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UPA में सिमटकर रह जाएगा INDIA गठबंधन? कांग्रेस से कोई नाराज तो किसी ने तोड़ा नाता

नई दिल्ली: पीएम मोदी को सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्ष के 28 दलों ने मिलकर आठ महीने पहले पटना में ‘INDIA गठबंधन’ की बुनियाद रखी था, लेकिन चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही विपक्षी कुनबा बिखरता जा रहा है. विपक्षी दलों के एक मंच पर लाने नीतीश कुमार पहले ही इंडिया गठबंधन से नाता तोड़कर अलग हो चुके हैं और उसके बाद से एक के बाद एक सहयोगी दल साथ छोड़ते जा रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के बाद पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी अकेले दम पर 2024 का चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इस तरह से विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन कहीं यूपीए तक सिमटकर न रह जाए.

जेडीयू से लेकर आरएलडी तक इंडिया गठबंधन से अलग हो चुके हैं. अखिलेश यादव से लेकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक के साथ कांग्रेस का तालमेल नहीं बैठ पा रहा है. इस तरह सहयोगी दल चाहें कितना भी दावा करें कि हम गठबंधन के साथ हैं, लेकिन पार्टियों में चलता अंतर्द्वंद्व और असीम महत्वाकांक्षाओं की वजह से एक के बाद एक विकेट गिरता जा रहा है. इस तरह कांग्रेस के साथ विपक्ष के आए तमाम नए दल ही साथ छोड़ रहे हैं. ऐसे में जिस तरह से INDIA गठबंधन का स्वरूप दिख रहा है, उसमें कहीं आरजेडी, जेएमएम, डीएमके और लेफ्ट पार्टियां ही न बचें.

इंडिया गठबंधन से कौन-कौन हुए अलग?
दिलचस्प बात यह है कि जिस नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की शुरुआत की, वह खुद अब एनडीए का हिस्सा हैं. नीतीश कुमार ही विपक्ष के तमाम दलों के साथ बातचीत कर उन्हें 23 जून 2023 को पटना में एक मंच पर लाए थे. लेकिन अब खुद ही उन्होंने बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हाथ मिला लिया है. उनका ऐसे अचानक से एनडीए में शामिल होना विपक्षी गठबंधन के लिए बहुत बड़ा झटका था. नीतीश के बाद उत्तर प्रदेश के इंडिया गठबंधन के प्रमुख सहयोगी आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भी खुद को अलग कर लिया है और एनडीए में उनका शामिल होना गठबंधन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं. उनका कहना था कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं करेगी. हालांकि, बाद में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने सफाई देते हुए कहा कि हम इंडिया गठबंधन से अलग नहीं हो रहे हैं. पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित करेंगे. महबूबा मुफ्ती ने यह स्टैंड तब लिया है जब नेशनल कॉफ्रेंस ने अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी. इस तरह से जम्मू-कश्मीर के दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के इंडिया गठबंधन से अलग होने से कांग्रेस अकेले पड़ गई है.


सीट शेयरिंग पर सियासी टकराव
इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की कांग्रेस के साथ तालमेल नहीं बैठ पा रहा है. बंगाल में टीएमसी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी. पंजाब में भी सत्ताधारी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस को एक सीट देने का विकल्प दिया है. जबकि, असम से लेकर गुजरात और हरियाणा तक में अपने उम्मीदवार के नामों की घोषणा कर रही है.

सपा के साथ कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे पर अभी तक तालमेल नहीं हो पा रहा. इसके चलते अखिलेश यादव ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने से अपने कदम पीछे खींच लिया है. सपा की तरफ से कांग्रेस को 17 सीट देने का ऑफर दिया गया है. जबकि, कांग्रेस की डिमांड 19 सीटों की है. कांग्रेस मुरादाबाद क्षेत्र की दो सीटें मांग रही है, जिस पर अखिलेश सहमत नहीं हैं. इसी तरह से तमिलनाडु में डीएमके साथ भी सीट शेयरिंग फॉर्मूला फंसा हुआ है. डीएमके ने 8 सीटें दे रही है तो कांग्रेस 12 सीटें मांग रही है. ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह सीट बंटवारे पर अड़े हुए हैं, उसके चलते कांग्रेस के साथ कितने दिनों तक रहते यह कहना मुश्किल है जबकि डीएमके साथ तालमेल बनने की संभावना है.

इंडिया गठबंधन क्या यूपीए बन जाएगा?
बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुए दल अब जिस तरह एक-एक कर छोड़ रहे हैं और क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ ही सीटों का बंटबारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है, जिसके चलते अब इंडिया गठबंधन पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं. इंडिया गठबंधन कहीं लोकसभा चुनाव होने तक यूपीए बनकर न रह जाए. यह बात ऐसी ही नहीं कही जा रही है, क्योंकि जिस तरह से एक के बाद एक दल छोड़कर जा रहे हैं और अभी फिलहाल जो बचे हैं, वो दल वहीं है, जो कभी कांग्रेस के अगुवाई वाला यूपीए गठबंधन का हिस्सा रहे हैं.

2004 में सोनिया गांधी ने बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का गठन किया था. कांग्रेस ने बिहार में आरजेडी-एलजेपी-एनसपी के साथ महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखंड में जेएमएम-आरजेडी, आंध्र प्रदेश में टीआरएस(बीआरएस) और तमिलनाडु में डीएमके-एमडीएमके-पीएमके, जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, पूर्वोत्तर के मणिपुर और गोवा में एनसीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया था.

एनसीपी और शिवसेना दोनों ही टूट चुकी हैं
कांग्रेस ने 20 साल के बाद इंडिया गठबंधन में केसीआर के छोड़कर बाकी अलावा दूसरे क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर बीजेपी से मुकाबला करने के लिए उतरी थी, लेकिन उसमें से जो दल साथ आए थे, वो एक-एक कर साथ छोड़ते जा रहे हैं. इस तरह से कांग्रेस के साथ फिलहाल यूपीए वाले सहयोगी दल ही बचे हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ गठबंधन कर रखा है, लेकिन एनसीपी और शिवसेना दोनों ही टूट चुकी हैं.

झारखंड में जेएमएम के साथ कांग्रेस गठबंधन बना हुआ है और दोनों के बीच मतभेद नहीं है. बिहार में कांग्रेस के साथ आरजेडी और लेफ्ट है. तमिलनाडु में डीएमके साथ कांग्रेस का गठबंधन में सीट शेयरिंग का मामला सुलझ सकता है. जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉफ्रेंस अलग होती है तो कांग्रेस पीडीपी मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. लेफ्ट के साथ बंगाल में कांग्रेस चुनाव लड़ सकती है, लेकिन केरल में फ्रेंडली फाइट करेगी?

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