ब्‍लॉगर

ऐसे तो नहीं होते ‘प्रभु’ 

-संजीव मालवीय
जैसा देखा-वैसा लिखा
आपका नाम प्रभु, उसके बाद तो राम भी जुड़ गया, जिस पर सब विश्वास करते हैं और फिर आप चौधरी भी हो, जो लोगों का नेतृत्व करते हैं। आपके नाम में तीन-तीन ऐसी खासियत हैं जो आपको खास से भी खास बनाती हंै। उसके ऊपर आप हमारे जनप्रतिनिधि हो और फिर सरकार में ऐसे महकमे के मुखिया हो, जिसका संबंध हर घर से है। यानी सीधे तौर पर आप हर घर से जुड़े हो। इंदौर जब कोरोना महामारी की आग में झुलस रहा था, तब आप आम लोगों के प्रति अपना कत्र्तव्य छोड़ राजनीतिक फर्ज निभा रहे थे और चुनाव में व्यस्त थे। खैर, चुनाव आपकी मजबूरी है, लेकिन जिस जनता ने आप जैसे लोगों पर विश्वास किया वो चाहती थी कि आप उनके बीच हों, उन्हें ऐसे समय आप जैसे लोगों की जरूरत थी। शहर में डॉक्टर और नर्स तो बेचारे अपना फर्ज निभाने में लगे थे, लेकिन संसाधनों की कमी उन्हें रोक रही थी। अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे। मिल रहे थे तो दवाइयों और इंजेक्शन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। इस संघर्ष में कब, किसने अपने परिजनों के लिए किसी अनजाने से नकली इंजेक्शन खरीद लिया और वो समय के पहले ही मौत का शिकार हो गया? यही नहीं, जब उसे श्मशान तक ले गए तो वहां भी कतार लग गई और उसे ठीक से अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। मानवता को तार-तार कर झकझोरने वाली असलियत से सामना मुख्यमंत्री के सपनों के शहर को करना पड़ा और आप अब आए। आए भी क्या, आपको अपना धर्म पूरा करना था और समीक्षा के नाम पर एक दौरा करना था, ताकि लोकतंत्र के मंदिर (विधानसभा) में जब सवालों की बौछारें आप पर आएं तो आप कह सकें कि आप भी दौरे पर थे। मंत्रीजी जिस तरह से आपने सवालों के जवाब दिए हैं, उससे तो नहीं लगता कि प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे में रहने का हक आपको है? आपसे स्ट्रेन पूछो तो कहते हैं कि सब ठीक है। आपसे इंजेक्शन की कमी का कहो तो आंकड़े गिना देते हैं कि इंदौर में 43 हजार इंजेक्शन दिए हैं। आप खुद अपनी जुबान झूठ बोले। इंदौर में पिछले दिनों हजारों मरीज स्वस्थ हुए हैं और इनमें से 80 से 90 प्रतिशत को रेमडेसिविर इंजेक्शन दिया है तो 43 हजार में क्या बघार लगा होगा? ये तो कोई अनपढ़ ही हिसाब-किताब करके बता सकता है। आपने कहा ऑक्सीजन की कमी नहीं रही, लेकिन इस शहर ने वो मंजर भी देखा है, जब लोग अपनों के लिए रात-रातभर ऑक्सीजन प्लांट की लाइन में लगे थे और गुहार लगा रहे थे कि उनका कोई घर में पड़ा है, जिसे ऑक्सीजन की जरूरत है। आपने सरकारी आंकड़े तो गिना दिए, लेकिन हकीकत नहीं समझी और जब हम जैसे लोगों ने आपको हकीकत बताना चाही तो आप रुष्ट हो गए और उठकर चले गए। ‘प्रभु’ तो कभी ऐसे नहीं होते? जो जवाबदारी आप पर है, उससे आप मुंह नहीं मोड़ सकते। जनता में आप (सरकार) को विश्वास बनाना होगा, नहीं तो ये जनता आपको भी पूछना छोड़ देगी।

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