भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

बसपा के वोट बैंक पर भाजपा-कांग्रेस की नजर

  • प्रदेश में बसपा को मिलते रहे हैं 15 प्रतिशत से ज्यादा वोट

भोपाल। मप्र में सत्ता का संग्राम दिन पर दिन तेज होता जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस इस कोशिश में लगी हुई हैं कि अधिक से अधिक वोट लेकर सत्ता में आया जाए। इसके लिए दोनों पार्टियों की नजर बसपा के वोट बैंक पर है। गौरतलब है कि कमजोर, वंचित और शोषित वर्ग की बड़ी आबादी की नुमाइंदी करने वाली बसपा अब प्रदेश में कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है। पार्टी के घटते जनाधार से उसके वोटबैंक पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच इन दिनों होड़ है। बीते दिनों संत रविदास जयंती पर बसपा ने कोई आयोजन ही नहीं किया, जबकि भाजपा और कांग्रेस ने अलग-अलग बड़े आयोजन किए। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ भी शामिल हुए। दरअसल, बसपा प्रमुख मायावती जब तक उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहीं और या फिर विपक्ष के रूप में सक्रियता रही, तब तक देश के अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश में बसपा का वोटबैंक मजबूत होता रहा। अलग-अलग चुनावों में उसे 15 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते रहे। बसपा के कमजोर होने से उसका यह वोटबैंक इधर-उधर छिटक रहा है। खासतौर से एससी वर्ग के लोगों ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थाम लिया था। यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इन वर्गों के लिए दोनों ही पार्टियां बढ़-चढ़कर घोषणाएं कर रही हैं।


पिछले चुनाव में बसपा को मिली थी सिर्फ दो सीट
पहले भाजपा ने संत रविदास की जयंती से शुरू कर आंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) तक कई कार्यक्रम करने का निर्णय किया। सौ करोड़ रुपये की लागत से संत रविदास का मंदिर बनाने की भी घोषणा भी शिवराज सिंह ने हाल ही में की है। कांग्रेस आंबेडकर जयंती पर विशाल कार्यक्रम कर इसका तोड़ निकालने की तैयारी कर रही है। बता दें कि 230 सदस्यीय विधानसभा में 35 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2018 के चुनाव में इसमें से भाजपा को 18 और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं। बसपा केवल दो सामान्य सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी।

सेंध की कोशिश की वजह ये आंकड़े
आंकड़ों में देखें तो मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41.6 प्रतिशत और बसपा को 5.1 प्रतिशत वोट मिले थे। वर्ष 2020 में 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 सीटें जीतीं और उसे 49.46 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा का खाता नहीं खुला लेकिन 5.75 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में औसतन 69 सीटों पर पार्टी का वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक रहा है। इसी तरह विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर के आंकड़ों में ज्यादा अंतर नहीं रहा है। वर्ष 2008 के ही परिणाम देखें तो भाजपा ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब भाजपा का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने नौ प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। कांग्रेस और बसपा का वोट शेयर यदि जोड़ दें तो भाजपा से चार प्रतिशत अधिक बैठता है। कांग्रेस और बसपा यदि मिलकर चुनाव लड़ते तो आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि तब भाजपा को 90 और गठबंधन को 131 सीटें मिलतीं।

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