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22 साल पहले की वो घटना, जब कांग्रेस अध्यक्ष पर सोनिया गांधी को मिली चुनौती

नई दिल्ली। 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद कुछ वक्त के लिए गांधी परिवार ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी। ऐसे में नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री रहे और कांग्रेस अध्यक्ष भी। राव की कांग्रेस में बढ़ती पकड़ के बाद गांधी परिवार को महसूस हुआ कि अब मैदान में उतरने का वक्त है तो सोनिया गांधी के कहने पर सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए। हालांकि एक साल बाद ही केसरी को हटाकर सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया। लेकिन, यहां हम बात कर रहे हैं दो साल बाद साल 2000 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की।

यह वो दौर है जब राजीव गांधी के पूर्व सलाहकार और तत्कालीन सांसद जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पर चुनौती दे डाली तो पार्टी हलकों में कौतूहल मच गया। उन्हें मनाने की लाख कोशिशें हुई लेकिन, वो टस से मस नहीं हुए। सभी को मालूम था कि सोनिया ही चुनाव जीतेंगी पर, असली चर्चा तो यह थी कि उनके खिलाफ उठे जितेंद्र प्रसाद को कितने वोट मिलेंगे? साल 1998 में सोनिया गांधी पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। यह एक ऐसा चुनाव था, जिसमें सीताराम केसरी को पद से हटाकर सोनिया को कुर्सी पर बैठाया गया। उन्हें इस कदर साइडलाइन किया गया कि वो वापस नहीं लाइमलाइट में नजर नहीं आए।

साल 2000 में सोनिया गांधी के सीताराम केसरी के शेष कार्यकाल को पूरा करने के बाद कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष चुनना था। केसरी के निष्कासन और तीन विद्रोहियों (शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर) के निष्कासन को देखते हुए सोनिया गांधी के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने की उम्मीद थी, हों भी क्यों न आखिरकार 1998 में पार्टी की सबसे शक्तिशाली निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने उन्हें अध्यक्ष जो बनाया था।

जितेंद्र प्रसाद के कदम से मच गई सनसनी
साल अक्टूबर 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव हुए। नामांकन के आखिरी दिन 29 अक्टूबर को जितेंद्र प्रसाद ने नामांकन पर्चा दाखिल करके पार्टी हलकों में सनसनी मचा दी। किसी को उम्मीद नहीं थी सोनिया गांधी के खिलाफ कोई पार्टी नेता खड़ा होने की हिम्मत करेगा।
दरअसल, इंदिरा गांधी दौर से पहले कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव होता था लेकिन, इंदिरा ने अपने कार्यकाल में पार्टी की कमान भी अपने पास संभाल रखी थी। राजीव गांधी ने भी यही किया। 1991 में नरसिम्हा राव के पास भी अध्यक्षी का जिम्मा था। साल 2000 में यह दूसरा मौका था जब कांग्रेस पार्टी में चुनाव हो रहे थे। जितेंद्र प्रसाद पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी द्वारा काफी दबाव भी डाला गया लेकिन, वो टस से मस नहीं हुए।


राजेश पायलट भी थे वंशवाद के खिलाफ
जितेंद्र प्रसाद की तरह राजेश पायलट भी उन इक्का-दुक्का नेताओं में से एक थे जो कांग्रेस में वंशवाद की राजनीति के खिलाफ थे। 1997 में उन्होंने सीताराम केसरी के खिलाफ अध्यक्षी का चुनाव भी लड़ा। हालांकि यह और बात है कि उन्हें जीत नसीब नहीं हो पाई। जून 2000 में एक सड़क दुर्घटना में पायलट की मृत्यु हो गई। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पायलट भी सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्षी का चुनाव जरूर लड़ते। लेकिन, इस बार सोनिया गांधी के सामने थे जितेंद्र प्रसाद।

कांग्रेस नेताओं ने बनाई दूरी
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक ब्राह्मण जमींदार परिवार में जन्मे जितेंद्र प्रसाद के पारिवारिक संबंध पश्चिम बंगाल में टैगोर और पंजाब के कपूरथला राज्य से भी थे। 1985 में, राजीव गांधी ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का महासचिव और बाद में पार्टी में अपना राजनीतिक सचिव बनाया। वो राजीव गांधी के अलावा नरसिम्हा राव कार्यकाल के वक्त भी राजनीतिक सलाहकार के तौर पर काम कर चुके थे।

प्रसाद पार्टी के उपाध्यक्ष भी रहे थे और सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए वह सीडब्ल्यूसी के सदस्य थे, उनका यूपी और कुछ अन्य राज्यों में अच्छा समर्थन आधार था। पार्टी में अध्यक्ष चुनाव में समर्थन की शुरुआत उन्होंने चेन्नई के पास पेरा्म्बदूर के उस स्मारक स्थल से की, जहां राजीव की हत्या हुई थी। हालांकि जब वह चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरे तो उन्हें स्वागत करने के लिए एक भी कांग्रेसी नेता नहीं पहुंचा।

असंतुष्ट नेता थे लेकिन पार्टी नहीं छोड़ी
जितेंद्र प्रसाद एक असंतुष्ट नेता थे जो पार्टी के भीतर बदलाव लाना चाहते थे। 1999 में उन्होंने अपने दोस्त शरद पवार के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया था। यह पहली बार नहीं था कि उन्होंने कांग्रेस नहीं छोड़ने का फैसला किया था। वो कहते थे, “मेरे पास सोनिया गांधी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं है। मैं असंतोष और आंतरिक लोकतंत्र के अधिकार को बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं।”

एकतरफा चुनाव
जैसा कि सर्वविदित था, सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतीं। 9 नवंबर 2000 के चुनाव में 7,542 वैध मतों में से प्रसाद को सिर्फ 94 मिले। सोनिया को प्रदेश कांग्रेस समितियों (PCC) के प्रतिनिधियों द्वारा डाले गए 7,448 या 98.75 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

कितनी बदली कांग्रेस?
उस चुनाव को 22 साल हो चुके हैं। और इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ है। सोनिया अपने बेटे राहुल गांधी के दो साल के कार्यकाल को छोड़ने के बाद शीर्ष पर बनी हुई हैं। राहुल गांधी इस वक्त भारत जोड़ो यात्रा में बिजी हैं और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए ना कह चुके हैं। इस बार पार्टी चीफ पद पर चुनाव के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरूर और केएन त्रिपाठी मैदान में हैं। यह तो भविष्य ही बताएगा कि कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कौन काबिज होता है और इसे चलाता कौन है?

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