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भगवान गणेश को क्यों अधिक प्रिय है मोदक ? इसके बिना अधूरी मानते हैं पूजा

नई दिल्‍ली. पुराणों में गणेश जी (Lord Ganesha) के देवताओं में प्रथम पूज्य होने की अनेक कथाओं का उल्लेख है. पद्मपुराण के सृष्टि खण्ड के अनुसार गणेश जी के प्रथम पूज्य होने की एक कथा बताई गई है, जो व्यास जी ने संजय से कही है.

पार्वती माता ने बनाया दिव्य मोदक
इस कथा के अनुसार पूर्वकाल में पार्वती जी ने घोर तपस्या कर भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया. फिर उनके संयोग से स्कन्द और गणेश (Lord Ganesha) नामक दो पुत्रों को जन्म दिया. उन दोनों को देखकर देवताओं की पार्वती जी पर बड़ी श्रद्धा हुई और उन्होंने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक पार्वती जी के हाथ में देकर उसकी महिमा का बखान किया. दिव्य मोदक इतना आकर्षक था और उसकी सुगंध पूरे वातावरण में फैल रही थी कि दोनों बालक उसे माता से खाने के लिए मांगने लगे.

मोदक को सूंघने मात्र से अमरत्व
तब पार्वती जी विस्मित होकर पुत्रों से बोलीं, ‘मैं पहले इसके गुणों का वर्णन करती हूं, तुम दोनों सावधान होकर सुनो. इस मोदक के सूंघने मात्र से अमरत्व प्राप्त होता है. जो इसे सूंघता और खाता है, वह सम्पूर्ण शास्त्रों का मर्मज्ञ, सब तन्त्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान के तत्व को जानने वाला और सर्वज्ञ हो जाता है. इसमें तनिक भी संदेह नहीं.’


गणेश जी ने की माता-पिता की परिक्रमा
उन्होंने पुत्रों से आगे कहा, ‘तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूंगी. तुम्हारे पिता की भी यही सम्मति है.’ माता के मुख से ऐसी बात सुनकर परम चतुर स्कन्द मयूर पर आरूढ़ हो तुरंत ही त्रिलोकी के तीर्थों की यात्रा के लिए चल दिए. उन्होंने क्षण भर में सब तीर्थों का स्नान कर लिया. इधर लम्बोदर यानी गणेश जी (Lord Ganesha) स्कन्द से भी आगे बढ़कर बुद्धिमान निकले. वे माता-पिता की परिक्रमा करके बड़ी प्रसन्नता के साथ पिता जी के सम्मुख खड़े हो गए, क्योंकि वे जानते थे कि माता-पिता की परिक्रमा से सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है, इससे बड़ा धर्माचरण दूसरा कोई नहीं.

शिव-पार्वती हो गए गणेश जी पर प्रसन्न
जब सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा कर स्कन्द लौटकर आए और बोले, ‘मां, मुझे मोदक दीजिए.’ तब पार्वती जी बोलीं, ‘समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के सम्पूर्ण व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन आदि सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते. गणेश ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने माता-पिता का पूजन और प्रदक्षिणा की है. गणेश का यह गुण सैकड़ों गुणों से भी बढ़कर है, इसलिए देवताओं द्वारा बनाए गए इस दिव्य मोदक का वास्तविक अधिकारी गणेश ही है. मैं गणेश (Lord Ganesha) को ही यह मोदक अर्पण करती हूं. माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले गणेश की पूजा होगी.’

गणेश जी को मोदक बेहद प्रिय
महादेव जी बोले, ‘इस गणेश (Lord Ganesha) के ही अग्रपूजन से सम्पूर्ण देवता प्रसन्न होंगे.’ गणेश जी ने बहुत ही प्यार से उस दिव्य मोदक को खाया. तभी से गणेश जी को सभी खाद्य पदार्थों में मोदक सर्वाधिक प्रिय है. इसलिए किसी भी पूजन में सबसे पहले गणेश जी का पूजन होता है और उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)

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