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आज 08 जून 1948 को एयर इंडिया ने भरी थी पहली अंतराष्‍ट्रीय उड़ान, कितने यात्रि थे सवार


आज यानि 08 जून 1948 के दिन एयर इंडिया ने पहली बार इंटरनेशनल उड़ान लंदन तक के लिए भरी थी. विमान में 35 यात्री थे, जिसमें ज्यादातर नवाब और महाराजा थे. बेशक अब लंदन की फ्लाइट एक स्टॉप के साथ मुश्किल से 12 घंटे में पहुंच जाती हो लेकिन तब इसने दो दिन लिए थे. ये काहिरा और जिनेवा होते हुए लंदन पहुंची थी.
ये दिन भारतीय नागरिक उड्डयन इतिहास के लिए खास दिन है. एयरइंडिया आजादी से पहले टाटा एयरलाइंस के नाम से जानी जाती थी. आजादी के बाद सरकार ने 49 फीसदी इसके शेयर ले लिए थे.
पारसी खबर डॉट नेट ने एयरइंडिया की पहली उडान के बारे में एक लंबा आर्टिकल 03साल पहले इस एयरलाइंस के 70 साल होने पर प्रकाशित किया था. उसे हम यहां उसका अनुवाद साभार दे रहे हैं.

नवानगर के जाम साहिब भारीभरकम लगेज लेकर गए
नवानगर के जाम साहिब, सौराष्ट्र के राजप्रमुख ने अपनी घड़ी की ओर देखा. उनकी घड़ी के सुनहरे डायल पर जब रोशनी पड़ रही थी. आखिरकार वो समय आ गया. जाम साहिब ने घंटी बजाई. अपने सामान को नीचे लाने के लिए कहा. वो यूरोप की यात्रा पर जा रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि ये यात्रा इस समय सुखद रहेगी. नौकर उनका भारीभरकम लेदर लगेज उनकी लिमोजिन पर चढ़ा रहे थे, जो बाहर खड़ी थी. इसके बाद कार एयरपोर्ट की ओर चल दी.

एयरपोर्ट पर थी भीड़
एय़रपोर्ट पर तमाम पत्रकार और फोटोग्राफर इकट्ठा थे, जो एयरइंडिया की पहली इंटरनेशनल उड़ान से लंदन जाने वालों की फोटो खींच रहे थे और उनसे सवाल कर रहे थे. रात का अंधेरा था. इसी अंधेरे में विमान उड़ान उड़ने वाला था. इसके साथ ही एक इतिहास लिखा जाने वाला था. ये मंगलवार का दिन था.



विमान का नाम था मालाबार प्रिंसेस
विमान का नाम था मालाबार प्रिंसेस, ये 40 सीटों का लाकहीड एल-749 कांस्टेलेशन विमान था. इसके कैप्टेन थे केआर गुजदार. जो 5000 मील की यात्रा की तैयारी में लगे थे. विमान को रास्ते में काहिरा और फिर जिनेवा में रुकना था.
भारत की पहली इंटरनेशनल उड़ान पर भारतीय डाक विभाग का टिकट. जो इस यादगार घटना की याद दिलाता है

एयरइंडिया ने इसकी बहुत तैयारियां की थीं
इस विमान पर 35 यात्री थे, जिसमें 29 लंदन जा रहे थे जबकि 06 को जिनेवा में उतरना था. इस यात्रा से पहले इस विमान से जाने वाले यात्रियों और एयरलाइंस दोनों ने महीनों तक इसकी योजना बनाई थी. तैयारियां की थीं. एयरइंडिया के पास घरेलू उडानों का पर्याप्त अनुभव था लेकिन पहली इंटरनेशनल फ्लाइट के लिए उसे अतिरिक्त प्रयास करने थे. लिहाजा उसने इस यात्रा के लिए अपने क्रू मेंबर्स बहुत सावधानी से चुने थे.जब इस उड़ान के लिए स्टाफ की नियुक्त हो गई तो एयरइंडिया ने काहिरा, लंदन और जिनेवा में अपना आफिस खोला.

महाराजा के लोगो के साथ विज्ञापन निकला
फिर इस यात्रा के लिए 03 जून 1948 को “टाइम्स ऑफ इंडिया” में दो कॉलम और 15 सेमी का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ. जिसमें महाराजा के लोगो के साथ यात्रियों का स्वागत किया गया था. इस विज्ञापन में महाराजा अपने यात्रियों से कह रहे थे, “मेरे साथ काहिरा और जिनेवा होते हुए लंदन की यात्रा पर आपका स्वागत है. हर मंगलवार को खूबसूरत कांसटेलेशन विमान पर आपका 1720 रुपए में स्वागत है.” यानि लंदन जाने वाली इस पहली फ्लाइट का किराया 1720 रुपए था, जो उस जमाने के लिहाज से खासी बड़ी रकम थी.

ये सुनहरा एयरक्राफ्ट था
विमान की यात्रा शुरू होने से पहले कैप्टेन गुजदार ने एयरक्राफ्ट का निरीक्षण किया. ये गर्मी की रात थी. आसमान से चांद गायब था. अलबत्ता तारे टिमटिमा रहे थे.एक ऐतिहासिक उड़ान के लिए ये आदर्श स्थितियां थीं. विमान सुनहरे रंग का कांस्टेलेशन एयरक्राफ्ट था, जिसे अमेरिका की लॉकहीड कंपनी ने बनाया था.

विमान के क्रू मेंबर्स में नेविगेटर और रेडियो अफसर भी शामिल थे. इस मौके पर आल इंडिया रेडियो ने कैप्टेन गुजदार का खास इंटरव्यू लिया.

एयर इंडिया की 08 जून 1948 को पहली इंटरनेशनल उड़ान के मौके पर “टाइम्स ऑफ इंडिया” में निकला विज्ञापन

खानपान की भी बढ़िया व्यवस्था
विमान में खानपान की व्यवस्था थी. इसे काफी सावधानी से तय किया गया था. इसमें मुख्य खाना था और स्वादिष्ट मिष्ठान और साथ में नाश्ता भी. विमान क्रू से लेकर यात्री और दर्शक तक हर कोई रोमांचित था. आखिर हो भी क्यों ना, एक इतिहास जो बनने वाला था.

नीले कोट और आसमानी रंग की स्कर्ट में एयरहोस्टेस
तभी एयरहोस्टेस और अकेला फ्लाइट पर्सर सीढ़ियों से ऊपर विमान पर चढ़े. एय़रहोस्टेस की ड्रेस नीला कोट और आसमानी रंग का स्कर्ट था.

एयर इंडिया की मुंबई से लेकर लंदन की पहली इंटरनेशनल फ्लाइट (international flight) के कैप्टन गुजदार आल इंडिया रेडियो के हामिद सयानी को उससे पहले इंटरव्यू देते हुए

साथ शार्ट स्लीव ब्लाउज. वो काफी स्मार्ट और असरदार लग रही थीं. उनकी ड्यूटी यात्रा कर रहे हर शख्स को ये महसूस कराने की थी कि वो इस यात्रा में उनके लिए खास मेहमान हैं.इसके लिए एय़रहोस्टेस को ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा था. एयरइंडिया ने एय़रहोस्टेस (airhostess) की ये पोशाक 1960 तक यही रखी. इसके बाद वो परंपरागत साड़ी में आ गईं.

टाटा भी थे वहां मौजूद
सांताक्रूज एयरपोर्ट के छोटे से टर्मिनल भवन में भीड़ थी. उसमें कई ऐसे थे जो केवल इस ऐतिहासिक मौके के गवाह बनने के लिए वहां आए थे. इसी में एक ओर एयरइंडिया के दल के साथ मिस्टर जेआरडी टाटा भी थे, जो तब एयर इंडिया के चेयरमैन थे.

कौन थे यात्रियों में
महाराजा दलीप सिंह जो इंग्लैंड औऱ आस्ट्रेलिया (England and Australia) का टेस्ट मैच देखने लंदन जा रहे थे. इसी तरह विमान में कई दिग्गज अफसर, अंग्रेज, बिजनेसमैन तो थे ही साथ ही दो ऐसे साइकिस्ट भी थे, जो बेंबले लंदन में होने वाले ओलंपिक में शिरकत करने जा रहे थे.

…और विमान टेकऑफ कर गया
विमान में हर यात्रियों के पास खासा सामान तो था ही, इसके अलावा वो मेल के भी 164 बैग लेकर जा रहा था. रात ठीक 11.15 बजे विमान टेकऑफ के लिए तैयार था. कैप्टेन ने कंट्रोल रूम से अनुमति ली. फिर उन्होंने विमान में घोषणा की, “एयर इंडिया मालाबार प्रिंसेस, अब टेकऑफ के लिए तैयार है.” इसके साथ ही इंजन तेजी से गुर्राते हुए विमान को रन-वे पर दौडाने लगे.कुछ ही सेकेंड्स विमान हवा में आ गया.

ये बड़ी उपलब्धि थी
1948 में कुछ ही देशों की एयरलाइंस इंटरनेशनल आपरेशंस(Airlines International Operations) चला रही थीं. उस दृष्टि से ये भारत की बड़ी उपलब्धि थी. तब ऐसे विमान नहीं थे, जिनसे बगैर रुके आप लंबी दूरी तय कर सकें. कांसेटेलेशन बगैर रुके 4800 किलोमीटर की ही यात्रा कर सकता था. अब तो नए विमान 13340 किमी की यात्रा एकसाथ कर सकते हैं.

टाटा भी थे इस यात्रा में
मालाबार प्रिंसेस 10 जून की सुबह तड़के ही लंदन पहुंचा. इस यात्रा में विमान 24 घंटे हवा में रहा. अब विमान 10 घंटे में ही ये सफर पूरा कर लेते हैं. इस विमान को जिनेवा से कैप्टेन जाटर (captain jater) ने उड़ाया. विमान ने लंदन पर स्मूथ लैंडिंग की. लंदन में विमान यात्रियों की आगवानी के लिए खुद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्णा मेनन मौजूद थे.

टाटा खुद इस विमान में यात्रा कर रहे थे. वहां जब मेनन और टाटा मिले तो दोनो के चेहरों पर बडी मुस्कुराहट थी. लंदन में फिर इस खुशी में एक बड़ी पार्टी हुई. टाटा ने एयरइंडिया इंटरनेशनल के चेयरमैन के नाते एक भाषण दिया. इतिहास बनाया जा चुका था.

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