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अनुकूल वातावरण नहीं मिलने से विलुप्त हो रही देश की राजधानी की यह राज्य पक्षी

नई दिल्ली । दिल्ली (Delhi) की राज्य पक्षी ‘गोरैया’ (sparrow) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से ही नहीं तमाम शहरी क्षेत्रों से विलुप्त होती जा रही है। देश और दुनिया के तमाम संगठन इस पर चिंता जता चुके हैं। इसकी असल वजह शहरी इलाकों का बदलता वातावरण है। पर्यावरण और प्रकृति प्रेमियों की मानें तो गोरैया को वापस लाने के लिए केवल दाना और पानी काफी नहीं है बल्कि उनके लिए अनुकूल वातारण तैयार करना होगा।

गौरैया (sparrow) का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस (Passer domestics) और सामान्य नाम हाउस स्पैरो (House sparrow) है। इसकी ऊंचाई 16 सेंटीमीटर और विंगस्पैन 21 सेंटीमीटर होते हैं। इसका वजन 50 ग्राम से भी कम होता है। गौरैया (sparrow) की संख्या लगातार कम होती जा रही है।


एक अध्ययन के अनुसार गौरैया (sparrow) की संख्या में 60 प्रतिशत तक की कमी आई है। गौरैया (sparrow) के लुप्त होने से कृषि अनुसंधान संस्थान और कृषि विज्ञानी भी चिंतित हैं। उनका मानना है कि इस पक्षी के नहीं होने के प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा। फसल चक्र के लिए भी परेशानी खड़ी हो जाएगी। असल में गौरैया (sparrow) कृषि के लिए बहुत आवश्यक है यह खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खाती है।

भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गौरैया (sparrow) संरक्षण के लिए अनेक प्रयास हो रहे हैं। इसी कड़ी में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसका एक उद्देश्य युवाओं और प्रकृति प्रेमियों में गौरैया संरक्षण की दिशा में कारगर कदम उठाने के लिए प्रेरित करना है।

दिल्ली सरकार ने 2012 में गौरैया (sparrow) को दिल्ली का राजकीय पक्षी घोषित कर ‘सेव स्पैरो’ नामक एक मुहिम शुरू की थी।

गौरैया (sparrow) के लिए हजारों घरों का निर्माण करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित हो चुके ईको रुट्स फाउंडेशन के डायरेक्टर राकेश खत्री की मानें तो गौरैया (sparrow) असल में पर्यावरण का पैमाना है। गौरैया (sparrow) के विलुप्त होने का मुख्य कारण मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगे हैं। यह तरंगे उसके मस्तिष्क पर सीधा असर करती हैं। वहीं लोगों की बदलती जीवनशैली ने पक्षियों के रहने के लिए जगह ही नहीं छोड़ी है। ग्रामीण इलाकों में फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण वह कीट पतंगे भी नहीं खा पा रही है। यदि वह खाती है तो मर जाती हैं।

वह बताते हैं कि पहले घरों में सूर्य को चढ़ाये जाने वाले जल के कलश में चावल के दाने डाले जाते थे। छत पर गेहूं आदि खुखाया जाता था। आज लोगों ने घरों के रौशनदान तक बंद कर दिये हैं। जहां कभी गोरैया घोंसला बनाती थी।

उन्होंने लोगों से अपना नजरिया बदलने की अपील करते हुए घर के बाहर कम के कम एक स्थान गौरैया (sparrow) के घोंसला बनाने के लिए छोड़ने की अपील की है। वह कहते है कि यह न केवल विलुप्त होती चिड़िया के काम आएगा बल्कि मनुष्य की नकारात्कता को भी दूर करने में सहायक होगा। खत्री के अनुसार चि़ड़िया को रोज अपने घोंसले में जाता देखना सुखद होता है।

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