इंदौर। देश के राजनीतिक दलों (Political parties) में अपने आपको दूसरे दलों से अलग रखने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) में पद का संघर्ष चरम पर चल रहा है। जिला अध्यक्ष (District president) नियुक्त करने में पार्टी के दिग्गज नेताओं के भी पसीने छूट रहे हैं। जो नेता हमेशा अपने भाषण में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को देवतुल्य (god-like workers)कहते रहे हैं, उन नेताओं के बीच अध्यक्ष पद पर अपने समर्थक को बैठाने के लिए आखिर इतना संघर्ष क्यों हो रहा है?
शुरू से ही भाजपा को एक अलग तरह की पार्टी माना जाता रहा है। एक ऐसी पार्टी, जो समन्वय के साथ चलती है। एक ऐसी पार्टी, जो अपने मुद्दों पर काबिज रहती है। एक ऐसी पार्टी, जिसमें टीम वर्क होता है। एक ऐसी पार्टी, जिसमें पद के लिए संघर्ष नहीं होता है। एक ऐसी पार्टी, जिसमें प्रदेश और राष्ट्रीय इकाई द्वारा जिसे जो जिम्मेदारी दी जाती है सभी उसे हंसते हुए स्वीकार कर लेते हैं।
यह इमेज अब तक भाजपा को लेकर बनी हुई रही है। इस बार जब पार्टी के संगठन पर्व के तहत संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि पार्टी में पद पाने के लिए इतनी ज्यादा जोड़तोड़ की स्थिति बन जाएगी। कोई इस बात का अंदाज नहीं लगा पा रहा था कि पार्टी में जिला अध्यक्ष पद पर अपने समर्थक को नियुक्ति दिलाने के लिए पार्टी के बड़े नेताओं के बीच जोरदार संघर्ष की स्थिति बन जाएगी। यह संघर्ष की स्थिति अभी जनमानस के बीच सामने नहीं आई है। पार्टी के अंदरखाने में संघर्ष कितना ज्यादा और किस कदर चल रहा है इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी द्वारा मध्यप्रदेश के 62 जिला अध्यक्ष की नियुक्ति करने के लिए अब तक पांच सूची जारी की जा चुकी हैं। इन सूची के माध्यम से पार्टी अब तक 56 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति कर चुकी है। शेष बचे हुए 6 जिला अध्यक्ष की नियुक्ति पार्टी के नेताओं के लिए चुनौती बन गई है।
मध्यप्रदेश की राजनीतिक राजधानी भोपाल के अध्यक्षों की नियुक्ति तो हो गई, लेकिन व्यापारिक राजधानी इंदौर के अध्यक्ष तय करना मुश्किल साबित हो रहा है। हर दिन सुबह से पार्टी के नेताओं द्वारा दावा किया जाता है कि आज शाम तक शेष बचे हुए अध्यक्षों की नियुक्ति हो जाएगी। फिर शाम होती है तो कहा जाता है कि रात तक, फिर जब रात होती है तो कहा जाता है कि बस थोड़ी देर में, फिर जब वह देर भी हो जाती है तो पूरी कहानी अगले दिन के लिए टाल दी जाती है।
इंदौर के जिला अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच कई बार कई दौर की बैठक हो गई है। हर बैठक के बाद यह अंदाजा लगाया गया कि अब तो कम से कम सारे मामले सुलझ गए हैं और पार्टी अपने नए अध्यक्ष का ऐलान कर देगी। यह अंदाजा भी हर दिन और हर बार गलत साबित होता रहा है। नगर निगम, राज्य सरकार और केंद्र सरकार में भाजपा के सत्ता में होने का परिणाम है कि इसके जिला अध्यक्ष का महत्व किसी सांसद या विधायक से कम नहीं है। यही सबसे बड़ा कारण है, जिसके चलते हर नेता चाहता है कि संगठन के मुखिया के रूप में उसका समर्थक होना चाहिए। पार्टी के जिला अध्यक्ष का सीधा संवाद संगठन के प्रदेश अध्यक्ष और सरकार के मुखिया, यानी मुख्यमंत्री के साथ होता है। ऐसे में जिला अध्यक्ष बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। जिला अध्यक्ष का यह महत्व ही पार्टी के नेताओं के बीच अपने समर्थक को इस पद पर बैठाने के लिए पूरी ताकत लगाने का कारण बन रहा है। इस नियुक्ति में जो स्थिति बनकर सामने आ रही है वह भाजपा की छवि को तोडऩे का काम कर रही है। बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद ऐसा लग रहा है कि अब भाजपा में भी अपने पट्ठे को अध्यक्ष बनाने के लिए कांग्रेस की तरह ही नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। निश्चित तौर पर अब भाजपा की जो छवि पद के संघर्ष से बनकर सामने आ रही है वह भाजपा को लेकर जनमानस के मन में बने हुए विश्वास को खंडित करने वाली है।
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