इंदौर न्यूज़ (Indore News)

42 एकड़ हुुकमचंद मिल की जमीन हो गई अब एक हजार करोड़ से ज्यादा की

  • मुंबई डीआरटी ने वर्षों पहले 400 करोड़़ आंकी थी कीमत, अब 25 मई को मिल मजदूरों की आपत्ति पर होगी सुनवाई
  • सरकार के खिलाफ सडक़ों पर उतरने का भी किया फैसला

इंदौर। बीते कई वर्षों से हुुकुमचंद मिल के मजदूर सडक़ों से लेकर अदालतों तक संघर्ष करते रहे हैं, लेकिन सरकार सिवाय आश्वासन के कोई ठोस पहल नहीं कर पाई। लिहाजा अब एक बार फिर सडक़ों पर मजदूरों ने उतरने का निर्णय लिया है. वहीं अभी 25 मई को मुंबई डीआरटी के समक्ष लगाई गई आपत्ति की भी सुनवाई होना है। दरअसल हुुकुमचंद मिल की साढ़े 42 एकड़ जमीन की नीलामी मुंबई डीआरटी को करना है। वर्षों पहले 400 करोड़ रुपए इस जमीन की कीमत आंकी थी, मगर अब भू-उपयोग परिवर्तन और जमीनों के भाव में आई तेजी के चलते बीच शहर में मौजूद मिल की जमीन एक हजार करोड़ से अधिक कीमत की हो गई है।

हुकमचंद मिल के 6 हजार मजदूर और उनके 50 हजार से अधिक परिवार के सदस्यों में सरकार के प्रति काफी आक्रोश है, क्योंकि पिछले कई सालों से मजदूरों को सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं। मजदूरों की बकाया राशि 220 करोड़ रुपए है, जिसमें से हाईकोर्ट ने 50 करोड़ रुपए दिलवाए थे और शेष बचे 170 करोड़ रुपए अभी भी बाकी हैं। दूसरी तरफ एक-एक कर मजदूरों की मौत भी हो रही है। इंटक के संगठन मंत्री हरनामसिंह धारीवाल और मिल समिति के महासचिव किशनलाल बोखरे के साथ ही मजदूरों के हित में लड़ाई लडऩे वाले नरेन्द्र श्रीवंश का कहना है कि हर रविवार को मजदूरों की बैठक होती है।


कल भी हुई बैठक में महाआंदोलन करने का फैसला लिया, क्योंकि सरकार और निगम जमीन नीलामी में रोड़े अटकाते रही है और मुंबई डीआरटी भी जमीन पर कब्जा करके बैठा है और सालों पहले उसने मात्र 400 करोड़ रुपए जमीन की कीमत आंकी थी, जो अब बढक़र एक हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गई है, जबकि मात्र 170 करोड़ रुपए निकलते हैं और इससे कई गुना अधिक जमीन की कीमत है। अभी 25 मई को मुंबई डीआरटी के समक्ष मजदूरों की ओर से लगाई गई आपत्ति की सुनवाई होना है। न्यायालय ने भी परिसमापक एवं डीआरटी कोर्ट को जमीन नीलाम करने का अंतिम आदेश 12 मार्च को दिया था, लेकिन निगम ने हाईकोर्ट में जमीन नीलामी पर रोक लगाने का आवेदन प्रस्तुत कर दिया। दरअसल, हाईकोर्ट ने इंदौर निगम को ही जमीन मालिक माना है। मजदूर नेताओं का कहना है कि जमीन की नीलामी शासन या निगम करे, हमें तो हमारी बकाया राशि अविलंब मिल जाए, क्योंकि पिछले कई वर्षों से सरकार से लेकर अदालतों के चक्कर काट-काटकर मजदूर और उनके परिवारजन निराश हो गए हैं।

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