भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

आफताब भाई के पास है 200 साल पुराने एंटीक लेम्प और लालटेन का जख़ीरा

अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
मगर चराग़ ने लौ को संभाल रक्खा है।

आफताब लईक अहमद 67 बरस के हैं। आफताब के मायने सूरज या रोशनी के हैं। किहाज़ा अपने नाम के मुताबिक़ आफताब मियां को चरागों (लेम्प) और कन्दील (लालटेन) जमा करने का इंतहाई शौक़ है। 1971 में भारत पाकिस्तान की जंग के वखत इनकीं उमर पंदरा-सोला बरस की रई होगी। हाथी खाने में रेते थे। इनकी वालिदा कुंवर मलिका हुजूर जहां बेगम छोटा बैरसिया के जागीरदार यूसुफ अली खां साब की बेटी थीं। इंडो पाक जंग के दौरान जब भोपाल में भी रात को ब्लैक आउट हुआ करता था। किसी भी घर मे बिजली जलाने की इजाज़त नहीं थी। यहां तक की तांगे वालों को भी हिदायत थी के वो रात में तांगे में लगे लेम्प को न जलाएं। आफताब लईक अहमद बताते हैं। कि वो सर्दी के दिन थे। मेरी वालेदा रोज़ शाम को एक बहुत क़दीमी लेम्प को जलातीं। पीतल की बॉडी वाले लेम्प को केरोसिन से रोशन किया जाता। उसके कांच से नीली रोशनी होती। लिहाज़ा मुझे लड़कपन से ही लालटेन और लेम्प जमा करने का शौक हो गया, जो आज भी क़ायम है। वे आगे बताते हैं के मेरे वालिद मरहूम इरशाद लईक अहमद साब इंडस्ट्री महकमे में आला अफसर थे। वो भी ज़मीदार खानदान से आते थे।लिहाज़ा मुझे अपने ददिहाल और ननिहाल के बुजुर्गों से सौ से डेढ़ सौ बरस पुराने कई लेम्प और लालटेन तोहफे में मिली।



आफताब भाई के पास आज ढाई सौ से ज़्यादा लेम्प और लालटेन हैं। ये इनका बड़ी शिद्दत से रेस्टोरेशन भी करते हैं। लोहा बाज़ार में कुछ मुल्लाजी की दुकानों से इन्होंने लेम्प की बत्ती, नोज़ल और ग्लास कवर वगेरह जमा किये हैं। ये सामान अब बहुत ही कम मिलता है। सीहोर की एक पुरानी दुकान से भी इन्होंने पुरानी लालटेन और लेम्प का सामान खरीदा। यहां तक कि मुम्बई की दो सौ साल पुरानी मेहता एंड संस की दुकान से भी ये एंटीक लेम्प और उसका सामान लेकर आये। ये आज भी तकऱीबन सभी लेम्प जलाते हैं। केरोसिम अब आसानी से नहीं मिलता। सो, ये थिनर का इसतेमाल करते हैं। इनके पास पंखे से चलने वाला मेड इन यूएसए हिचकॉक लेम्प और सो साल पुराना सायकिल लेम्प भी है। इनके पास ऑस्ट्रिया, इंग्लैंड, जर्मनी, अमेरिका के डेढ़ से दो सौ बरस पुराने एंटीक लेम्प और लालटेन हैं। अमेरिका की डाइटज़, हिंक्स, और बर्नहेंड कंपनी के लेम्प भी हैं। उस दौर में कई यूरोपियन लेम्प कंपनियां अपने प्रोडक्ट पर हिंदी में नाम लिखती थीं। आफताब भाई के पास हिंदी में लिखे हुए लेम्प भी हैं। इनकी बिटिया खुशनूर हिस्टोरिकल केरोसिन लेम्प ऑफ इंडिया मज़मून पे रिसर्च भी कर रही हैं। एयरपोर्ट रोड पे इन्द्रविहार कालोनी के बाशिंदे आफताब लईक अहमद ने भोपाल के कई थानों में परिवार परामर्ष केंद्रों पे काउंसलर का काम करके कई टूटते परिवारों की जि़ंदगी भी रोशन की है। मुबारक हो मियां।

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