
नई दिल्ली. रेअर अर्थ (rare earth) अयस्क भंडार के मामले में भारत (India) इस समय तीसरे स्थान (Third place) पर है। हालांकि, इसका उत्पादन प्रमुख वैश्विक देशों की तुलना में सबसे कम है, जो संसाधन उपलब्धता और वास्तविक उत्पादन के बीच भारी अंतर को दर्शाता है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत के पास लगभग 69 लाख टन रेअर अर्थ ऑक्साइड (आरईओ) भंडार है। इससे पहले चीन और ब्राजील हैं।
एमिकस के आंकड़ों के अनुसार, चीन के पास 4.4 करोड़ टन भंडार है। ब्राजील के पास 2.1 करोड़ टन का भंडार है। ऑस्ट्रेलिया (57 लाख टन), रूस (38 लाख टन), वियतनाम (35 लाख टन) और अमेरिका (19 लाख टन) शामिल हैं। अपने मजबूत भंडार के बावजूद भारत का उत्पादन सीमित है। 2024 में भारत ने केवल 2,900 टन दुर्लभ धातुओं का उत्पादन किया, जो वैश्विक स्तर पर सातवें स्थान पर रहा। चीन ने 2.7 लाख टन का उत्पादन किया, जिससे वह वैश्विक स्तर पर अग्रणी बन गया। अमेरिका 45,000 टन के साथ दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक था।
भारत के पास वैश्विक रेअर अर्थ खनिजों का करीब 6-7 फीसदी भंडार है। फिर भी वैश्विक उत्पादन में इसका योगदान एक फीसदी से भी कम है। देश के अधिकांश भंडार मोनाजाइट से भरपूर तटीय रेत में पाए जाते हैं, जिनमें रेडियोधर्मी तत्व थोरियम भी मौजूद होता है। इससे खनन और प्रसंस्करण अधिक जटिल हो जाता है और सख्त नियमों के अधीन हो जाता है। नियामक चुनौतियों ने ऐतिहासिक रूप से देश में रेअर अर्थ खनिजों के खनन को धीमा कर दिया है। दशकों तक उत्पादन काफी हद तक सीमित रहा और मुख्य रूप से इंडियन रेयर अर्थ्स लि. (आईआरईएल) नियंत्रित करता था।
चीन 90% को करता है नियंत्रित
चीन वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी शोधन क्षमता का लगभग 90 फीसदी और भारी रेअर अर्थ तत्वों के करीब संपूर्ण प्रसंस्करण को नियंत्रित करता है। इससे चीन को संपूर्ण मूल्य शृंखला में एक बड़ा लाभ मिलता है। भारत की प्रसंस्करण और शोधन क्षमता बहुत सीमित है। वार्षिक उत्पादन केवल कुछ हजार टन रहा है और वैश्विक रेअर अर्थ धातुओं के व्यापार में भारत की भूमिका लगभग नगण्य रही है।
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