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जम्‍मू में देश का पहला ड्रोन हमला, जानें आसमान में मंडराते दुश्‍मनों को कैसे कर सकते हैं तबाह

 

नई दिल्ली। जम्‍मू के एयरफोर्स स्‍टेशन पर हुए हमले ने सबका ध्‍यान खींचा है। भले ही ड्रोन के जरिए हुए इस हमले से ज्‍यादा नुकसान न हुआ हो, मगर सुरक्षा के लिहाज से यह बेहद गंभीर घटना है। आनन-फानन में सुरक्षा एजेंसियां इस हमले की तह तक पहुंचने में लग गई हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बुधवार को अहम बैठक होने वाली है जिसमें इस हमले पर चर्चा के पूरे आसार हैं। वहीं, जम्‍मू में लगातार तीसरे दिन सेना ने ड्रोन उड़ते देखे हैं। बुधवार को ड्रोन तीन अलग-अलग जगहों पर उड़ता देखा गया।

रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने हमारे सहयोगी टाइम्‍स ऑफ इंडिया में एक लेख के जरिए बताया है कि ड्रोन्‍स से खतरा कितना बड़ा है। वह समझाते हैं कि क्‍यों ड्रोन्‍स को ट्रैक करना इतना मुश्किल है और कैसे आसमान में मंडराने वाले इन दुश्‍मनों को तबाह किया जा सकता है।

ड्रोन्‍स इतने खतरनाक क्‍यों हैं?

                                              वायुसेना के पूर्व अधिकारी ड्रोन्‍स को पांच वजहों से खतरा मानते हैं।

  • यह बेहद सस्‍ते हैं और कोई भी इन्‍हें ऑनलाइन खरीद सकता है। कोई शख्‍स किस मकसद के लिए ड्रोन खरीद रहा है, यह पता लगाना इस समय नामुमकिन है।
  • ड्रोन इस्‍तेमाल करने वाले की पहचान छिपी रहती है।
  • ड्रोन्‍स को चलाने के लिए कोई बहुत ज्‍यादा तकनीकी जानकारी की जरूरत नहीं है। जीपीएस के जरिए छोटे पेलोड को आसानी से कहीं भी भेजा जा सकता है। अगर ड्रोन्‍स पिज्‍जा और दवाएं ले जा सकते हैं तो बम भी।
  • आतंकियों के ड्रोन्‍स इस्‍तेमाल करने का लोगों के जेहन पर खासा असर पड़ता है, सुरक्षाबलों पर भी।
  • आतंकी ड्रोन्‍स को पूरे देश में कहीं भी तैनात किया जा सकता है। इनसे निपटने में बड़े-बड़े हथियारों और फौज की तैनाती उतनी कारगर नहीं है।

ड्रोन्‍स को पकड़ पाना इतना मुश्किल क्‍यों है?

  • ड्रोन्‍स बैटरी पर चलते हैं इसलिए ज्‍यादा शोर नहीं करते। यह मैनुअली ऑपरेट किए जा सकते हैं या फिर नीचे उड़ने के लिए प्रोग्राम किए जा सकते हैं।
  • सामान्‍य सिविल और मिलिट्री रडार्स की पकड़ में यह नहीं आते क्‍योंकि उनका रडार क्रॉस-सेक्‍शन काफी छोटा होता है। आकार में कम होने की वजह से यूं निगरानी भी मुश्किल है।

 

ड्रोन्‍स पर निगरानी के लिए क्‍या करना चाहिए?
रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर के अनुसार, सेंसर्स और रडार्स का कॉम्बिनेशन इस्‍तेमाल कर ड्रोन्‍स का पता लगाया जा सकता है। उनके मुताबिक, स्‍पेशल मिलीमीट्रिक वेव रडार्स, अकाउस्टिक, इलेक्‍ट्रो-ऑप्टिक और इन्‍फ्रारेड सेंसर्स का कॉम्‍बो बेहतर टूल साबित हो सकता है।

ड्रोन्‍स को खत्‍म कैसे करते हैं?
ड्रोन्‍स को या तो बंदूकों के जरिए निशाना बनाया जाता है या फिर खास तरह के जाल के जरिए। इसके अलावा इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके भी इस्‍तेमाल होते हैं। इनके जरिए ड्रोन के गाइडिंग इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स को खराब कर देते हैं। हाई पावर लेजर के जरिए भी ड्रोन्‍स तबाह किए जा सकते हैं।

ड्रोन्‍स को तबाह करना मुश्किल क्‍यों है?
ड्रोन के रात में उड़ान भरने या झुंड में आने पर तत्‍काल जवाबी कार्रवाई मुश्किल हो सकती है। जम्‍मू में हमने इसका एक ट्रेलर देखा।

 

आतंकी ड्रोन्‍स से निपटने के लिए सरकार क्‍या करे?

                                       एयर वाइस मार्शल (रिटा) मनमोहन बहादुर कहते हैं कि सरकार को पांच प्रमुख बिंदुओं पर काम करना चाहिए।

  • चूंकि हर अहम जगह की निगरानी संभव नहीं, इसलिए ऐसे में उन जगहों की लिस्‍ट बनाई जाए जिनकी सुरक्षा करनी है। इसमें कुछ शख्सियतें भी शामिल होंगी क्‍योंकि विदेशों में ड्रोन्‍स के जरिए हत्‍या करने की कोशिशें भी हुई हैं।
  • देश में ऐंटी-ड्रोन्‍स सिस्‍टम का रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट और उत्‍पादन शुरुआती चरण में है। ऐसे में कुछ खास जगहों के लिए विदेश से आयात होना चाहिए।
  • DRDO ने ऐंटी-ड्रोन सिस्‍टम बनाए हैं जो राष्‍ट्रीय दिवसों पर VIPs की सुरक्षा करते हैं। DRDO को ‘जम्‍मू’ चुनौती का सामना करना चाहिए और R&D को तेज करना चाहिए।
  • DRDO के रिकॉर्ड को देखते हुए प्राइवेट इंडस्‍ट्री को भी शामिल किया जाना चाहिए। iDEX इनशिएटिव में कई प्‍लेयर्स होने चाहिए।
  • ड्रोन्‍स की खरीद पर निगरानी के लिए सिस्‍टम बनाना चाहिए।
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