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सूर्य ग्रहण के बाद स्नान की है विशेष विधि, श्रीकृष्ण ने बताया था विधान

डेस्क: 27 साल बाद इस बार दिवाली पर सूर्य ग्रहण का काला साया रहेगा, जिसे धार्मिक आधार पर अशुभ व संकट का समय माना जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सूर्य ग्रहण से व्यक्ति पर कई तरह के दुष्प्रभाव पड़ते हैं, जिन्हें दूर करने के कई उपाय भी बताये गए हैं. ऐसा ही एक उपाय स्नान का है, जिसकी विधि के बारे में भविष्य पुराण में उल्लेख किया गया है. इस पुराण के अनुसार कुरुवंश के राजा युधिष्ठिर के पूछने पर खुद भगवान श्रीकृष्ण इस स्नान की विधि उन्हें बताते हैं. वही विधान आज हम आपको बताने जा रहे हैं.

सूर्य व चंद्र ग्रहण के बाद इस विधि से करें स्नान
पंडित बताते हैं कि भविष्य पुराण के अनुसार, युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्नान के नियम के बारे में पूछा था. इस पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिस पुरुष की राशि पर ग्रहण का प्लावन (लगना) होता है उसे चाहिए कि वह चार ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर गंध-माल्य आदि से उनकी पूजा करे. फिर छिद्र रहित कलशों की समुद्र की भावना करके स्थापना करे. फिर उसमें सप्तमृत्तिका यानी हाथीसार, घुड़साल, वल्मीक, नदी के संगम, सरोवर, गोशाला और राजद्वार की मिट्टी लाकर डाल दें. फिर कलशों में पंचगव्य, मोती, गोरोचना, कमल, शंख, पंचरत्न, स्फटिक, सफेद चंदन, तीर्थ जल, सरसों, राजदंत औषधि, कुमुद, खस, गुग्गुल डालकर कलशों पर देवताओं का आवाहन इस प्रकार करें:-


‘सभी समुद्र, नदियां, नद और जलप्रद तीर्थ यजमान के पापों को नष्ट करने के लिए यहां पधारें’. इसके बाद प्रार्थना करें कि ‘जो देवताओं के स्वामी, एक हजार नेत्र वाले व वज्रधारी हैं, वे इंद्र देव मेरी ग्रहणजन्य पीड़ा को दूर करें. जो समस्त देवताओं के मुखरूप, सात जिव्हाओं से युक्त और अतुल कांतिवाले हैं वे अग्नि देव मेरी पीड़ा का नाश करें. जो समस्त प्राणियों के कर्मो के साक्षी हैं वे धर्म स्वरूप यम ग्रहण की पीड़ा को दूर करें. जो राक्षसों के अधीश्वर, साक्षात प्रलय अग्नि के समान भयानक खडïग़धारी और अत्यंत भयंकर है, वे निर्ऋति देवी मेरी पीड़ा दूर करें. मकर का वाहन व नागपाश धारण करने वालेे जलाधीश्वर वरुण देव मेरी पीड़ा हरें. जो प्राण रूप से सभी प्राणियों की रक्षा करते हैं,

कृष्णमृग जिनका वाहन है वे वायुदेव मेरी ग्रहण की पीड़ा का विनाश करें. जो नव निधियों के स्वामी तथा खडग़, त्रिशूल और गदा धारण करने वाले हैं वे कुबेर देव मेरे ग्रहण के पाप को नष्ट करें. जिनका ललाट चंद्रमा से सुशोभित है, वृषभ जिनका वाहन है, जो पिना धनुष धारण करने वाले हैं वे देवाधिदेव शंकर मेरी ग्रहण पीड़ा का नाश करें. ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य सहित त्रिलोकी में जितने स्थावर जंगम प्राणी है, वे सभी मेरे पाप को भस्म करें.

मंत्रों से करें अभिषेक
देवताओं को आमंत्रित करने के बाद व्रती ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के मंत्रों की ध्वनि के साथ उन कलशों के जल से खुद का अभिषेक करे. फिर सफेद फूलों की माला, चंदन, वस्त्र और गोदान से ब्राह्मणों व इष्ट देवता की पूजा करें. इसके बाद द्विजवर उन्हीं मांत्रों को वस्त्र पट्ट या कमल दल पर अंकित करें और द्रव्य युक्त कलशों को यजमान के सिर पर पर रख दें. इसके बाद यजमान पूर्व की तरफ मुंह करके अपने इष्ट देव का नमन व पूजन करते हुए ग्रहण काल को बिताये. ग्रहण के बाद मांगलिक कार्य कर ब्राह्मणेां को दान करें.

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