नई दिल्ली। दुनिया का सबसे बड़ा मालवाहक जहाज एवर अलॉट हमारे पड़ोसी देश मलेशिया और श्रीलंका तो पहुंचता है पर यह हमारे देश के बंदरगाहों पर नहीं पहुंचता है। यह जहाज लंबाई के मामले में अमेरिका के इंपीरियल स्टेट बिल्डिंग के बराबर है। आइए जानते हैं दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद यह विशाल कंटेनर भारत का रुख क्यों नहीं करता?
भारत को दुनिया का निर्माण हब बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को देश में बंदरगाहों के अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के कारण झटका लग रहा है। बड़े कंटेनर जहाजों को आकर्षित करने में देश की अक्षमता मेक इन इंडिया के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा है।
भारतीय तटों पर मौजूद अधिकांश बंदरगाह एवर अलॉट जैसे जहाजों को संभालने के लिए पर्याप्त गहरे नहीं हैं। एवर अलॉट 400 मीटर लंबा दुनिया का सबसे बड़ा बॉक्सशिप है और इसमें 24,000 से अधिक बीस फुट के बराबर की इकाइयों को लोड करने की क्षमता है। एम्पायर स्टेट बिल्डिंग की लंबाई वाला एवर अलॉट जहाज हाल के महीनों में भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ-साथ मलेशिया जैसे देशों के बंदरगाहों पर पहुंचा, पर यह भारत नहीं पहुंचा। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत के लिए यह स्थिति वाकई अच्छी नहीं है।
भारत की सबसे बड़ी सरकारी कंटेनर हैंडलिंग सुविधा जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) के पास भी एवर अलॉट जैसे दुनिया के बड़े जहाजों को नेविगेट करने के लिए जरूरी 17 मीटर का ड्राफ्ट नहीं है। अरबपति गौतम अदाणी के समूह की ओर से संचालित मुंद्रा पोर्ट हालांकि ऐसे जहाजों को हैंडल करने का दवा करता है। 17,292-टीईयू एपीएल रैफल्स जनवरी 2022 में 13,159 टीईयू के साथ वहां पहुंचने वाला अब तक का सबसे बड़ा जहाज है।
ड्रूरी मैरीटाइम एडवाइजर्स के निदेशक शैलेश गर्ग ने कहा, “बड़े जहाजों को डॉक करने की सुविधा असल में अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करते हैं। हालांकि, अकेले जहाज का आकार बढ़ाने से भीतरी इलाकों से माल की आवाजाही में तेजी लाने में मदद नहीं मिलेगी।” उन्होंने कहा कि बंदरगाहों से गोदामों, कारखानों और दुकानों तक सड़क और रेल संपर्क में भी सुधार की जरूरत है।
2022 में भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, खराब शिपिंग कनेक्टिविटी ने वैश्विक मूल्य शृंखला से भारत के जुड़ने के मार्ग में बाधा डाली है। आरबीआई ने कहा कि देश ने जीवीसी भागीदारी सूचकांक में 34% स्कोर किया, जबकि 10 सदस्यीय दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ के लिए यह स्कोर 45.9% था। एक अलग रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में वियतनाम 50% स्कोर के साथ सबसे ऊपर था।
मुंद्रा पोर्ट ने वियतनाम की ओर से एक समान श्रेणी के जहाज का स्वागत करने के तीन साल बाद एपीएल रैफल्स की मेजबानी की। इससे पता चलता है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था व्यापार के बड़े हिस्से के लिए प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का किस हद तक जोखिम मोल रे रही है। विश्व बैंक समूह और एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस की ओर से संकलित सूचकांक में मुंद्रा भारत का सर्वोच्च रैंकिंग वाला बंदरगाह है। इस रैंकिंग में भारत को 48वां स्थान मिला है।
कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 14% से बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य प्रभावित हो रहा है। वैश्विक वस्तुओं के निर्यात में देश के हिस्से को 2027 तक 3% और 2047 तक 10% तक बढ़ाने के मोदी सरकार का लक्ष्य भी इससे प्रभावित हो रहा है यह फिलहाल 2.1% है।
एपी मोलर-मार्सक ए/एस ने ईमेल के जरिए पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, “भारत में मौजूदा बंदरगाह और टर्मिनल पर मौजूद बुनियादी ढांचा विशालकाय जहाजों की पूरी ताकत का उपयोग करने की संभावना को सीमित सीमित करते हैं। इनमें बंदरगाहों पर मौजूद ड्राफ्ट्स, कार्गो लोड और अनलोडिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले टर्मिनलों पर क्रेन और पोर्ट थ्रूपुट क्षमता शामिल हैं।”
मार्सक के अनुसार, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग लाइन है। यहां गौर करने वाली दूसरी बात यह है कि भारतीय आयातक और निर्यातक देश भर में फैले हुए हैं और उनके संचालन स्थल के करीब बंदरगाहसे कार्गो भेजने और प्राप्त में लागत और समय लगता है। मार्सक के अनुसार इस स्थिति में छोटे जहाज एक ही हब पर ध्यान केंद्रित करने की तुलना में अधिक बंदरगाहों पर जाने और छोटी मात्रा में माल का स्थानांतरण करने का विकल्प मुहैया कराते हैं।
ड्रूरी के गर्ग ने कहा, “समुद्री क्षमता का विकास चीन और दक्षिण पूर्व एशिया और अन्य क्षेत्रों में अन्य उभरते विनिर्माण केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। चीन के पास कहीं अधिक विकसित और कुशल बंदरगाह और रसद का बुनियादी ढांचा है।”
कंटेनर थ्रूपुट के संदर्भ में लंदन स्थित डेटा विश्लेषण फर्म सीईआईसी के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2020 तक चीन के लिए 245 मिलियन टीईयू की तुलना में भारत के मामले में यह महज 16 मिलियन टीईयू रहा है। वैश्विक कंटेनर बेड़े का केवल 0.7% 17 मीटर या गहरे ड्राफ्ट वाले जहाजों से युक्त है। ये बड़े जहाज यूरोप और चीन के व्यापार के लिए अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। यह एक ऐसा मार्ग है जिसका भारत स्वेज नहर और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच अपने बंदरगाहों के साथ हिस्सा बन सकता है।
दक्षिण भारत के केरल में विझिंजम बंदरगाह पर 20-24 मीटर के प्राकृतिक ड्राफ्ट के साथ गहरे समुद्र की सुविधा है। यह बड़े जहाजों को आकर्षित करने में सक्षम है। परियोजना का विकास कर रहे अदाणी समूह के प्रवक्ता रॉय पॉल ने कहा कि इसके 2024 तक परिचालन में आने की उम्मीद है। सरकार के मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के अनुसार महाराष्ट्र में एक और बंदरगाह जिसका 18 मीटर का नेचुरल ड्राफ्ट है 2028 में तैयार होने की उम्मीद है।
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