ब्‍लॉगर

वॉर मेमोरियल से मिलेगी देशभक्ति की प्रेरणा

 

रमेश सर्राफ

देश पर मर मिटने वालों में कायमखानी कौम ने हमेशा मिसाल पेश की हैं। यह मिसाल ताजा नहीं, बल्कि करीब 600 साल से ज्यादा समय से है। यही कारण है कि कायमखानी कौम को महारानी एलिजाबेथ के समय 1901 में गजट नोटिफिकेशन के जरिए मार्शल कौम की उपाधि मिली थी। इस कौम को बहादुरी और वफादारी के नाम से आज भी उसी सम्मान के साथ जाना-पहचाना जाता है। अब इस बहादुरी और वफादारी को एक मेमोरियल के रूप में स्थापित करने के लिए राजस्थान में झुंझुनू जिले के धनूरी गांव में देश का पहला कायमखानी वॉर मेमोरियल बनने जा रहा है। जिस गाँव के हर कायमखानी परिवार का व्यक्ति देश सेवा कर चुका है या फिर कर रहा है।

कायमखानी महासभा के प्रदेश संयोजक कर्नल शौकत अली ने बताया कि कायमखानी कौम ने देश के लिए शहादत दी है। कभी मातृभूमि का सिर झुकने नहीं दिया। उन्होंने बताया कि अबतक देश की सुरक्षा के लिए 208 कायमखानियों ने अपनी जान दी हैं। इनमें से अकेले 15 कायमखानी शहीद झुंझुनू जिले के धनूरी गांव के रहने वाले थे। इसलिए इस वीर भूमि को देश के पहले कायमखानी कौम के वॉर मेमोरियल शहीद स्मारक के लिए चुना गया है। ताकि आने वाली पीढ़ियां यहां आकर कौम को लेकर सबक ले और देश सेवा, देश सुरक्षा और देश के लिए जान न्यौछावर करने की गर्वीली परंपरा लगातार जारी रहे। कर्नल शौकत अली ने बताया कि कायमखानी का इतिहास करीब 600 साल से ज्यादा पुराना है। फिरोज तुगलत के जमाने में ददरेवा एक छोटी रियासत हुआ करती थी। जहां पर चौहान वंश के राजा थे मोटेराव चौहान। उनके बेटे कर्मसिंह यशस्वी और बहादुर थे। उनका तेज देखकर दिल्ली के राजा उन्हें इस्लामिक धर्म ग्रहण करवाया और हथियारों के साथ के साथ अन्य शिक्षा दी। इसके बाद उन्हें हिसार की जागीर बख्शी गई। कायमसिंह ने राजपूत काल, सल्तनत काल, मुगल काल और ब्रिटिश काल के साथ-साथ आज भी अपनी बहादुरी और वफादारी के लिए पहचान रखते है। कायमखानी ने देश की रक्षा में कभी पीठ नहीं दिखाई, बल्कि सीने पर गोली खाकर भी देश की रक्षा की है।

इस वॉर मेमोरियल की योजना बना रहे भंवरू खां ने बताया कि 1971 की लड़ाई में कायमखानी कौम के सैनिकों ने जिस वीरता का परिचय दिया, उसका आज भी इतिहास गवाह है। इसलिए इस वॉर के 50 साल पूरे होने पर कायमखानी कौम की वीरता को चिर स्थायी बनाने के लिए धनूरी गांव में यह मेमोरियल बनाया जा रहा है। जिसमें ना केवल 208 शहीदों के शिलालेख होंगे। बल्कि राष्ट्रीय ध्वज और अशोक स्तंभ भी होगा। यहां पर आने वाला हर व्यक्ति खुद को गौरवान्वित महसूस करेगा कि वो उस देश का नागरिक है, जहां कायमखानी कौम जैसे बहादुर और वफादार हैं। भंवरू खां ने बताया कि आज भी कायमखानी कौम को आजादी से पहले और आजादी के बाद ऐसे कई मैडल और प्रमाणपत्र मिले हैं, जिन्हें देखकर फख्र महसूस होता है। लेकिन अबतक वे पेटियों में बंद हैं। जब ये मैडल और प्रमाणपत्र पेटियों से बाहर निकलकर म्यूजियम में आएंगे तो हर युवा इन्हें देखकर देश सेवा व सुरक्षा का संकल्प लेगा। जो हिंदुस्तान के लिए एक सकारात्मक उर्जा का काम करेगा। उन्होंने बताया कि इस मेमोरियल का काम चार चरणों में पूरा किया जाएगा। जिसका पहला चरण 14 जून को पूरा किया जाएगा। क्योंकि हमारे दादाजी नवाब कायमखान को उस दिन याद किया जाएगा।


आईपीएस अरशद खान ने कहा कि कायमखानी कौम का निक नेम है वफादारी और बहादुरी। इस मेमोरियल से इसका जीता जागता प्रमाण हर कौम और हर धर्म के लोग देखेंगे। आज के जमाने में जो जहर फैलाया जा रहा है धर्म के नाम पर। उस जहर का यह मेमोरियल ना केवल खात्मा करेगा। बल्कि युवाओं को सही दिशा में ले जाने के लिए काम करेगा। उन्होंने बताया कि 1901 के गजट नोटिफिकेशन में महारानी एलिजाबेथ के समय कायमखानी कौम को मार्शल कौम बताया गया था। इसलिए आज इसे और सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। हम सालों से देश के मर मिटते आये हैं। देश के बाहर का कोई युद्ध हो या फिर आंतरिक व्यवस्था बनाने का काम, कायमखानी कौम के सैनिकों ने पूरी शिद्दत के साथ देश में अमन, चैन और भाईचारे के साथ सुरक्षा को बनाए रखने का काम किया है।

शब्बीर खान ने बताया कि कायमखानी कौम राजपूत समाज से परिवर्तित कौम है। इस कौम ने इस्लाम कबूल किया। लेकिन अपनी राष्ट्र सुरक्षा, राष्ट्र सेवा को कभी मन से नहीं निकाला। यही कारण है कि पाकिस्तान के खिलाफ भी लड़ाई लड़कर कौम के बहादुरों ने अपनी जान दी है। धनूरी गांव के एक शहीद ने 1971 की लड़ाई में आठ किलोमीटर अंदर तक पाकिस्तान की जमीन पर घुसकर पाकिस्तानियों को ढेर किया और खुद भी शहीद हो गए। कायमखानी कौम के लिए पहले देश है और रहेगा।

आपको बता दें कि इस शहीद स्मारक निर्माण के लिए 2 करोड़ 8 लाख रुपए खर्च होंगे। कौम के सभी शहीदों के सेना मेडल भी यादगार के लिए रखे जाएंगे। स्मारक पर होने वाली राशि का खर्च भामाशाहों से आर्थिक सहयोग लेकर खर्च किए जाएंगे। इस स्मारक के लिए जिले के कई पूर्व सैनिकों, शहीदों के परिजन व उनके पुत्रों द्वारा धनराशि सहयोग के लिए दी गई है। धनूरी गांव में बनने शहीद स्मारक के लिए जमीन का दान मास्टर अरशद अली खान द्वारा किया गया है।

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