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क्यों मनाया जाता है भाई दूज का पर्व? जानें इसके पीछे छिपा रहस्‍य

हिंदु धर्म में धार्मिक त्‍यौहारों का विशेष महत्‍व है। पूरे देश में आज भाई दूज (Bhai Dooj) का त्योहार मनाया जा रहा है। भाई दूज का त्योहार हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें व्रत, पूजा और कथा आदि करके भाई की लंबी आयु और समृद्धि (Prosperity) की कामना करते हुए माथे पर तिलक लगाती हैं। इसके बदले भाई उनकी रक्षा का संकल्प लेते हुए तोहफा देता है। ज्योतिषाचार्यों (astrologers) के अनुसार, भाई दूज के दिन शुभ मुहूर्त में ही बहनों को भाई के माथे पर टीका लगाना चाहिए। मान्यता है कि भाई दूज के दिन पूजा करने के साथ ही व्रत कथा भी जरूर सुननी और पढ़नी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

भाई दूज का पर्व कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस बार भाई दूज के टीके का शुभ मुहूर्त शनिवार, 6 नवंबर को विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त अनुसार प्रातः 8:00 बजे से 9:20 तक है। इस समय विश्व प्रसिद्ध “शुभ” का चौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध रहेगा। इसमें माताएं बहनें अपने भाई को टीका कर सकती हैं। इसके बाद तीन बहुत ही शानदार चौघड़िया मुहूर्त दोपहर 12:10 से शाम 4:10 तक “चर, लाभ ,अमृत” के उपलब्ध रहेंगे, इसमें सभी बहनें अपने भाई के टीका करके उनकी लंबी आयु और स्वास्थ लाभ के लिए मनोकामना कर सकती हैं। यह इस दिन के सबसे अच्छे मुहूर्त हैं, जिसमें माताएं-बहनें अपने भाई के टीका करके उनके लिए शुभ मंगलकामनाएं कर सकती हैं।

क्यों मनाया जाता है भैया दूज का त्योहार
भगवान सूर्य नारायण(Lord Surya Narayan) की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।



यमराज (Yamraj) ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।

यमुना ने कहा कि हे भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।

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