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देश के 12 राज्‍यों में बिजली संकट की आशंका, क्‍या रूस-यूक्रेन युद्ध का है असर, जानें वजह

नई दिल्ली। गर्मियां बढ़ने के साथ देश में बिजली संकट (power crisis) बढ़ सकता है। इसकी वजह कोयले की कमी है। बिजली कटौती की वजह से औद्योगिक गतिविधियां भी प्रभावित होने की आशंका है। देश की अर्थव्यवस्था कोरोना (economy corona) और लॉकडाउन से हुए नुकसान से उबरने की कोशिश कर रही है, ऐसे में ये संकट इस सुधार पर ब्रेक लगा सकता है।

इस वक्त बिजली संकट की क्या स्थिति है? किन राज्यों को इस संकट का समना करना पड़ रहा है? किस राज्य में बिजली संकट की क्या स्थिति है? सरकारों की संकट से निपटने की क्या तैयारी है? क्या आगे हालात और बिगड़ सकते हैं? रूस-यूक्रेन युद्ध का भी कोई असर इस संकट पर पड़ेगा क्या? छह महीने में दूसरी बार इस तरह के हालात क्यों बने? आइये जानते हैं…

इस वक्त बिजली संकट की क्या स्थिति है?
बीते एक हफ्ते में बिजली की मांग के मुकाबले आपूर्ति में 1.4 फीसदी की कमी आई है। जो अक्तूबर में आए संकट से ज्यादा है। उस वक्त मांग और आपूर्ति में एक फीसदी की कमी आई थी। उस वक्त देश में कोयले की कमी की वजह से ये संकट पैदा हुआ था। मार्च में मांग के मुकाबले आपूर्ति 0.5 फीसदी कम थी।



किन राज्यों को इस संकट का समना करना पड़ रहा है?
इस संकट का असर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात (Maharashtra, Gujarat) जैसे राज्यों में संकट दिखाई देने लगा है। आंध्र प्रदेश में ऑटोमोबाइल से लेकर दवा कंपनियों के प्लांट हैं, वहां बिजली की मांग के मुकाबले आपूर्ति में 8.7 फीसदी की कमी है। इसकी वजह से बिजली कटौती बढ़ी है। पावर प्लांट्स के पास एक अप्रैल को केवल नौ दिन की जरूरत के मुताबिक कोयले का स्टॉक रह गया था। जबकि, गाइडलाइन के मुताबिक ये स्टॉक 24 दिन का होना चाहिए।

किस राज्य में बिजली संकट की क्या स्थिति है?
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बिजली संकट बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश में 21 से 22 हजार मेगावाट बिजली की मांग है। जबकि, सिर्फ 19 से 20 हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति हो पा रही है। प्रदेश का सबसे बड़ा संयंत्र अनपरा में है। यहां केवल चार से पांच दिन का कोयला बचा है। रेल रैक से कोयले की आपूर्ति शुरू नहीं होने से स्थितियां और विकट हो रही हैं।

आंध्र प्रदेश के बिजली संकट की वजह से कंपनियों के उत्पादन पर भी असर पड़ना शुरू हो गया है। राज्य में स्टेनलेस स्टील का उत्पादन करने वाली एक कंपनी ने तो बिजली संकट की वजह से अपना उत्पादन 50 फीसदी तक कम करने का एलान किया है। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मांग और आपूर्ति में बढ़ते अंतर के चलते बिजली कटौती शुरू हो गई है। बिहार, झारखंड, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी मांग और आपूर्ति के बीच करीब तीन फीसदी तक का अंतर हो चुका है।

सरकारों की संकट से निपटने की क्या तैयारी है?
देश के कुल बिजली उत्पादन में 70 से 75 फीसदी उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों से होता है। बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने के लिए ट्रेनों की कमी भी इस संकट में इजाफा कर रही है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस वक्त रेलवे हर रोज इस तरह की 415 ट्रेनों का संचालन कर रहा है जो जरूरी 453 ट्रेनों से 8.4 फीसदी कम है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि एक से छह अप्रैल के बीच हर रोज केवल 379 ट्रेनें हर रोज उपलब्ध हुईं। जो जरूरत से 16 फीसदी कम थीं।

बढ़ती गर्मी का क्या असर?
अप्रैल की शुरुआत में ही उत्तर और मध्य भारत के ज्यादातर हिस्सों में गर्मी अपना प्रकोप दिखाने लगी है। इन राज्यों में पारा सामान्य से अधिक हो चुका है। बढ़ती गर्मी की वजह से बिजली की मांग भी बढ़ी है। एक अनुमान के मुताबिक मार्च 2023 तक बिजली की मांग में 15.2 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। इसे पूरा करने के लिए कोयले से चलने वाले संयंत्रों को उत्पादन में 17.6 फीसदी तक इजाफा करना होगा।

क्या आगे हालात और बिगड़ सकते हैं?
बिजली की बढ़ती मांग के कारण देश में गैर विद्युतीय क्षेत्र में कोयले की आपूर्ति कम कर दी गई है। देश में होने वाले कुल कोयला उत्पादन का 80 फीसदी कोल इंडिया करती है। रिकॉर्ड उत्पादन के बाद भी मांग और आपूर्ति का अंतर पट नहीं पा रहा है। इसे देखते हुए कोल इंडिया ने इस वित्त वर्ष में आपूर्ति को 4.6 फीसदी बढ़ाकर 565 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा है। बढ़ती मांग को देखते हुए बिजली मंत्रालय ने कोयले का आयात बढ़ाकर 36 मिलियन टन करने को कहा है। जो पिछले छह साल में सबसे ज्यादा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध का भी कोई असर इस संकट पर पड़ेगा क्या?
हालांकि, ये कदम कर्ज में डूबे बिजली वितरकों की मुश्किलें और बढ़ा सकता है। वैसे भी रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें बढ़ी हुई हैं। कोयले की बढ़ी हुई कीमतों की वजह से आयात में तेजी आने के आसार भी कम हैं।

छह महीने पहले भी तो इस तरह की संकट की बातें आई थीं वो किस वजह से थीं?
कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश के इंडस्ट्रियल सेक्टर में बिजली की डिमांड बढ़ी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं। जबकि देश में कीमतें काफी कम थीं। इस अंतर की वजह से आयात की मुश्किलें बढ़ी। उस वक्त कोल इंडिया ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ने की वजह से हमें घरेलू कोयला उत्पादन पर निर्भर होना पड़ा है। डिमांड और सप्लाई में आए अंतर की वजह से ये स्थिति पैदा हुई। हालांकि, सर्दियों की शुरुआत के साथ हालात नहीं बिगड़े। उस संकट के वक्त बिजली की मांग और आपूर्ति में एक फीसदी का अंतर था। जबकि, बीते सात दिन में ही ये अंतर 1.4 फीसदी हो गया है। इस बार गर्मियों की शुरुआत में ऐसे हालात पैदा हुए हैं। आगे बिजली की मांग और बढ़ेगी। रूस-यूक्रेन युद्ध से स्थितियां और बिगड़ रही हैं। इस वजह से संकट गहराने की आशंका है।

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