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Irrfan Khan का आज है जन्‍मदिन, कई खासियतों के नायक थे वे


मुंबई । इरफान खान (Irrfan Khan) एक ऐसी ही शख्सियत में से एक थे, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और सिनेमाई पर्दे पर दिखाए गए अभिनय से खुद को लोगों के दिलों में आज भी जिंदा रखा है. आज इस महान अभिनेता की 54वीं जयंती (Irrfan Khan 54th Birth Anniversary) है. इरफान खान भले ही आज हम लोगों के बीच नहीं हैं, लेकिन वह आज भी अपने फैंस की दिल की धड़कन बनकर धड़कते हैं. इरफान खान का जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर के एक मुस्लिम पठान परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम साहबजादे इरफान अली खान था। उनके पिता टायर का व्यापार करते थे.  

कोलन इंफेक्शन ने ली थी उनकी जान
इरफान खान को पहले कैंसर हुआ और जब वह कैंसर से ठीक होकर घर लौटे, तो 29 अप्रैल, 2020 को कोलन इंफेक्शन ने उनकी जान ले ली. इरफान खान का जाना उनके चाहने वालों को आज भी खलता है. इरफान खान हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी प्रसिद्धि को अपना अहंकार नहीं बनने दिया और हमेशा जमीन से जुड़कर रहे. इरफान खान ने अपने तीन दशक लंबे एक्टिंग करियर में कई सीरियल्स और कई फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘चंद्रकांता’, ‘जय हनुमान’, ‘श्रीकांत’, ‘किरदार’, ‘जस्ट मोहब्बत’ जैसे सीरियल्स और ‘पान सिंह तोमर’, ‘हिंदी मीडियम’, ‘लाइफ ऑफ पाई’, ‘जुरासिक पार्क’, ‘मदारी’, ‘द जंगल बुक’, ‘द लंचबॉक्स’, ‘डी डे’, ‘मकबूल’ जैसी कई हिट फिल्में शामिल हैं.


पठान परिवार में ब्राह्मण लड़का
पठान परिवार के होने के बावजूद इरफान बचपन से ही शाकाहारी थे। उनके परिवार वाले उन्हें हमेशा यह कहकर चिढ़ाते थे कि पठान परिवार में ब्राह्मण लड़का पैदा हो गया। इरफान खान का शुरुआती दौर संघर्षों से भरा था। जब उनका एनएसडी में प्रवेश हुआ, उन्हीं दिनों उनके पिता की मृत्यु हो गई। परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्होंने एस रिपेयरिंग का काम चालू किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात राजेश खन्ना से हुई। इरफान राजेश खन्ना का एसी ठीक करने उनके घर गए हुए थे। उनकी शानो शौकत देख इरफान बहुत प्रभावित हुए।

इरफान जब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई कर रहे थे तभी उन्हें मीरा नायर ने सलाम बॉम्बे में एक बड़े रोल के लिए चुना था। वे उनदिनों मुंबई आकर वर्कशॉप में शामिल भी हुए लेकिन बाद में उनसे कह दिया गया कि वे फिल्म का हिस्सा नहीं हैं। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो रात भर रोते रहे। बदले में उन्हें छोटा से रोल दे दिया गया। हालांकि इसका कर्ज मीरा नायर ने 18 साल बाद इरफान खान को द नेमसेक में अशोक गांगुली का रोल देकर चुकाया।

सुतापा से शादी के लिए हिंदू बनने को तैयार थे इरफान
इरफान खान ने एनएसडी की दोस्त सुतापा सिकदर से 23 फरवरी 1995 को शादी की। इरफान के संघर्ष के दिनों में सुतापा हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। ये वही सुतपा हैं, जिन्होंने सुपारी और शब्द जैसी फिल्में लिखी हैं। इरफान ने जब सुतापा से शादी का फैसला किया तो वे उनके लिए धर्म बदलने के लिए भी तैयार हो गए थे लेकिन सुतापा के घरवाले दोनों की शादी के लिए तैयार हो गए, जिसके बाद इरफान को धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ी।

एक्टर बनने से पहले इरफान बनना चाहते थे क्रिकेटर
इरफान खान के एक्टिंग करियर के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो कभी एक क्रिकेटर भी रहे थे? एक महान अभिनेता बनने से पहले, इरफान का क्रिकेट में करियर बनाने का सपना था. हालांकि, उन्हें क्रिकेटर बनने के अपने सपने को गंवाना पड़ा, क्योंकि वह क्रिकेट के लिए 600 रुपये जमा करने तक की क्षमता उस वक्त नहीं रखते थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि साल 2014 में इरफान खान ने द टेलीग्राफ को एक इंटरव्यू दिया था.

इस इंटरव्यू में उन्होंने उन संघर्ष के दिनों को याद किया था जब उन्हें बीसीसीआई द्वारा आयोजित कर्नल सीके नायडू ट्रॉफी (अंडर -23) में खेलने के लिए चुने जाने के बावजूद अपने क्रिकेट करियर को अलविदा कहना पड़ा था. रिपोर्ट के अनुसार, इरफान ने कहा था- मैं क्रिकेट खेलता था. मैं एक क्रिकेटर बनना चाहता था. मैं एक ऑल-राउंडर था और अपनी जयपुर की टीम में सबसे यंग था. मैं इसी में अपना करियर बनाना चाहता था.

अभिनेता ने आगे कहा था- कर्नल सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए मैं सिलेक्ट हुआ था और उस समय मुझे पैसों की जरूरत थी. मुझे नहीं पता था कि किससे मांगूं. उस दिन मैंने फैसला किया कि मैं इसमें आगे करियर नहीं बनाऊंगा. मैं उस समय 600 रुपये भी नहीं मांग सकता था. जब मुझे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए 300 रुपये चाहिए थे, तो मेरे लिए अरेंज करना मुश्किल था. मेरी बहन ने आखिरकार मेरे लिए बंदोबस्त किया. क्रिकेट छोड़ना एक सोच-समझकर लिया गया फैसला था. पूरे देश में केवल 11 खिलाड़ी हैं. अभिनेताओं में कोई सीमा नहीं है. अभिनय में उम्र की कोई सीमा नहीं होती, जितना मेहनत करोगे, उतनी कामयाबी मिलेगी. आप अपने खुद के हथियार हैं.

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