खरी-खरी

जनता क्यों नहीं चुनती राष्ट्रपति

न हम राष्ट्रपति चुनते हैं न प्रधानमंत्री… राष्ट्रपति हम पर थोपे जाते हैं और पसंद के प्रधानमंत्री के लिए अनचाहे सांसदों को जिताते हैं…हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ही ऐसी है, जिसमें तंत्र कमजोर है और लोग मजबूर…जनता यदि मोदी को चाहे तो उनके दल के सांसद को जिताएं और पार्टी जिसे राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए उसे जिताने के लिए विधायक और सांसद पहुंच जाएं…प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के चयन का अधिकार जनता को मिलना चाहिए… प्रधानमंत्री देश को चलाते हैं और राष्ट्रपति पूरे देश के प्रथम नागरिक कहलाते हैं…वे महामहिम कहे जाते हैं तो उनके हाथों में जनता बल होना चाहिए न कि नेताओं का…लेकिन हर बार ऐसा होता आया कि कभी राष्ट्रपति के लिए जातिगत समीकरणों को देखा गया तो कभी नेताओं की दलगत राजनीति को… इसलिए मगरूरी के फैसले रोकने और जनहित के फैसले समझने वाले राष्ट्रपति के बजाय हमें केवल अभिभाषण पढऩे वाले राष्ट्रपति मिले…ऐसी ही दशा प्रधानमंत्रियों के लिए रही…हमने न कभी गुजराल को चुना न चंद्रशेखर को…न चरणसिंह हमारी पसंद थे और न ही वीपी सिंह जैसे नेता…देवगौड़ा को तो हम जानते तक नहीं थे, फिर भी वो हमारे प्रधानमंत्री बन गए…यही हाल राष्ट्रपतियों का रहा…हमें चाहिए कलाम जैसा प्रथम नागरिक, लेकिन जो बने वो हमारे लिए तोहफा रहे…इन सर्वोच्च पदों के चयन में यदि जनता की पसंद और वोटों की ताकत नजर आए तो सर्वोच्च पद सही मुकाम पाएं… लेकिन यदि हमें चुनना मोदी को है तो उनके दल के सांसदों को तोहफे में शहर सौंपना पड़ता है और सांसद प्रत्याशी अच्छा है, लेकिन नेतृत्व अच्छा नहीं है, इसीलिए अच्छे प्रत्याशी को छोडऩा पड़ता है…दुनिया के विकासशील देशों में चाहे वह अमेरिका हो या ब्रिटेन सर्वोच्च नेता जनता द्वारा ही चुना जाता है और प्रतिनिधि चाहे संसद का हो या राज्य का, उसका सहयोगी कहलाता है… ऐसे में पक्ष भी मजबूत नजर आता है और विपक्ष भी उभरकर आता है…भारत में भी यदि हम प्रधानमंत्री चुन पाएं…राष्ट्रपति अपनी पसंद का पाएं तो नेतृत्व चयन की मजबूरी के लिए पार्टी को नहीं सही नेताओं को चुनकर भेज पाएं… सर्वोच्च पदों पर लोकतंत्र की असली ताकत नजर आए…मोदीजी के नाम की मलाई सांसद नहीं खा पाएं और राहुल गांधी की सजा अच्छे कांग्रेसियों को नहीं मिल पाए…

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