– एक पक्ष का कहना-प्रत्यक्ष चुनाव से हो सकता है पार्टी को नुकसान
– दूसरे ने कहा-अप्रत्यक्ष प्रणाली में होगी पार्षदों की खरीद-फरोख्त
इंदौर । कल वार्डों का आरक्षण (Reservation) फिर से होना है, लेकिन सरकार अभी महापौर (Mayor) का चुनाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रणाली (direct and indirect election system) से कराने के भंवर में फंस गई है। सूत्रों का कहना है कि इस निर्णय को लेकर पार्टी में ही दो फाड़ नजर आ रही है। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। कल के आरक्षण के बाद तय हो जाएगा कि चुनाव किस प्रणाली से होंगे, जिससे भाजपा को फायदा मिल सके।
सरकार की ओर से महापौर चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का अध्यादेश राज्यपाल को भेज दिया गया था, लेकिन बाद में यह अध्यादेश वापस बुलवा लिया गया। अब इस अध्यादेश को वापस भेजने की तैयारी है, लेकिन सरकार में बैठे कुछ मंत्री नहीं चाहते कि प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव हो। भोपाल से जो बातें निकलकर सामने आ रही हैं, उससे सरकार में बैठा ही एक बड़ा धड़ा और भाजपा संगठन के कुछ नेता अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने पर जोर दे रहे हैं। इसके पीछे जो कारण बताया जा रहा है वह भी काफी हद तक इस मांग को जायज ठहरा रहा है। उनका कहना है कि पार्षद अगर महापौर चुनते हैं तो भाजपा को महापौर बनाने में आसानी होगी। इसके पीछे दबी जुबान में तर्क दिया जा रहा है कि महंगाई, जल संकट जैसे मुद्दे चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए जीते हुए पार्षदों को लेकर महापौर बनाया जा सकता है, लेकिन प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव हुआ और महापौर ही हार गया तो जीते हुए पार्षदों का क्या करेंगे? फिर पांच साल तक नगर निगम में विवाद होते रहेंगे। हालांकि इस मामले में अभी मुख्यमंत्री और संगठन के आला नेताओं ने भी चुप्पी साध रखी है। अभी तय ही नहीं हो पा रहा है कि सीधे चुनाव फायदेमंद हैं या फिर पार्षदों द्वारा महापौर को चुनना फायदे का सौदा रहेगा।
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