- किसी के पास फिल्टर करने का लाइसेंस नहीं तो किसी के पास पानी बेचने का
उज्जैन। शहर में लगभग 200 आरओ वाटर प्लांट हैं। जिनके द्वारा रोजाना हजारों घरों, दुकानों और दफ्तरों तक पानी पहुँचाया जाता है। यह पानी शुद्ध है या नहीं, इसका कोई प्रमाणीकरण नहीं, बावजूद लोग इसे शुद्ध पानी समझ कर पी रहे हैं। खास बात यह हैं कि इस पानी को जाँचने और अशुद्ध पानी सप्लाई करने पर कार्रवाई करने का अधिकार न तो खाद्य विभाग के पास हैं ना ही नगर निगम के पास। जिसका फायदा आरओ वाटर प्लांट संचालक उठा रहे हैं।
उल्लेखनीय यह है कि शहर में आरओ वाटर प्लांट का कारोबार बड़े स्तर पर किया जा रहा हैं। उज्जैन में करीब 250 प्लांट चल रहे हैं। इसमें से अधिकांश के पास न तो पानी को फिल्टर करने का लाइसेंस है और ही उसे बाजार में बेचने का और वे पानी में कई तरह के केमिकल मिलाकर 7 लाख की आबादी वाले शहर के आधे हिस्से को सप्लाई कर रहे है, वहीं लोग भी इसे शुद्ध पानी समझ कर पी रहे हैं। जाहिर है कि आरओ वाटर प्लांट के नाम पर चल रहा कारोबार बिना किसी नियम-कायदों के चल रहा है।
रोजाना हजारों केन बेची जा रही
आरओ संचालकों का कहना है वर्तमान में शहर में 20 लीटर की 3000 से लेकर 6000 कैन रोज सप्लाय की जाती है। इसके मायने यह हैं कि लोग हर महीने 36 लाख रुपए इस पानी पर खर्च कर रहे हैं। अग्रिबाण ने इस पानी की पड़ताल की तो पता चला कि कुछ आरओ प्लांट संचालक उपभोक्ताओं को बोरिंग का पानी ही पिला रहे हैं। वह भी बिना फिल्टर किए। इसी पानी को वे 1-2 रुपए प्रति लीटर में बेचकर मुनाफा कमाया जा रहा है। कुछ आरओ प्लांट से मिली 20 लीटर की कैन हो या खुली रिफिल वाली कैन, इनमें सिर्फ चिल्ड वाटर ही दिया जा रहा है।
कार्रवाई का प्रावधान नहीं
मामले में खाद्य सुरक्षा अधिकारी बसंत शर्मा ने बताया कि खुले पानी की जाँच का हमारे पास अधिकार नहीं हैं। हमारे पास सिर्फ पेक बाटल की जाँच के ही प्रावधान हैं। इसलिए विभाग आरओ वाटर प्लांट की जाँच नहीं करता हैं, वहीं निगम अधिकारियों की माने तो आरओ प्लांट जांचने का अधिकार नगर निगम के पास भी नहीं है।