लता दीदी यदि गाना नहीं गातीं… सचिन क्रिकेट नहीं खेलते… अंबानी व्यापार नहीं करते… अमिताभ एक्टर नहीं बनते… मोदी राजनीति में नहीं आते और अटलजी केवल गीत ही सुनाते तो कभी पहचान तक नहीं पाते… हर इंसान में कोई न कोई प्रतिभा होती है… लेकिन जरूरतों और जिम्मेदारियों के बोझ में दब जाती है… लेकिन जो अपनी प्रतिभा को पहचानते हैं… अपनी प्रतिभा को ही जरूरत का जरिया बनाते हैं… वो तल्लीन होकर जिम्मेदारी निभा पाते हैं… फिर उनमें से चंद लोग लता बनकर उभर पाते हैं… सचिन बनकर ख्याति पाते हैं… मोदी बनकर देश संवारते हैं और अमिताभ बनकर प्रेरणा दे पाते हैं… आज लता दीदी भले ही नहीं रहीं, लेकिन उनकी राह हमेशा अमर रहेगी…उनकी साधना युगों तक उनकी याद बनेगी…उनकी सादगी पर दुनिया सजदा करेगी…लेकिन जो लोग दीदी को समझ पाएंगे वो ही उनके कद्रदान कहलाएंगे…लता दीदी ने अपनी प्रतिभा को पहचाना…सुर को जाना और साधना को अपनी राह माना…सफलता की यात्रा का यहां समापन नहीं हो जाता, बल्कि शुरुआत होती है…लता दीदी ने संघर्ष को सारथी बनाया…संयम को अपनाया और सुरों को इस तरह गुंजाया कि पूरी दुनिया ने उन्हें सर पर बिठाया…लोग प्रतिभा को पहचानते हैं…राह भी बनाते हैं… संघर्ष भी अपनाते हैं, लेकिन संयम नहीं रख पाते हैं…राह में मुश्किलें आती हैं…पैर भी डगमगाते हैं…तब संयम की साधना टूट जाती है… संघर्ष की क्षमता अवसाद में डूब जाती है और सफलता विफलता में बदल जाती है…कोई यह नहीं समझ पाता है कि चुनौतियां ही सिखाती हैं…क्षमता की परीक्षा तब ही हो पाती है…अनुभवों को साधने की बारी तब ही आती है…संयम रखने … राह खुलने और मौका देखते ही आगे बढऩे की बुद्धि तब सफलता को चरम पर लाती है… लोग इसीलिए टूट जाते हैं, क्योंकि उनके सपने क्षमताओं से बड़े हो जाते हैं…लोग इसीलिए डगमगाते हैं कि वो लक्ष्य को आसान समझने लग जाते हैं…लोग इसीलिए ठहर जाते हैं कि मंजिलों की दूरी नहीं जान पाते हैं…जो लोग अपने लक्ष्य छोटे बनाते हैं…सपनों में जिंदगी नहीं बिताते हैं… सफलताओं पर नहीं इठलाते हैं…वही सुर की लता…क्रिकेट के सचिन…अभिनय के अमिताभ बन पाते हैं…लता दीदी आज नहीं हैं, लेकिन वो हमें याद रहेंगी…सुर बनकर दिल की बात कहेंगी…लेकिन जो उनकी साधना को समझ पाएगा…वो हर शख्स उनका अंश, यानी भारत-रत्न कहलाएगा…
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