
कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देबांगसू बसाक और न्यायमूर्ति बिभास रंजन डे की एक खंडपीठ ने एक बार फिर दोहराया है कि मौत से पहले दिया गया बयान एक निर्णायक सबूत है, जो आरोपी को सजा दिलाने के लिए स्वीकार्य है. इसलिए अगर किसी ने पूरे होश में मौत से पहले बयान दिया है तो उसे एक निर्णायक सबूत माना जाएगा. अदालत ने विस्तार से बताया कि दोषसिद्धि केवल मौत से पहले के बयान के आधार पर ही की जा सकती है.
इसकी दूसरे सबूतों से पुष्टि करना कानून का एक पूर्ण सिद्धांत नहीं है, यह केवल विवेक का नियम है. लाइव लॉ की एक खबर में कहा गया है कि इसके अलावा हाईकोर्ट की पीठ ने ये भी कहा कि जांच रिपोर्ट में कमियों के कारण सामने रखे गए दूसरे अन्य सबूतों को खारिज नहीं किया जाएगा. किसी को केवल अभियोजन पक्ष की एक चूक के आधार पर बरी नहीं किया जाएगा, जबकि सबूत का पूरा रिकॉर्ड आरोपी के खिलाफ है.
आईपीसी की धारा 498-ए और 302 के तहत दायर एक अभियोजन मामले में कहा गया है कि आरोपी जहां रहता था, वहां उसका बार-बार अपनी पत्नी के साथ झगड़ा होता था. झगड़े की अंतिम घटना में वे जिस घर में रहते थे, उसी में आरोपी ने अपनी पत्नी पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी. मृतक महिला और आरोपी की शादी साल 2003 में हुई थी. आरोपी अपनी पत्नी पर शक करता था और इसी वजह से उसके साथ लगातार मारपीट करता था.
निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में कोई कमी नहीं पायी और आरोपी को आईपीसी की धारा 498-ए और 302 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया. जो मृतक द्वारा दिए गए मौत के पहले के बयान, साक्ष्य और जांच के दौरान हासिल किए गए सबूतों के आधार पर किया गया था. अपीलकर्ता यानी आरोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष खुद को बरी करने की अपील की थी. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप नहीं किया. जिसने आरोपी को उसकी पत्नी की मौत का दोषी पाया गया था. जो कि मिट्टी का तेल डालकर उसे आग लगाने के कारण हुई थी.
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