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क्‍यों छोड़ा था मोहम्मद रफी ने मौलवियों के कहने पर गाना, फिर ऐसे हुए राजी

अपनी गायकी से सबके दिलों पर राज करने वाले मोहम्मद रफी का आज ही के दिन यानि 24 दिसंबर 1924 को जन्‍म हुआ था। उन्हें घर में फीको कहा जाता था। गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था। मोहम्मद रफी ने करीब 35 साल के करियर में उस जमाने के सभी मशहूर संगीतकारों और गायकों के साथ काम किया था।

मोहबत्त हो, गम हो, जुदाई हो या फिर भजन या कव्वाली हो, कोई भी विधा हो, रफी अपने अंदाज में ऐसा गाते कि आवाज सीधे दिल तक पहुंचती। कहते हैं कि इजहार-ए-इश्क की सौ विधाएं दर्शानी हों तो आप सिर्फ एक ही गायक का नाम ले सकते हैं, वो हैं मोहम्मद रफी।
हाजी अली मोहम्मद के छह बच्चों में से रफी दूसरे नंबर पर थे। उन्हें घर में फीको कहा जाता था। गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था। रफी साहब को पहला ब्रेक पंजाबी फिल्म ‘गुलबलोच’ में मिला था। नौशाद और हुस्नलाल भगतराम ने रफी की प्रतिभा को पहचाना और खय्याम ने फिल्म ‘बीवी’ में उन्हें मौका दिया।

जब मोहम्मद रफी अपने करियर के शिखर पर थे तो उन्होंने मौलवियों के कहने पर फिल्मों में गाना बंद कर दिया था। यह बात तब की है जब वह हज गए थे। वह लौटकर आए तो उनसे कुछ लोगों ने कहा गया कि अब आप हाजी हो गए हैं, इसलिए अब आपको गाना-बजाना सब बंद कर देना चाहिए। 

रफी साहब बेहद शरीफ इंसान थे। वह बातों में आ गए और उन्होंने गाना छोड़ दिया। जैसे ही ये बात लोगों को पता चली, पूरे बॉलीवुड में हड़कंप मच गया। इस बात से रफी का परिवार भी बहुत परेशान हो गया। नौशाद ने उन्हें काफी समझाया। इसके बाद उनके बेटे भी अपने पिता को समझाने लगे। रफी से कहा गया कि गला ही परिवार के रोजगार का जरिया है। अगर गाना बंद कर दिया तो घर नहीं चलेगा।
काफी समझाने के बाद रफी साहब मान गए और उन्होंने फिर से गाना शुरू कर दिया।  31 जुलाई 1980 को रमजान के महीने में रफी इस दुनिया से विदा हो गए। रफी साहब ने हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में भी गाने गाए हैं। उनके नाम लगभग 26 हजार गीत गाने का रिकॉर्ड है।

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