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पूर्वोत्तर के दो राज्यों में पहली बार मिले खतरनाक डेल्टा वेरिएंट के मामले

नई दिल्ली । उत्तर भारत में तबाही मचाने के बाद कोरोना वायरस (corona virus) का डेल्टा वैरिएंट (delta variant) नॉर्थ ईस्ट के दो राज्यों में मिला है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर (Manipur) और मिजोरम (Mizoram) में पहली बार डेल्टा वैरिएंट के मामले पाए गए हैं. सूत्रों के हवाले से पता चला है कि हैदराबाद में टेस्ट किए गए 20 मामलों में से 18 डेल्टा वैरिएंट के पाए गए हैं. मिजोरम में B.1.617.2 यानि डेल्टा वैरिएंट के चार मामले हैं. कोविड का ये स्ट्रेन बहुत ही ज्यादा संक्रामक है. मिजोरम के आइजल जिले में कोरोना के डेल्टा वैरिएंट से पीड़ित चार मरीज मिले हैं. इन लोगों के सैंपल जांच के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (National Institute of Biomedical Genomics) भेजे गए थे.

दोनों राज्यों के पड़ोसी सूबों में राज्य सरकार ने शुगर, कैंसर और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए विशेष टीकाकरण अभियान चलाने का निर्देश दिया है. राज्य सरकार ने संक्रमण के गंभीर मामलों में लोगों के म्यूकोरमायकोसिस से प्रभावित होने के खतरे को देखते हुए खास टीकाकरण अभियान चलाने का निर्देश दिया है. WHO की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने शुक्रवार को कहा था कि बहुत ज्यादा संक्रामक होने की वजह से डेल्टा वैरिएंट वैश्विक समुदाय के लिए ‘चिंता’ का सबब है. खबरों के मुताबिक दुनिया के 70 से ज्यादा देशों में डेल्टा वैरिएंट के मामले दर्ज किए गए हैं. सौम्या स्वामीनाथन ने जिनेवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बहुत ज्यादा तेजी से फैलने की वजह से डेल्टा वैरिएंट वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा संक्रामक बनने की ओर है.


डेल्टा वैरिएंट खतरनाक क्यों है?
कोविड के डेल्टा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन दर्ज किए गए हैं, जिसकी वजह से यह वैरिएंट ज्यादा संक्रामक और खतरनाक हो जाता है. इंग्लैंड में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक यह स्ट्रेन ज्यादा हमलावर है और इसकी वजह से एक निश्चित समय में अल्फा वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा लोग बीमार हुए हैं.

कितनी तेजी से फैलता है डेल्टा वैरिएंट?
अध्ययन के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट कोरोना के अल्फा वैरिएंट के मुकाबले 60 फीसदी ज्यादा संक्रामक है. अल्फा वैरिएंट कोरोना वायरस के मूल स्ट्रेन के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा संक्रामक था, कोविड का मूल स्ट्रेन 2019 के आखिर में सामने आया था.

यह इतना खतरनाक क्यों है?
दरअसल डेल्टा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन ने अपने आपको इस तरह बदला है, यानि उसमें म्यूटेशन हुआ है कि व्यक्ति के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी भी अप्रभावी हो जाती है, टूट जाती है. फलस्वरूप व्यक्ति दोबारा संक्रमित हो जाता है, जबकि कोविड के पहले वैरिएंट्स के साथ ऐसा नहीं था. डेल्टा वैरिएंट के आगे व्यक्ति का इम्यून रेस्पांस भी कमजोर साबित हो रहा है.

डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन प्रभावी है?
ज्यादातर अध्ययनों में यह पाया गया है कि डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन प्रभावी हैं, लेकिन कम प्रभावी हैं. पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड स्टडी के मुताबिक फाइजर और ऑक्सफोर्ड ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का सिंगल कोरोना के लक्षणों वाले मामले में 33 फीसदी प्रभावी है, जोकि दूसरी डोज के बाद बढ़कर 88 फीसदी और 66 फीसदी हो जाता है.

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