भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

बुंदेलखंड में सपा और बसपा किसका बिगाड़ेंगे गणित

  • बुंदेलखंड की २६ सीटों के लिए कांग्रेस-भाजपा ने लगाया जोर

भोपाल। बुंदेलखंड मध्य प्रदेश का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है. बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, पलायन जैसी समस्याएं बुंदेलखंड में प्रदेश के बाकी इलाकों से ज्यादा हैं.बुंदेलखंड में दिखावे के लिए हर बार चुनाव तो इन्हीं मुद्दों पर लड़ा जाता है, लेकिन मतदान के ठीक पहले जाति वाला मामला हावी होने लगता है. कहते हैं कि बुंदेलखंड में दल से ज्यादा जातियों का जोर रहता है.जातियों में बंटे वोटर अपने-अपने जाति-समाज के कैंडिडेट के साथ खड़े नजर आते हैं.कमोबेश नवंबर 2023 के चुनाव में भी यही सीन रह सकता है.जातीय समीकरणों के चलते इस इलाके में भाजपा और कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी और बसपा भी अपनी ताकत दिखाती है.इन दोनों दलों को वोट कटवा भी माना जाता है.साल 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था। यहां बताते चलें कि विकास की दौड़ में पिछड़े बुंदेलखंड इलाके में विधानसभा की 26 सीटें आती हैं.बात 2018 के विधानसभा चुनाव की करें तो बुंदेलखंड की 26 सीटों में से 17 में भाजपा और सात में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.यहां से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में भी एक-एक सीट आई थी.बाद में कमलनाथ सरकार का तख्तापलट होने के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विधायक राजेश शुक्ला ने भाजपा का दामन थाम लिया था,जबकि बसपा की राम बाई अहिरवार ने अंतिम समय में भाजपा खेमे में जाने से इनकार कर दिया था।

कांग्रेस और भाजपा की तैयारी
कांग्रेस का सीएम चेहरा कमलनाथ और संगठन का काम देख रहे दिग्विजय सिंह बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को ही मुद्दा बनाकर अपने चुनाव अभियान की रणनीति तैयार कर रहे हैं. वहीं, भाजपा अपनी विकास योजनाओं के नाम पर वोट मांगने की तैयारी में है.बुंदेलखंड पैकेज,बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और 45 हजार करोड रुपए की केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने भी बुंदेलखंड में पार्टी की मजबूती के लिए बड़ा दांव खेला है।


भाजपा लगातार चुनावी मोड में
भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह 365 दिन चुनावी मोड में रहती है,लेकिन इस बार कांग्रेस ने भी बुंदेलखंड में चुनाव से काफी वक्त पहले ही अपना एग्रेसिव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है.पूर्व मंत्री कमलनाथ और दिव्या सिंह लगातार बुंदेलखंड के दौरे कर रहे हैं.इस दौरान वे भाजपा के स्थानीय मंत्रियों और सरकार पर भ्रष्टाचार के सीधे-सीधे आरोप भी लगा रहे हैं.बुंदेलखंड में जीत के लिए कांग्रेस का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया गया है. किस सीट पर कितनी ताकत लगानी है? किन मुद्दों को उछालना है? कहां भाजपा कमजोर है? इसकी व्यापक रिपोर्ट तैयार की गई है. इस क्षेत्र के आदिवासी मतदाताओं को साधने के लिए भी कांग्रेस ने बड़ी तैयारी की है.इसके अलावा समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ गठबंधन की बातचीत भी अंदरूनी तौर पर चल रही है.कांग्रेस बुंदेलखंड में जातीय समीकरण साधने के साथ ही पिछड़ेपन को भी मुद्दा बना रही है।

बुंदेलखंड से निकलेगी सत्ता की राह
बुंदेलखंड कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है, आज हालात ये है कि बुंदेलखंड की एक एक सीट पाने के लिए कांग्रेस को कडा संघर्ष करना पड़ रहा है। बुंदेलखंड की 26 विधानसभा सीटों पर हार जीत का समीकरण ही अब प्रदेश में सत्ता की चाभी बन गया है। यही कारण है 2018 के चुनाव से ज्यादा आक्रामक रणनीति के साथ कांग्रेस चुनावी मैदान में है।

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