इंदौर। भाजपा एक बार फिर दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि से आजीवन सहयोग निधि अभियान शुरू करने जा रही है। मंगलवार से यह अभियान पूरे प्रदेश में शुरू किया जाएगा और भाजपा अपने संगठन को चलाने के लिए फंड इकट्ठा करेगी। इस बार इंदौर के पूर्व नगर अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा को पूरे प्रदेश का संयोजक बनाकर फंड इक_ा करने की जवाबदारी दी है। उनके साथ दो सहसंयोजक भी बनाए गए हैं।
जल्द ही भोपाल में होने वाली प्रदेश की बैठक में सभी जिलों के टारगेट तय किए जाएंगे, ताकि उसके अनुसार सभी अध्यक्षों को आजीवन सहयोग निधि की राशि इक_ा करने के लिए भिड़ाया जा सके। इस बार कुल 62 जिले हैं और सभी जिलों को उनकी क्षमता के अनुसार टारगेट दिया जाता है, लेकिन इंदौर के मामले में संगठन की अलग ही राय रहती है। हालांकि यहां राजनीतिक फैसलों ेंमें देरी लगती है, लेकिन प्रदेश संगठन अधिकांश मामलों में इंदौर से ही अपेक्षा रखता है। इंदौर ने पूरे प्रदेश में आजीवन सहयोग निधि के मामले में रिकार्ड भी बनाया है और 6 करोड़ रुपए से अधिक की राशि इक_ा करके संगठन को सौंपी हैें।
इसलिए माना जा रहा है कि इंदौर को भारी-भरकम टारगेट दिया जा सकता है। वैसे भी इंदौर औद्योगिक राजधानी है। इंदौर से गोपीकृष्ण नेमा को पूरे प्रदेश का संयोजक बनाया गया है। उनके साथ भोपाल के सांसद आलोक संजर और सतना के महापौर योगेश ताम्रकार सहसंयोजक के रूप में काम करेंगे। इनकी बैठक भी जल्द ही भोपाल में होने वाली है। 11 फरवरी दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि से यह अभियान शुरू हो जाएगा।
इस तरह से बनेगा निधि इक_ा करने का ढांचा
हर जिले में एक प्रभारी बनाया जाएगा और सहप्रभारी के रूप में उसके साथ दो भाजपा नेता रहेंगे। ये लोग मंडल स्तर पर भी प्रभारियों की नियुक्ति करेंगे। इसके बाद जो प्रदेश से टारगेट मिलेगा, उसके अनुसार ये लोग कार्य करेंगे। आजीवन सहयोग निधि के लिए संगठन कूपन भी जारी करता है, जिसके माध्यम से राशि जुटाई जाएगी।
ऐसे उपयोग होता है राशि का
भाजपा संगठन चलाने के लिए इस राशि का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले पूरी राशि इक_ा करके प्रदेश संगठन को सौंपना होती है। इस राशि के तीन हिस्से होते हैं, जिसमें से 10 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली में केन्द्रीय नेतृत्व के खाते में जमा होता है। उसके बाद बचे हुए 90 प्रतिशत में से 40 प्रतिशत जिलों को भेजा जाता है और 50 प्रतिशत प्रदेश कार्यालय के खाते में जमा होता है। जिलों को जो हिस्सा भेजा जाता है, उसमें से 10 प्रतिशत राशि मंडलों में बांटी जाती है और बची हुई राशि से जिला अध्यक्ष अपनी सालभर की गतिविधियों का संचालन करते हैं।
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