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कर्मचारी राज्य बीमा निगम के अस्पताल में अटके लाखो रूपये के बिल

उज्जैन। राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल में पंजीकृत लोग द्वारा गंभीर बीमारी होने पर अस्पताल को सूचित करने के साथ जो सुविधाएं उपलब्ध नहीं है,उनका लाभ लेने और उपचार करवाने के लिए निजी अस्पताल में जाते हैं। उपचार के बाद वे अधिकृत उपचार खर्च के दस्तावेजों के साथ अस्पताल में आवेदन करते हैं। आवेदन और दस्तावेजों की जांच के बाद यह फाईल उप संचालक के कार्यालय में जाती है। वहां से भुगतान की अनुशंसा के साथ इंदौर भेज दी जाती है। इस प्रकार मरीज द्वारा जो खर्च कहीं से व्यवस्था करके किया जाता है,उसे वापस मिल जाता है।
अस्पताल के देसाईनगर स्थित कार्यालय में इन दिनों लापरवाही के चलते अनेक मरीज अपने उपचार के बिलों का भुगतान नहीं होने के कारण भटक रहे हैं। वे इंदौर जाते हैं तो कहा जाता है कि आपका बिल आया ही नहीं। उप संचालक के पास जाते हैं तो कहा जाता है कि अस्पताल वाले भेजें, तो हम इंदौर भिजवाएं। अस्पताल में सम्पर्क किया जाता है तो कहा जाता है कि कोरोना काल में हमारी ड्यूटी लग गई थी। अब फ्री हुए हैं, जल्दी से कर देंगे। यह कहते हुए संबंधित जिम्मेदारों को दो माह होने आए हैं, लेकिन बिल बगैर निराकृत हुए आलमारी में बंद है।
यह हुआ मौके पर…
शहर के एक निजी स्कूल के शिक्षक जोकि राज्य कर्मचारी बीमा निगम में पंजीकृत हैं, को ह्दयघात आने पर निजी अस्पताल में परिजन ले गए ओर बीमा अस्पताल को सूचित कर दिया। उपचार करवाकर लौटने के बाद सारे दस्तावेज,मय सत्यापन फाइल बनाकर जमा करवा दिए। फाइल देखते वक्त कोई क्वेरी नहीं की गई और जब इंदौर फाइल गई तो वापस भेज दी गई। जो क्वेरी निकाली गई,उसे ठीक करके फरवरी माह में शिक्षक ने अस्पताल में जमा करवा दी। इसमें एक वर्ष लग गया। इसके बाद फाइल जस की तस रखी रही।
पूरे कोरोना काल में अस्पताल खुला रहा और स्टॉफ भी आया, लेकिन फाइल रखी रही। दो दिन पूर्व जब शिक्षक अस्पताल पहुंचा तो कहा गया कि दो तीन दिन बाद आना? जब उसने अपनी मजबूरी बताई और सीएम हेल्प लाइन में शिकायत करने की बात कही तो फाइल ढूंढना शुरू हुई। एक घण्टे की मशक्कत के बाद फाइल मिली। जिस ढेर में फाइल मिली,उसमें ऐसी ही अनिराकृत फाइलों का ढेर था। इसके बाद कहा गया कि दो दिन बाद आना,हम इसे उप संचालक को भेज देंगे। मामला वहीं का वहीं रूक गया। अभी भी शिक्षक भटक रहा है कि उसे इंदौर फाइल भेजने का जावक नम्बर मिल जाए तो वह इंदौर जाकर गुहार लगाए।
इस संबंध में अस्पताल के प्रभारी डॉ.शैलेष कचोले से चर्चा की गई तो उन्होने कहाकि मेरे समक्ष में यह मामला आया था। मैं दिखवाता हूं कि फाइल उप संचालक के यहां भेजी गई या नहीं?
उप संचालक डॉ.एस एन गुप्ता से चर्चा की गई तो उन्होने कहाकि वहां की बहुतसारी शिकायतें आ रही है। संबंधित शिक्षक का मामला दो दिन पूर्व सामने आया था। मैने स्वयं निर्देश दिए थे कि गरीब लोगों के बिल क्यों रोकते हो? ड्यूटी पर पूरे समय काम करेंगे तो कोई मामला पेंडिंग नहीं रहेगा। दिखवाता हूं, मैरे पास कहने के बाद भी फाइल नहीं आई है।

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