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बिहार में BJP का सवर्ण कार्ड, M से दूरी Y को तवज्जो; लालू के वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी

नई दिल्ली: बिहार की सियासत पूरी तरह से जाति की धुरी पर घूमती है. बीजेपी ने गठबंधन के जरिए भले ही सूबे के सियासी समीकरण को साधने की कवायद की हो, लेकिन अपना मुख्य फोकस सवर्ण जातियों पर लगा रखा है. बिहार में बीजेपी ने अपने कोटे की सभी 17 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है, जिसमें सबसे ज्यादा भरोसा सवर्णों पर किया है. पार्टी ने करीब 64 फीसदी प्रत्याशी सवर्ण जातियों से उतारे हैं. इसके अलावा लालू प्रसाद यादव के कोर वोटबैंक में सेंधमारी के लिए बड़ा सियासी दांव चला है, जिसमें एम से दूरी बनाई है, लेकिन वाई को खास तवज्जो दी है.

बीजेपी बिहार में एक नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. एनडीए के कुनबे का सियासी दायरा पहले से काफी बड़ा हो गया है, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी, जीतनराम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम शामिल हैं.बीजेपी की कोशिश जेडीयू और कुशवाहा के जरिए ओबीसी वोट साधने की में है तो मांझी और चिराग के सहारे दलित समाज के वोटों को जोड़े रखने की रणनीति है. ऐसे में बीजेपी ने खुलकर सवर्णों पर दांव खेला है, जिसमें राजपूत से लेकर भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ तक शामिल हैं.

बीजेपी ने अपने कोटे की 17 लोकसभा प्रत्याशियों की सूची रविवार को जारी की है, जिसको देखकर पार्टी की सियासी चाल साफ जाहिर होती है. बीजेपी ने 17 में से 11 टिकट (64 फीसदी) सवर्ण जातियों को दिए हैं जबकि बाकी 6 टिकट (36 फीसदी) दलित और ओबीसी को दिए हैं. बीजेपी ने सवर्ण जातियों में सबसे ज्यादा अहमियत राजपूत समुदाय के लोगों दी है और उसके बाद भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ को दी है. बीजेपी ने सवर्णों को जितनी तरजीह दी है, उतना किसी भी पार्टी ने नहीं दी.

बीजेपी ने सवर्णों में राजपूत समुदाय से औरंगाबाद सीट से सुशील कुमार सिंह, आरा सीट से आरके सिंह, सारण सीट से राजीव प्रताप रूडी, महाराजगंज सीट से जनार्दन सिग्रीवाल, अररिया सीट से प्रदीप कुमार सिंह और पूर्वी चंपारण सीट से राधा मोहन सिंह उम्मीदवार बनाया है. इस तरह से बीजेपी ने सबसे बड़ा दांव राजपूत समुदाय पर खेला है, जिन्हें आधा दर्जन सीटों पर टिकट दिया है.


ब्राह्मण समुदाय से देखें तो बक्सर से मिथिलेश तिवारी और दरभंगा से गोपालजी ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है जबकि भूमिहार समुदाय से बेगूसराय सीट से गिरिराज सिंह और नवादा सीट से विवेक ठाकुर को टिकट दिया है. पटना साहिब सीट से रविशंकर प्रसाद को बनाया है, जो कायस्थ समुदाय से आते हैं. हालांकि, बिहार में राजपूत और भूमिहारों से भी ज्यादा आबादी ब्राह्मण समुदाय की है, उसके बाद भी उन्हें सिर्फ दो टिकट दिए हैं. बक्सर से अश्विनी चौबे का टिकट बीजेपी ने काटा तो उनकी जगह गोपालगंज के मिथिलेश तिवारी को मौका दिया गया है. यानी ब्राह्मण का टिकट कटा तो ब्राह्मण ही नया प्रत्याशी बना है.

बीजेपी ने बिहार में एक भी महिला को लोकसभा का टिकट नहीं दिया है और न ही किसी मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया है. शाहनवाज हुसैन का एमएलसी कार्यकाल खत्म होने के बाद माना रहा था कि बीजेपी उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बना सकती है, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया है. मोदी सरकार ने संसद से महिला आरक्षण का बिल पास कराकर इतिहासिक कदम उठाया है, लेकिन लोकसभा चुनाव में बिहार में एक भी प्रत्याशी महिला नहीं बनाया है. इस तरह बीजेपी ने महिला और मुस्लिम दोनों से दूरी बनाई है, लेकिन वाई यानि यादवों को खास तवज्जो दी है.

बिहार में बीजेपी ने तीन यादव समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव और अशोक यादव के नाम शामिल हैं. 2019 में भी बीजेपी के टिकट पर तीनों सांसद चुने गए हैं. बीजेपी ने बिहार में राजपूत के बाद यादवों को सबसे ज्यादा अहमियत दी है, जिसका सीधा मकसद लालू प्रसाद यादव के कोर वोटबैंक यादव समुदाय में सेंधमारी का है. बिहार में 16 फीसदी यादव मतदाता हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.

वहीं, बीजेपी ने मुजफ्फरपुर सी से राजभूषण निषाद, पश्चिम चंपारण से डॉ. संजय जायसवाल और सासाराम से शिवेश राम को प्रत्याशी बनाया है. मुजफ्फरपुर और सासाराम सीट से पार्टी ने अपने मौजूदा सांसदों का टिकट काटकर उनकी जगह पर उसी समाज के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी ने एक वैश्य, एक निषाद और एक दलित प्रत्याशी बनाया है.

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