टेक्‍नोलॉजी

इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत में आएगी कमी! EV मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने लिया ये फैसला

नई दिल्ली। सरकार ने भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में बढ़ावा देने के लिए शुक्रवार को इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीति को मंजूरी दे दी। इस नीति के तहत अगर कोई कंपनी न्यूनतम 50 करोड़ डॉलर (4,150 करोड़ रुपये) के निवेश के साथ देश में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाएगी तो उस कंपनी को शुल्क में रियायतें दी जाएंगी। ऑटो सेक्टर के जानकारों का कहना है कि सरकार का यह फैसला आम लोगों को भी फायदे कराएगी। दुनियाभर की कंपनियां अब भारत की ओर रुख करेंगी। इससे यहां प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इससे ने अच्छी ईवी का निर्माणा होगा बल्कि कीमत में भी कमी आएगी। वैसे भी पेट्रोल गाड़ियों के मुकाबले ईवी की कीमत में लगातार कमी आ रही है। आने वाले दिनों में और तेजी से Electric vehicle की कीमत गिरने की संभावना है।

भारत में टेस्ला के आने का रास्ता साफ हुआ
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि ईवी नीति के जरिये भारत को ईवी के मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में बढ़ावा देने और टेस्ला समेत विभिन्न वैश्विक ईवी मैन्युफैक्चरिंग से निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। इस नीति के तहत ई-वाहनों की विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने वाली कंपनियों को कम सीमा शुल्क पर सीमित संख्या में कारों को आयात करने की अनुमति दी जाएगी। इस रियायत के लिए कंपनी को न्यूनतम 50 करोड़ डॉलर (4,150 करोड़ रुपये) का निवेश करना जरूरी होगा जबकि निवेश की कोई अधिकतम सीमा नहीं होगी।


आयात करने पर भी राहत मिलेगी
बयान के अनुसार, आयात के लिए स्वीकृत ईवी की कुल संख्या पर शुल्क में दी गई रियायत उस कंपनी की निवेश राशि या पीएलआई योजना के तहत प्रोत्साहन राशि 6,484 करोड़ रुपये में से जो भी कम हो, तक सीमित होगा। इसके मुताबिक, अगर निवेश 80 करोड़ डालर या उससे अधिक है, तो प्रति वर्ष अधिकतम 8,000 की दर से अधिकतम 40,000 ईवी के आयात की अनुमति होगी। वार्षिक आयात सीमा से बची रह गई इकाइयों को आगे बढ़ाया जा सकेगा। योजना दिशानिर्देशों के तहत परिभाषित डीवीए (घरेलू मूल्यवर्धन) और न्यूनतम निवेश मानदंड हासिल न करने की स्थिति में बैंक गारंटी लागू की जाएगी। कंपनी की तरफ से जताई गई निवेश प्रतिबद्धता को छोड़े गए सीमा शुल्क के बदले में बैंक गारंटी से समर्थित होना होगा।

‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा मिलेगा
मंत्रालय ने कहा कि इस नीति से भारतीय उपभोक्ताओं को नवीनतम तकनीक तक पहुंच प्रदान की जा सकेगी। यह ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देगी और ईवी कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर ईवी परिवेश को मजबूत करेगी। इससे उत्पादन की उच्च मात्रा, अर्थव्यवस्था के विस्तार, उत्पादन की कम लागत और आयात में कटौती, कच्चे तेल की आयात कम होगी, व्यापार घाटा कम होगा, विशेषकर शहरों में वायु प्रदूषण कम होगा और स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

3 साल का समय दिया जाएगा
बयान में कहा गया कि यह नीति प्रतिष्ठित वैश्विक ईवी निर्माताओं द्वारा ई-वाहन क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए तैयार की गई है। नीति के अनुसार, एक कंपनी को भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने और ई-वाहनों का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने के लिए तीन साल का समय मिलेगा, और अधिकतम पांच साल के भीतर 50 प्रतिशत घरेलू मूल्य संवर्धन हासिल करना होगा।

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