विदेश

आखिर कहां से आते हैं भारतीय सेना को दिए जाने वाले स्लीपिंग बैग और ग्लव्स, जानें खबर में…

मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत का (Atmanirbhar Bharat) असर बाकी क्षेत्रों के साथ भारतीय सेना में भी दिख रहा है भारतीय रक्षा मंत्रालय (Indian Ministry of Defence) ने 209 आइटम को निगेटिव इंपोर्ट लिस्ट में डाल दिया है, यानी वो चीजें जिनका निर्माण देश में ही करने पर जोर दिया जाएगा इन चीजों में क्रूज मिसाइअल, टैंक इंजन और आर्टिलरी गन जैसी चीजें शामिल हैं इसके अलावा एक लिस्ट में सेना के कपड़े, जैसे दस्ताने और रेन बैग जैसी चीजें भी शामिल हैं अब विदेशों से खरीदने की बजाए ये देश में ही तैयार होंगी


कहां से क्या आयात करते हैं 
बेहद ठंडे इलाकों में तैनाती के लिए सैनिकों को उसी तरह के कपड़ों की जरूरत होती है, जो उनके शरीर के तापमान को कंट्रोल कर सके वहीं कुछ इलाकों में भीषण गर्मी होती है इस दौरान सैनिक सीमा पर मुस्तैद रह सकें, इसके लिए खास कपड़े दुनिया के अलग-अलग देशों से मंगवाए जाते रहे जैसे दस्तानों की खरीद म्यांमार की एक कंपनी से होती रही वहीं ग्लेशियरों में सो सकने के स्लीपिंग बैग को श्रीलंका से खरीदा जाता रहा

एक ओर हड्डियां जमा देने वाली ठंड से बचाव के लिए भारतीय सेना विदेशी सामानों पर निर्भर रही तो दूसरी ओर खुद हमारे यहां से विदेशी सेना के लिए जरूरत की चीजें जाती रहीं

स्वदेशी को बढ़ावा देने की बात 
भारतीय सेना में भी 100% फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (FDI) की मंजूरी मिल चुकी है इससे ये किया जा सकता है कि जिन विदेशी कंपनियों से हम कपड़ों आदि का आयात कर रहे थे, उनसे कहा जा सकता है कि वे भारत में सेट-अप करें इससे स्थानीय टेक्सटाइल को भी बढ़ावा मिलेगा साथ ही जूते या ग्लव्स के लिए चमड़ा उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा कानपुर और आगरा में जूते बनाने की इंडस्ट्री काफी बढ़िया है ऐसे में उनसे भी सेना के लिए जूते बनवाए जा सकते हैं

साल 2018 में ही मिला था प्रस्ताव 
यही सब देखते हुए देश में सेना के कपड़ों के लिए भी आयात घटाने की बात शुरू हो गई  साल 2018 में ही इस बारे में बात की गई थी लेकिन सेना ने इसका जवाब कुछ देर से दिया, साथ ही स्वदेशीकरण का लंबा-चौड़ा प्लान भी दिया गया

स्लीपिंग बैग के लिए बातचीत हो रही
सेना के कपड़े अब डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स के पास हैं और इसके साथ ही कोशिश हो रही है कि आर्मी यूनिफॉर्म का पूरी तरह से स्वदेशीकरण हो जाए स्लीपिंग बैग, केमोफ्लेज टैंट और जैकेट के लिए बेंगलुरु की एक कंपनी से बातचीत भी हो रही है

बने थे गैरजरूरी पैमाने 
सेना की जरूरतों को देशी तरीके से पूरा करने की बात के बीच एक सवाल ये भी आता है कि आखिर क्यों पहले ही इसका स्वदेशीकरण नहीं हुआ इसका जवाब ये है कि सेना के लिए बनने वाले सामानों के साथ कई बार गैरजरूरी मापदंड भी बना दिए जाते हैं जैसे टोपी वाली जैकेट के साथ शर्त रखी गई कि वो बारिश से भी बचाए, जबकि सियाचन में कभी भी बारिश नहीं होती है क्योंकि वहां का तापमान ही हमेशा शून्य से नीचे रहता है

वैसे आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत लगातार देश में सामान बनाने पर जोर दिया जा रहा है बीते साल ये अभियान और तेज हुआ, साथ ही चीन के बहुत से एप बैन कर दिए गए इसके अलावा चीन के उत्पादों को न लेने की भी अपील की गई सेना की जरूरत के कपड़ों का बड़ा हिस्सा हम चीन से खरीदते रहे हैं ये टेक्नो क्लोदिंग कहलाते हैं खास तकनीक से बनने वाले ये कपड़े ऐसे होते हैं जो बेहद विषम तापमान झेल सकें अब ये सारा कपड़ा भी देश में तैयार हो सकेगा

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