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कपड़ों के लिए भारतीयों को पश्चिमी देशों की साइज में क्‍यों होती परेशानी, जानिए वजह

नई दिल्‍ली (New Delhi)। अक्सर देखा गया है कि रेडिमेड कपड़ों (Readymade clothes) को खरीदने के बाद उसे अपने शरीर की संरचना के अनुसार फिटिंग (Fitting) करानी ही पड़ती है। इसका मुख्य कारण है कि ये कपड़े पश्चिमी देशों (Western countries) के मानक के आधार पर तैयार किये जाते हैं, लेकिन अब देश में सिले-सिलाये कपड़ों की माप को लेकर भारतीय मानक शुरू होने वाला है।

बता दें कि कपड़े खरीदते समय हम भारतीयों को ब्रिटेन, अमेरिकी साइज में से चुनाव करना होता है। ये अमेरिका, यूरोप के नागरिकों की शारीरिक बनावट पर आधारित हैं, जो अक्सर भारतीयों पर फिट नहीं होते। इस मुश्किल को समझते हुए केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय इंडिया साइज बनवा रहा है।

टेक्सटाइल सचिव रचना शाह ने मंगलवार को कारोबारी संगठन फिक्की के कार्यक्रम में बताया कि इंडिया साइज में कपड़ों की नाप और मानक आकार भारतीयों की शारीरिक बनावट के अनुसार होंगे, जो हमें बेहतर ढंग से फिट होंगे। इस समय एक्स्ट्रा स्मॉल (एक्सएस), स्मॉल (एस), मीडियम (एम), लार्ज (एल), एक्स्ट्रा लार्ज (एक्सएल) और डबल एक्स्ट्रा लार्ज (डबल एक्सएल) नाप के कपड़े भारत में मिल रहे हैं। यह अमेरिका और ब्रिटेन में तय किए गए हैं।



कंपनी भारतीय हो या विदेशी, भारत में इन्हीं नाप में कपड़े बेचती है, जबकि विदेशियों की ऊंचाई, वजन, शारीरिक बनावट हमसे अलग होती हैं। इसी वजह से अक्सर नाप की समस्या आती है। रचना शाह ने बताया, कपड़ा मंत्रालय ने इंडिया साइज परियोजना को अनुमति दी है।
अब बताया जा रहा है कि परियोजना के तहत भारत के विभिन्न हिस्सों से 25 हजार महिला व पुरुषों की शारीरिक बनावट का डाटा जुटाया जाएगा। 15 से 65 साल के इन लोगों के समस्त शरीर का त्रिआयामी स्कैन किया जाएगा। इसके आधार पर बनी नई नाप का प्रयोग भारतीय और विदेशी कंपनियां परिधान तैयार करते समय करेंगी। केवल कपड़े ही नहीं, यह अध्ययन वाहन, फिटनेस व खेल, कला, कंप्यूटर गेमिंग और विमान निर्माण जैसे सेक्टर में भी भारतीयों की शारीरिक बनावट के अनुसार उत्पाद बनाने में मदद करेगा।

अगले पांच साल में घरेलू तकनीकी वस्त्र क्षेत्र को चार हजार से पांच हजार करोड़ डॉलर तक पहुंचाने का सरकार का लक्ष्य है। अभी यह 2.2 हजार करोड़ डॉलर है। इसी अवधि में निर्यात भी मौजूदा 250 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 1,000 करोड़ पहुंचाने पर जोर है। रचना शाह ने बताया कि दुनियाभर में तकनीकी वस्त्र क्षेत्र करीब 25 हजार करोड़ डॉलर का है, जिसके साल 2026 तक 32.5 हजार करोड़ डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसके लिए सरकार बहुआयामी नजरिए से काम कर रही है। शोध एवं विकास गतिविधियों, विभिन्न उपयोगों के विकास, दक्ष मानव बल बढ़ाने, कौशल विकास पर काम किया जा रहा है।

यह प्राकृतिक या मानव निर्मित तत्वों से बनते हैं और कृषि, निर्माण, ऑटोमोबाइल, रक्षा, खेल परिधान, स्वास्थ्य क्षेत्रों में उपयोग होते हैं। विशेष जरूरतों के अनुसार यह तकनीकी वस्त्र बनाए जाते हैं। इनका उद्देश्य सुंदरता नहीं, बल्कि व्यवहारिक उपयोग होता है।

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