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Remdesivir को लेकर आई ये खास बात सामने, नहीं है सभी कोरोना मरीजों को देना जरूरी


नई दिल्‍ली । AIIMS (दिल्ली) के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा, “हमें ज़्यादा सतर्क रहना चाहिए था, कोरोना केस काफी कम हो गए थे, और वैक्सीन के आने पर लापरवाही बरती गई। मेरा यह मानना है कि अब सबसे पहले संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। जहां-जहां केस ज़्यादा हों, सख्त कन्टेनमेंट होना चाहिए। भीड़ एकत्र न होने दें। वैक्सीन को बूस्ट दें ” उन्होंने आगे कहा कि “ज़्यादा से ज़्यादा टीकाकरण होना चाहिए। इलाज की शुरुआत में ही स्टेरॉयड नहीं दिया जाना चाहिए, रेमडेसिविर भी हर मरीज़ को नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इलाज में दवा ही नहीं, दवा दिए जाने का समय भी बेहद अहम होता है।

एक्सपर्ट्स की मानें तो ये इंजेक्शन फेफड़े में इन्फेक्शन फैलने से बचाता है. कोरोना संकट काल के दौर में इसकी खास जरूरत पड़ रही है और ये कई मौकों पर कारगर भी साबित हुआ है. कोई व्यक्ति अगर कोरोना से गंभीर हालत में पहुंच गया है, तो उसे इन इंजेक्शनों की खासी ज़रूरत है. वैसे तो कोरोना को लेकर अब तक दुनिया भर में 150 से ज़्यादा अलग-अलग दवाइयों को लेकर रिसर्च हो चुकी है। इनमें से ज्यादातर दवाइयां पहले से ही प्रचलन में हैं और इन्हें कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज में आजमाकर देखा गया है। इन्हीं में से एक है रेमडेसिविर दवा।

रेमडेसिविर वैक्सीन नहीं, बल्कि एक एंटीवायरल दवा है। जिसे इंजेक्शन के जरिये दिया जाता है। सन् 2009 में रेमडेसिविर को मूल रूप से हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए बनाया गया था। लेकिन ये दवा इस बीमारी को रोकने में नाकाम रही। जिसके बाद 2015 में इसकी निर्माता कंपनी गिलियड साइंसेज ने परीक्षणों के आधार पर दावा किया कि ये ड्रग अफ्रीका में कहर बरपाने वाले इबोला वायरस को ब्लॉक करने में कामयाब रहा है।

वहीं कोरोना वायरस आते ही जब दवाओं पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च करना शुरू किया था, इबोला के लिए तैयार की गई इस दवाई को एक बार फिर आजमाया गया। रेमडेसिविर का उत्पादन अमेरिका की कंपनी गिलियड साइंस इंक द्वारा किया गया है। कंपनी द्वारा कोरोना ट्रायल के तीसरे चरण में भी यह दवाई कोरोना के मरीजों के उपचार में सहायक पाई गई। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस दवाई की कुछ डोज ही मरीज को कोरोना वायरस से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। बस 5 दिन के कोर्स वाली इस दवाई का कोरोना के मरीजों के इलाज में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। ऐसे में हमारे देश में भी सरकार की तरफ से आपातकालीन स्थिति में कोरोना मरीज पर रेमडेसिविर दवाई के उपयोग की अनुमति दे गई।

शरीर में ये काम करता है रेमडेसिविर
रेमडेसिविर ऑक्सीजन थेरेपी, विटामिन सप्लीमेंट, स्टेरॉयड और रक्त को पतला करने वाले गुणों का एक मिश्रण है, जो गंभीर कोरोना के रोगियों को ठीक करने में मदद कर रही है। विशेषज्ञों की मानें तो रेमडेसिविर सावधानीपूर्वक चयनित मरीजों में केवल बीमारी की अवधि को कम करती है। कॉन्सेप्ट ये है कि जब किसी वायरस से संक्रमित व्यक्ति को रेमडेसिविर का इंजेक्शन लगाया जाएगा, तो यह शरीर में मौजूद वायरस के RNA को ही काम करने से रोक देती है। लेकिन इसके बारे में यह धारणा बन गई है कि यह जीवन रक्षक है। जिसके चलते जब यह मरीज को नहीं मिलती है तो वह हताश और परेशान हो जाते हैं।

डॉक्टरों का मानना है कि कई लोगों को अनावश्यक रूप से इस दवा को दिया जा रहा है, जबकि उन्हें इसकी जरूरत है भी नहीं। यहां एक बात और समझने की है कि रेमडेसिविर अकेले काम नहीं करती है। इसका असर तब होता है, जब इसे ऑक्सीजन थेरेपी, स्टेरॉयड और ब्लड थिनर के साथ इसे दिया जाता है। रेमडेसिविर केवल वायरल के असर को कम करता है वहीं दूसरी दवाएं वायरस के चलते होने वाली सूजन को कम करती हैं। यह भी उन्हीं लोगों के लिए जो कोरोना ने काफी ज्यादा प्रभावित हो चुके हों।

गैर जरूरी मरीजों को ना दी जाए रेमडेसिविर
वहीं इसको लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अपने बयान में कहा है कि कोविड महामारी की दूसरी लहर ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की अभूतपूर्व मांग पैदा कर दी है, जिससे मांग और आपूर्ति में कमी आई है। आईएमए ने इसका कारण बेमतलब के लिए और गैर-जरूरी जगहों पर हो रहे इस दवा के इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहराया है। आईएमए का कहना है कि जनता और साथ ही चिकित्सा समुदाय को दवा के उपयोग के लिए कोरोना मरीजो में पूर्ण लक्षण और विवेकपूर्ण तरीके से इसका उपयोग करने की आवश्यकता के बारे में पता होना चाहिए, ताकि दवा का उपयोग उन रोगियों के लिए किया जा सके, जिन्हें वाकई इसकी जरूरत है।

एसोसिएशन ने दोहराया कि भारत सरकार द्वारा जारी कोविड-19 के क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार, कोरोना के हल्के लक्षण वाले या फिर एसिम्टोमेटिक मरीजों के लिए रेमडेसिविर(आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के तहत) किसी काम की नहीं है। हालांकि मध्यम लक्षण वाले मरीजों को इसे जरूरत होने पर दिया जा सकता है।

ऐसे मरीजों के लिए जरूरी है यह दवा
आईएमए ने कहा है कि कोरोना से शीघ्र स्वस्थ होने के लिए आवश्यक है कि कोरोना पीड़ित अपने अनुमानित लक्षणों और संपर्कों में आये लोगो के आधार पर शीघ्र निदान के लिए चिकित्सक या अस्पताल से तत्काल परामर्श लें। जब मध्यम से गंभीर लक्षणों के साथ वायरल बढ़ता है, तब पहले सप्ताह में दी जाने वाली रेमेडिसिविर इंजेक्शन ऐसे रोगियों के रिकवरी में लाभदायक होता है।

आईएमए ने चिकित्सकों से किया अनुरोध
एसोसिएशन के मुताबिक दवा की कीमत के कारण सभी लोग इसका उपयोग अपने परिजनों के लिए करना चाहते हैं, भले ही उनके माइल्ड कोरोना क्यों ना हो। मरीजों द्वारा ऐसे अनुचित अनुरोध का चिकित्सकीय पेशेवरों द्वारा विरोध किया जाना चाहिए, क्योंकि दवा की उपलब्धता से उस रोगी को अधिक लाभ होगा। आईएमए ने कहा है कि नागरिकों और चिकित्सकों की सामाजिक जिम्मेदारी है कि इस दवा को देश के नागरिकों के लिए उपलब्धता बहाल रखी जाए।

ज्ञात हो कि जब दुनिया में कोरोना का संकट बढ़ रहा था, तब अमेरिका समेत कई देशों ने भारत से बड़ी संख्या में इस इंजेक्शन को इम्पोर्ट किया था. भारत में भी तब इसकी डिमांड बढ़ने लगी थी, जो अब फिर दोहराता हुआ दिख रहा है. अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने तो इस इंजेक्शन को कोरोना के इलाज में कारगर बताया था, लेकिन WHO ने इसकी निर्भरता पर सवाल खड़े किए थे.

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