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उत्तराखंड का अनोखा मंदिर, आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर होती है पूजा, जानें वजह

चमोली: उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल विकासखंड के वाण गांव में क्षेत्रपाल देव लाटू देवता का मंदिर (Latu Devta Temple in Uttarakhand) स्थित है. यह नागराज का मंदिर है, जो कि अपनी विशेष पूजा करने के तरीके के लिए मशहूर है. इसके साथ ही साथ चमोली की लाडली देवी नंदा का भाई भी लाटू देवता को माना जाता है. बता दें कि लाटू देवता के दर्शन वर्ष में सिर्फ एक ही बार किए जाते हैं.

दरअसल चमोली की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा देवी के धर्म भाई के रूप में वैशाख पूर्णिमा को साल भर में एक बार इस मंदिर के कपाट खुलते हैं. उसी दिन शाम को बंद भी हो जाते हैं. इसके साथ ही साथ मंदिर के दर्शन बाहर से तो सभी श्रद्धालु कर सकते हैं, लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करना वर्जित है. यह मंदिर सिर्फ एक दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन ही खुलता है और उसी दिन मंदिर में ब्राह्मण आंखों पर काली पट्टी और मुंह पर कपड़ा बांधकर मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. ऐसा माना जाता है कि नागराज अद्भुत मणि के साथ मंदिर में रहते हैं. मणि का तेज इतना अधिक होता है कि जो मनुष्य की आंखों की रोशनी को भी खत्म कर सकता है, इसलिए मंदिर में जाना वर्जित है.

कब खुलते हैं कपाट?
मंदिर के कपाट वर्ष में सिर्फ एक ही बार भक्तों के लिए वैसाख (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा को खोल दिए जाते हैं. कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु दूर से ही देवता के दर्शन करते हैं.


लाटू देवता का मां नंदा से रिश्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी के धर्म भाई हैं. जब भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ, तो पार्वती (नंदा देवी) को विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े. इसमें उनके चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे. रास्ते में लाटू देवता को प्यास लगी. वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे. उन्हें एक कुटिया दिखी, तो लाटू वहां पानी पीने चले गए. कुटिया में एक साथ दो मटके रखे थे, एक में पानी था और दूसरे में मदिरा थी. लाटू देवता ने गलती से मदिरा पी ली और उत्पात मचाने लगे. इससे नंदा देवी को गुस्सा आ गया और उन्होंने लाटू देवता को श्राप दे दिया. मां नंदा देवी ने गुस्से में लाटू देवता को बांधकर कैद करने का आदेश दिया.

वाण गांव से हेमकुंड तक जाते हैं लाटू देवता
लाटू के पश्चाताप करने की वजह से मां नंदा देवी ने कहा कि वाण गांव में उसका मंदिर होगा और वैशाख महीने की पूर्णिमा को ही उसकी पूजा होगी. यही नहीं, हर 12 साल में जब नंदा राजजात जाएंगी, तो लोग लाटू देवता की भी पूजा करेंगे. तभी से नंदा राजजात के वाण गांव में पड़ने वाले 12वें पड़ाव में लाटू देवता की पूजा की जाती है. लाटू देवता वाण गांव से हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को भेजने के लिए उनके साथ जाते हैं. हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा भगवान लाटू देवता के कपाट खोले जाते हैं. हर साल स्थानीय मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शामिल होते हैं. माना जाता है कि लाटू देवता इस मंदिर में नागराज के रूप में कैद हैं.

कैसे पहुंचे लाटू देवता मंदिर?
दिल्ली से चमोली के लाटू देवता का मंदिर 431.1 किलोमीटर दूर है. इसका यानी आपको दिल्ली से चमोली के लाटू देवता मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 10 घंटे लग जाएंगे.

मुख्य पड़ाव
दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली (गौचर) प्रवेश द्वार, कर्णप्रयाग, कर्णप्रयाग से वाण गांव की दूरी 104 किलोमीटर है. कर्णप्रयाग से ग्वालदम मोटर मार्ग से होते हुए आपको सफर करना होगा.

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