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गांधी को क्या वाक़ई महात्मा नहीं मानते थे अंबेडकर, इंटरव्यू में खुद किया था खुलासा

नई दिल्ली: हमारे देश की आजादी के इतिहास (history of independence) में दो नामों की खूब चर्चा होती है, वो हैं डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi). दोनों ही नेता अपने-अपने समर्थकों के बीच भगवान जैसा दर्जा रखते हैं और लोग इन्हें पूजते हैं. गांधी को तो देश में महात्मा का दर्जा हासिल है लेकिन अंबेडकर गांधी को महात्मा नहीं मानते थे. बीबीसी (BBC) को साल 1955 में दिए एक इंटरव्यू में अंबेडकर ने ये बात कही थी.

बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अंबेडकर ने बताया कि वह साल 1929 में पहली बार गांधी से मिले थे. दूसरे गोलमेज सम्मेलन (round table conference) के दौरान का वह समय था. अंबेडकर बताते हैं कि वह हमेशा गांधी से एक विरोधी की तरह मिले और इस वजह से वह उन्हें ज्यादा बेहतर तरीके से जान पाए. दूसरे लोग गांधी से भक्त की तरह मिलते थे, वो सिर्फ वही छवि देखते थे, जो गांधी की महात्मा वाली छवि थी, जबकि मैंने उनकी मानवीय क्षमताओं (human abilities) को बिल्कुल साफ तरीके से देखा. इस वजह से मैं उन्हें ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाया.


अंबेडकर ने बताया कि उनकी नजर में गांधी सिर्फ देश के इतिहास का एक हिस्सा भर थे, कोई युग निर्माता नहीं. गांधी को लोग भूल चुके होते अगर सरकार उनकी याद में या जयंती वगैरह पर छुट्टी नहीं देती. इसी इंटरव्यू में अंबेडकर ने बताया कि यंग इंडिया और हरिजन नामक अखबार में गांधी जातीय व्यवस्था, छुआछूत को खत्म करने और लोकतंत्र की बात करते थे जबकि दूसरी तरफ वह गुजराती में छपने वाले अखबार में दीनबंधु में जातीय व्यवस्था का समर्थन करते दिखते थे. दीनबंधु में छपे लेखों में गांधी एक पारंपरिक व्यक्ति के रूप में दिखते हैं. अंबेडकर का कहना था कि पश्चिम देश गांधी को हरिजन और यंग इंडिया में छपे लेखों के आधार पर ही जानते हैं.

बीबीसी के इस इंटरव्यू में अंबेडकर ने देश में लोकतंत्र को लेकर भी अहम बातें कही थीं. जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत में लोकतंत्र कामयाब होगा तो उन्होंने इससे इंकार किया था और कहा कि देश में लोकतंत्र नाममात्र के लिए होगा. इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश का सिस्टम संसदीय लोकतंत्र से मेल नहीं खाता है, समाज में असमानता है. अंबेडकर ने कहा था कि सामाजिक व्यवस्था आसानी से नहीं बदलने वाली है और शांतिपूर्ण तरीके से इस सिस्टम को बदलने में लंबा वक्त लगेगा. अंबेडकर मानते थे कि देश के लिए वामपंथ की राह पर चलना ज्यादा फायदेमंद होगा और इससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा.

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