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EU को लोकतांत्रिक रूप देने का Plan क्‍या हो पाएगा कामयाब?

ब्रसेल्स। यूरोपियन यूनियन (European Union) (EU) के ढांचे को लोकतांत्रिक स्वरूप देने की पहल पर कई हलकों से सवाल उठाए जा रहे हैं। इसकी सफलता को लेकर आशंकाएं जताई गई हैं। बीते गुरुवार को यूरोपीय संसद ने ‘कांफ्रेंस ऑन फ्यूचर ऑफ यूरोप’ (Conference on future of europe) नाम की पहल की मंजूरी दी थी। इसे एक विचार-विमर्श के मंच के रूप में विकसित करने का इरादा जताया गया है, ताकि नागरिकों को अपनी बात कहने का मौका मिल सके। नागरिक यहां बता सकेंगे कि वे अगले पांच, दस या बीस साल में कैसा यूरोप देखना चाहते हैं।



गुजरे वर्षों में ईयू के ढांचे की आलोचना बढ़ती गई है। इसे अलोकतांत्रिक बताया गया है। हालांकि ईयू में यूरोपियन संसद निर्वाचित संस्था है, लेकिन आम समझ है कि इसके पास निर्णायक ताकत नहीं है। असल ताकत ईयू परिषद, यूरोपीय आयोग और यूरोपियन सेंट्रल बैंक के पास है, जिन्हें आम तौर पर कॉरपोरेट सेक्टर के पैरोकार नौकरशाह चलाते हैं। ब्रिटेन के ईयू से अलगाव की एक वजह ईयू ढांचे को लेकर वहां फैली शिकायतें रहीं। कई दूसरे सदस्य देशों में भी ईयू विरोधी जन भावना देखी गई है। इसके मद्देनजर ताजा पहल को अहम माना जा रहा है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2019 में ‘कांफ्रेंस ऑन फ्यूचर ऑफ यूरोप’ नाम की पहल शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। तब योजना बनी थी कि मई 2020 से इसकी शुरुआत की जाए। लेकिन ईयू के विभिन्न सदस्यों देशों के बीच मतभेद और कोरोना वायरस महामारी आ जाने के कारण ऐसा नहीं हो सका। अब यूरोपीय संसद ने योजना को फिर से जिंदा किया है। हालांकि अभी भी इसकी शुरुआत को लेकर आशंकाएं हैं। योजना लागू होने के पहल यूरोपीय आयोग और ईयू परिषद को इस पर अंतिम मुहर लगानी होगी।

एक अंदेशा यह जताया गया है कि प्रस्तावित कांफ्रेंस कहीं नौकरशाही का एक और स्तर बन कर ना रह जाए। योजना के मुताबिक कांफ्रेंस का एक संयुक्त अध्यक्ष, कार्यकारी बोर्ड, सचिवालय और पूर्ण अधिवेशन (कांफ्रेंस प्लेनरी) होंगे। ये नई संस्थाएं पहले से ही अत्यधिक नौकरशाही रुकावटों से प्रभावित ईयू को सहज और अधिक लोकतांत्रिक स्वरूप दे पाएंगी, इसको लेकर संदेह जताए गए हैं। इस पहल पर बहस के दौरान यूरोपीय संसद में ग्रीन पार्टियों के समूह के सह-नेता फिलिप लैम्बर्ट्स ने कहा- हमें सुधारों की जरूरत है। लोकतंत्र को अवश्य ही अधिक समावेशी होना चाहिए। लेकिन यह साफ नहीं है कि ऐसा करने के लिए कांफ्रेंस सही मंच होगा।

हालांकि इस पहल के समर्थकों का कहना है कि कोरोना महामारी ने एक बार फिर इसे साफ कर दिया है कि ईयू के ढांचे में सुधार की जरूरत है। सोशलिस्ट और डेमोक्रेट्स समूहों के नेता इरात्क्से गार्सिया ने कहा कि प्रस्तावित कांफ्रेंस पूरे यूरोप के आम लोगों को एक भूमिका देने की पहल है।

गौरतलब है कि ईयू को लेकर लोगों में बढ़ते संदेह को देखते हुए पिछले एक दशक में ईयू कई और पहल कर चुका है। यूरोपीय आयोग और कुछ देशों ने अपने स्तर पर ‘नागरिक संवाद’ की शुरुआत की थी, जिसमें टाउन हॉल सभाओं में ईयू के बारे में लोगों की राय ली जाती थी। फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों ने ‘नागरिक बहस’ की शुरुआत की, जिनमें यूरोप के भविष्य सहित कई मुद्दों पर लोगों से बातचीत की गई है। लेकिन अब तक इन कोशिशों से लोगों के असंतोष को दूर करने में ज्यादा मदद नहीं मिली है।

अब ‘कांफ्रेंस ऑन फ्यूचर ऑफ यूरोप’के लिए पारित हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि ईयू और उसकी नीतियों का भविष्य तय करने में ईयू के नागरिकों को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। इस मकसद से ईयू की संस्थाएं बहुस्तरीय सम्मेलन जैसे आयोजन करेंगी। साथ ही एक बहुभाषी डिजिटल प्लैटफॉर्म बनाया जाएगा।

लेकिन फिलहाल, जानकारों के बीच आम धारणा यही है कि अच्छे मकसद के बावजूद मुमकिन है कि ये कोशिश औपचारिक बन कर रह जाए। संदेह यह है कि ईयू की नौकरशाही इसमें ऐसे पेच फंसा सकती है, जिससे आम नागरिकों के लिए सक्रिय भूमिका’निभाना मुश्किल बना रहेगा।

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