डेस्क। विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह रूस में अफगानिस्तान मामले में भारत के लिए राह खोज रहे हैं। उन्होंने वहां तालिबान के नेता से भेंट की है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के साथ तालमेल बनाकर पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान के मोर्चे पर उच्चस्तरीय प्रयास कर रहे हैं। इन सबके बाद भी स्थिति यह है कि भारत की गाड़ी पाकिस्तान के मोर्चे से थोड़ा स्पीड पकड़ती है तो चीन या फिर अफगानिस्तान के मोर्चे पर आकर उलझ जाती है।
चीन ने काफी बढ़ाया है सिर दर्द
चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद को पहले दोकलाम, फिर पूर्वी लद्दाख पर अक्रामक रुख दिया था, लेकिन अब विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय के अधिकारियों को उसके अरुणाचल से लेकर लद्दाख और उत्तराखंड के बाराहोती तक काफी कुछ चिंताजनक दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात 13 वें दौर की सैन्य कमांडर स्तरीय वार्ता का नतीजा रहा।
सेना मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि चीन केवल अरुणाचल प्रदेश के तवांग से सटे क्षेत्र में अपनी हलचल नहीं बढ़ा रहा है, बल्कि वह पूर्वी लद्दाख से लेकर बाराहोती तक अपनी सक्रियता बढ़ाने में लगा है। हालांकि चीन की नापाक चालों को देखकर भारत ने सतर्कता पर काफी जोर दिया है। अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्र में चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए पुख्ता सैन्य तैनाती, तोप आदि की तैनाती की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन चिंता के सभी कारण मौजूद हैं।
अफगानिस्तान पर भारत सकारात्मक भूमिका का पक्षधर
अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद भारत ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव करना शुरू किया है। पहले कतर और अब फिर रूस के बुलावे पर मास्को में नई दिल्ली ने विदेश सेवा के अधिकारी के माध्यम से पहल कराई है। भारत ने अफगानिस्तान से साफ कहा है कि वह आतंकवाद का पक्षधर नहीं है। उसे एक मजबूत, स्थिर और अफगानिस्तान के लोगों के हितों वाला अफगानिस्तान चाहिए।
भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्र भी कहते हैं कि हमेशा अफगानिस्तान को लेकर एक ही नीति पर नहीं चला जा सकता।
फिर अफगानिस्तान में भारतीय हैं और भारत के हित भी हैं। इनकी लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती। समझा जा रहा है कि भारत अफगानिस्तान के निर्माण में सहायता देने, मानवीय सहायता देने आदि के माध्यम से रिश्तों को संतुलित रखने के पक्ष में है। इसके पीछे अभी भारत की मंशा यही है कि अफगानिस्तान अपनी जमीन और अपने लोगों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद में न इस्तेमाल होने दे। काबुल में भी मानवीय मूल्यों की स्थापना के ठोस कदम उठाए।
पाकिस्तान है कि मानता नहीं
जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ, सीमापार के आतंकवाद तथा आतंकी घटना को लेकर मिल रहे इनपुट सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों के लिए चिंता पैदा करने वाले हैं। लेफ्टिनेंट जनरल (पूर्व) बलवीर सिंह संधू कहते हैं कि जिस तरह से पिछले दिनों आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह चिंता की बात है। पिछले सप्ताह से अबतक नौ सैनिकों की शहादत हो चुकी है।
जनरल संधू कहते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और वहां आतंकी संगठनों के हौसले कुछ बढ़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि खुफिया और सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अन्य सूत्र का कहना है कि राज्य के आतंकवाद प्रभावित हिस्से में सघन तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। आतंकियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने की कोशिशें चल रही हैं। जल्द ही आपको राज्य में एक बार फिर शांति देखने को मिलेगी।
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