड़ने की मांग शुरू कर दी। जबकि सोलिह का कहना था कि मालदीव में भारतीय सेना की मौजूदगी केवल एक शिपयार्ड बनाने तक सीमित है और देश की अखंडता व संप्रभुता से कोई वास्ता नहीं है।

यह बात सही है कि सोलिह के सत्ता में आने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते मजबूत हुए। सोलिह के रहते मालदीव में चीन की महत्वाकांक्षाओं को लगातार झटका लगता रहा। भारत इस क्षेत्र में चीन के मुकाबले बीस साबित हो रहा था। सोलिह के सत्ता में रहते भारत ने मालदीव में कई प्रोजेक्ट शुरू किए थे जो यामीन के चीन समर्थक प्रशासन का अंत था। लेकिन ताजा चुनाव नतीजों के बाद भारत को मालदीव में बदले राजनीतिक परिदृश्य में नई सोच के साथ आगे बढ़ना होगा।

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