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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

May 13, 2025


एनकाउंटर नहीं कर पाई भाजपा की आईटी सेल
विपक्ष पर हमले में भाजपा की आईटी सेल हमेशा पहले नंबर पर रही है, लेकिन इस बार वह फेल हो गई। युद्ध-विराम की घोषणा हुई और उसके पहले ट्रंप का संदेश सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। सीधे उंगली ट्रंप पर ही जाकर टिकी कि उन्होंने ही दोनों देशों से सुलह की पेशकश की है। बस क्या था, कांग्रेसियों को बैठे-बिठाए काम मिल गया। कांग्रेस की आईटी सेल सक्रिय हुई और आयरन लेडी सोशल मीडिया पर छा गई। कांग्रेसी लिखने लगे कि आज अगर इंदिरा होतीं तो ये दिन देखना नहीं पड़ते और भारत युद्ध लड़ता। ताज्जुब रहा कि भाजपा की आईटी सेल कुछ कर नहीं पाई, बजाय सोशल मीडिया पर विलाप के। कांग्रेसी खुश हैं कि बड़े दिनों बाद नहले पर दहला जड़ा है। यही तो पॉलिटिक्स है प्यारे।

दीपू के लिए बैरिकेड्स
दीपू यादव का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चल पड़ा है और दीपू चुप हैं। मतलब आग लगी है, तभी धुआं फैल रहा है। हालांकि दीपू के पहले एक पूर्व विधायक का नाम भी खूब उछाला गया, पर बाद में वे गायब हो गए। वैसे दौड़ में कई कांग्रेसी शामिल हैं, लेकिन कांग्रेस में धरतीपकड़ नेता जमीन पर ही रह जाते हैं। दीपू को लेकर दलीलें दी जा रही हैं कि वे हर तरीके से सक्षम हैं। जब से दीपू का नाम चला, तब से कांग्रेस का एक खेमा दीपू को रोकने की तैयारी में लग गया है। कहने वाले तो कह रहे हैं कि अभी गांव बसा नहीं और हल्ला चालू हो गया है। यही चक्कर है कि कांग्रेस को दमदार अध्यक्ष नहीं मिल पा रहा है और ऊपर से थोपे व्यक्ति को ही हर बार झेलना पड़ता है।

गोपी ने फिर लिखी चि_ी
ताई जिस तरह से चि_ी लिखा करती हैं, उसी राह पर अब गोपी नेमा भी चल पड़े हैं। समय-समय पर वे चि_ी लिख रहे हैं और कवि भी हो गए हैं, लेकिन अभी लिखी चि_ी ने आग में घी डालने का काम कर दिया है और धुआं भी घर में ही फैल रहा है। उन्होंने भारत वन योजना पर ही सवाल उठा दिए हैं, जिसको लेकर महापौर पुष्यमित्र भार्गव वाहवाही लूट रहे हैं। इसके पहले विधायक गोलू शुक्ला ने भी आसपास के लोगों को दिलासा दिया था कि भारत वन योजना जैसा अभी कुछ नहीं है। गोपी भी सक्रिय हो गए हैं और महापौर भी बेचैन हैं कि अपने ही घर के लोग सवाल उठा रहे हैं। सही भी तो है महापौरजी, जरा योजना को समझाइए तो सही।

बदलेगा भाजपा कार्यालय का सरदार
जल्द ही आपको भाजपा कार्यालय के सरदार पद पर नया चेहरा नजर आने वाला है। अरे भाई अध्यक्ष का नहीं, बल्कि कार्यालय मंत्री का। भाजपा में कार्यालय मंत्री का स्थान काफी बड़ा होता है और एक तरह से वह अध्यक्ष का दायां-बायां कह लो या फिर कान, नाक और मुंह। सब खासियत उसमें होती है। गौरव के कार्यकाल में ऋषि खनूजा कार्यालय मंत्री होते थे और ये सभी खासियत उनमें कूट-कूटकर भरी थी। मजाल है कि उनके बिना कार्यालय का पत्ता भी हिल जाए। खैर! अब उनकी रवानगी की तैयारी है। सब दरबारी बदले जा रहे हैं और ऋषि की जगह पाने के लिए सुमित मिश्रा के एक खास पूर्व पार्षद का नाम सामने आ रहा है। ये वही पार्षद हैं, जो कभी आकाश विजयवर्गीय को नहीं छोड़ते थे और उनकी परछाई बने हुए थे। अब आकाश की जगह सुमित हैं और पहले दिन से ही वे हुक्का-पानी लिए चढ़ बैठे हैं। दीनदयाल भवन की दीवारें बता रही हैं कि सुमित भी काफी हद तक उनके पक्ष में हैं।

अपने ही विभाग से दूर एमआईसी सदस्य
बात उन एमआईसी सदस्य की है, जिनकी विभाग में तूती बोलती थी। विभाग के अधिकारी शुरुआत में तो उन्हें खूब तवज्जो देते थे। हालांकि अब अधिकारियों ने भी समझ लिया है कि वो तो शुरुआती टेरर था। एमआईसी मेंबर अब उधर जाते भी नहीं हैं। हद तो तब हो गई जब एक बड़े मामले में उन्हें दरकिनार कर अधिकारियों ने ही वाहवाही लूट ली। नेताजी कर भी क्या सकते थे, चुपचाप मन-मसोस कर रह गए। बताया जाता है कि एमआईसी के कामकाज तो ठीक है, पर नेताजी का इन दिनों बिल्डरों में उठना-बैठना ज्यादा हो रहा है, जिसकी चर्चा निगम में आम है।

कहां दया दिखाते हैं दादा दयालु?
मालवा मिल मेन रोड का पुल जितना महत्वपूर्ण वहां के व्यापारियों के लिए है, उससे ज्यादा इंदौर के मध्य क्षेत्र से पश्चिमी क्षेत्र में जाने वालों के लिए है, क्योंकि सीधा रस्ता है। खैर! पुल का काम बंद पड़ा है और इसका कारण बनी है एक दुकान। कुछ नेताओं ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और इनमें से ही एक गुट पुल जल्द से जल्द बनवाना चाह रहा है। दादा दयालु का द्वार खटखटाया गया है और फिर दयालु तो दयालु ठहरे। वे एक-दो दिन में वहां जाने वाले हंै और देखना है कि उनकी दया किस पर होती है- पुल बनाने वाले पर या फिर दुकान पर?

गांधी भवन का हल्ला अभी थमा नहीं
गांधी भवन में केवल एक ही बात होती है कि सुरजीत और सदाशिव की रवानगी कब होगी? विरोधी कितने ही पापड़ बेल चुके हैं, लेकिन कुंभ राशि के जातक अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहे हैं। जिन्होंने हटाने की सोची थी वे जितेंद्रसिंह खुद ही यहां गुटबाजी के भंवर में फंस गए। नए प्रभारी हरीश चौधरी चुप हैं और उन्होंने समझ लिया है कि प्रदेश के कांग्रेसियों को एक साथ बिठाना दूर की कौड़ी है। पटवारी के साथ उन्होंने दौरे तो खूब कर लिए, लेकिन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। बीच में खबर आई कि कुछ जिलों के अध्यक्ष बदले जाना हैं, लेकिन सुरजीत का नाम उनमें भी नहीं था। सदाशिव के बारे में अभी संशय है, क्योंकि उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है।

दो दिन पहले इंदौर में एक कांग्रेस नेता के यहां आलीशान शादी थी। बेटे की शादी सोशल मीडिया पर भी खूब लाइक और कमेंट के बीच चर्चा का विषय रही। चर्चा तो आलीशान शादी की थी ही, लेकिन अतिविशिष्ट मेहमानों में नेताजी के यहां भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्यादा दिख रहे थे। किसी ने कह भी दिया, क्यों ठाकुर साब अगला इरादा क्या है? -संजीव मालवीय

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