उत्तर प्रदेश बड़ी खबर

PM मोदी के क्षेत्र में बाढ़ से हालात बेकाबू, ग्रामीण दे रहे मतदान बहिष्कार की धमकी

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (Varanasi) में बाढ़ के कहर (flood havoc) से कई गांव जूझ रहे हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुई बारिश और बांधों से छोड़े गए पानी की वजह से यूपी के कई जिलों में नदियां उफान पर हैं. बाढ़ के कहर (flood havoc) से वाराणसी के गांव (Villages of Varanasi) भी अछूते नहीं हैं. वाराणसी में गंगा नदी, खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और अभी भी लगातार पानी का बढ़ाव जारी है।

बाढ़ की वजह से न केवल शहरी इलाकों में बल्कि गांवों में भी जलप्रलय जैसे हालात पैदा हो गए हैं. सब्जियों की खेती के लिए खास तौर से मशहूर वाराणसी के रमना गांव की स्थिति तो ऐसी है कि यहां आधा से ज्यादा गांव जलमग्न हो चुका है. खेतों के ज्यादातर हिस्सों में गंगा का पानी भर गया है, जहां नाव चल रही है. वहीं ग्राम प्रधान की अगुवाई में ग्रामीणों ने तटबंध न बनने की स्थिति में, 2022 विधानसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार की चेतावनी भी दे दी है।


वाराणसी के रोहनिया विधानसभा का रमना गांव लंका क्षेत्र में आता है. यूं तो सब्जियों की पैदावार और खासकर सेम की खेती के लिए यह इलाका न केवल भारत, बल्कि विदेश तक में ख्याति कमा चुका है. पूरे पूर्वांचल के लिए यह गांव सब्जी की सप्लाई का जरिया भी है. बाढ़ के बेकाबू हालात में ये गांव इन दिनों इसलिए चर्चा में है, क्योंकि यहां के खेतों में सब्जियां नदारद हैं. खेतों में नाव चल रही है. 40 हजार से ज्यादा की आबादी हर बार बाढ़ की विभीषिका में इन्हीं मुश्किलों का सामना करती है।

आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य उपकेंद्र भी डूबे
गांव को जोड़ने वाले दो मार्ग, पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं. सिर्फ एक ही सड़क के जरिए गांव में आवागमन हो पा रहा है. वाराणसी में गंगा में लगातार बढ़ाव जारी है. गंगा खतरे के निशान से आधे मीटर से भी ऊपर बह रही है. बाढ़ की वजह से रमना गांव का आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य उपकेंद्र, सामुदायिक शौचालय और गंगा किनारे बना अंत्येष्टि स्थल जलमग्न हो चुका है.

खेती पर निर्भर है 70 फीसदी आबादी
लगभग 40 हजार आबादी वाले गांव में करीबन 15 हजार मतदाता है. गांव की 70 प्रतिशत आबादी सब्जियों की खेती पर ही निर्भर है. गंगा में आई बाढ़ के चलते आधे से ज्यादा खेत डूब चुके हैं. नाव के सहारे किसानों को अपने खेतों में जाना पड़ रहा है. कहीं-कहीं थोड़ी सब्जियां बची हैं, जिसे बाजार में ले जाकर वे बेच रहे हैं.

बाढ़ से तबाह हुई सब्जी की खेती
गांव के ही एक किसान अजित सिंह ने कहा कि खेत में केवल 30 प्रतिशत ही सब्जियां बच सकी हैं, जिन्हे तोड़कर ला रहें है. सुबह मंडी ले जाकर बेचने पर न जाने क्या दाम मिलेगा? एक अन्य किसान अमनदीप ने कहा कि करेला, सेम, नेनुआ और भुट्टे की खेती उन्होंने की थी. बाढ़ की वजह से केवल 30-35 फीसदी फसल ही बची है.

बाढ़ पीड़ितों का हाल जानने नहीं पहुंचे जन-प्रतिनिधि
जब बाढ़ की वजह से तबाह फसलों पर सरकारी मुआवजे की बात की गई तो एक ग्रामीण सुजीत सिंह ने कहा कि आपदा के बाद मुआवजे के लिए सर्वे अंग्रेजी हुकूमत की तरह होता है, जिससे कभी 200, 250 या 500 रुपये ही कुछ किसानों को मिल पाते हैं. उन्होंने बताया कि बगैर तटबंध बनाए उनके गांव में बाढ़ के पानी को रोका नहीं जा सकता. तटबंध बनाने के लिए सर्वे भी पहले हो चुका है. बाढ़ में इस बार कोई भी विधायक, मंत्री या अधिकारी उनके गांव में नहीं आया है. जबकि गांव में बाढ़ को आए एक सप्ताह से ज्यादा का वक्त बीत चुका है।

नहीं बना तटबंध तो वोटिंग का बहिष्कार
किसानों ने कहा कि उनके गांव की आबादी 40 हजार है. मतदाता लगभग 15 हजार हैं. ऐसे में अगर उनके गांव और गंगा के रास्ते तटबंध नहीं बनाया जाएगा तो वे अपने ग्राम प्रधान की अगुवाई में कड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर हो जाएंगे. लोग वोटिंग का बहिष्कार कर देंगे. त्रासदी की स्थिति यह रही कि बातचीत के दौरान ही कुछ लोग एक नन्हे बच्चे को प्लास्टिक के टब में बैठाकर बाढ़ की पानी को पार करते दिखे.

2013 से बांध बनाने की हो रही मांग
2013 में आई बाढ़ के बाद से ही तटबंध बनाने की बात हो रही है, लेकिन अभी तक तटबंध नहीं बनाया गया. अगर तटबंध रहता तो इस गांव में बाढ़ का कहर ऐसा नहीं देखने को मिलता. गांव के प्रधान अमित पटेल ने कहा कि उनके गांव से सब्जियों की सप्लाई पूरे पूर्वांचल में होती है. अभी किसान कोरोना काल से उबर नहीं पाए हैं. लॉकडाउन में भी उनके गांव के हजारों एकड़ में लगी फसल को सही दाम नहीं मिल सका.

करोड़ों की फसल बाढ़ में तबाह
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन लगने बाद से ही कई लोग अपने गांव लौट आए हैं और बटाई पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं. ऐसे में अब बारिश की वजह से पूरी फसल चौपट हो गई है. साल 2013, 2016, 2019 के बाद अब बाढ़ आई है. हर बार बाढ़ की वजह से हजारों एकड़ की फसल तबाह हो जाती है. गांव से सटे गांव टिकरी, शूलटंकेश्वर, नैपुरा में भी खेत डूब चुके हैं. ऐसे में कहीं भी फसल सुरक्षित नहीं रहने वाली है. अभी ढाई से तीन करोड़ की लगी खड़ी फसल बाढ़ के चलते खराब हो गई.

विधानसभा चुनाव में नहीं करेंगे वोट!
ग्राम प्रधान ने कहा है कि वे लगातार अधिकारियों के संपर्क में है और छानबीन हो रही है. अभी सिर्फ सर्वे हो रहा है. ग्राम प्रधान ने चेतावनी भी दी कि अगर इस बार भी उनके गांव में गंगा के पानी को रोकने के लिए तटबंध नहीं बना तो उनके साथ सभी गांव के लोग 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान का बहिष्कार करेंगे.

क्या है प्रशासन का जवाब?
वहीं रमना गांव में मिले सरकारी मदद के बारे में ग्राम सचिव लालबहादुर पटेल ने बताया कि गांव में मेडिकल टीम, पंचायत सचिव और लेखपाल की ड्यूटी लगाई गई है. उन्होंने बताया कि जमीन पर गांव में जनहानि नहीं हुई है. सिर्फ फसलों को नुकसान पहुंचा है. अगर भोजन की जरूरत पड़ती है तो सरकार उसके लिए तैयार है.

Share:

Next Post

विनेश फोगाट पर अनुशासनहीनता के आरोप, WFI ने किया सस्पेंड

Wed Aug 11 , 2021
नई दिल्ली। भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) ने टोक्यो ओलंपिक खेलों (Tokyo Olympic Games) में अभियान के दौरान अनुशासनहीनता (indiscipline) के लिए स्टार पहलवान विनेश फोगाट (Star wrestler Vinesh Phogat) को ‘अस्थाई रूप से निलंबित’ कर दिया है। साथ ही दुर्व्यवहार के लिए युवा सोनम मलिक (sonam malik) को नोटिस जारी किया है। पता चला है […]