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‘गुड़गांव’ का केबी सिंह और ‘न्यूटन’ का आत्मा सिंह जैसे किरदारों ने मुझे काफी प्रभावित किया: पंकज त्रिपाठी

 

नई दिल्ली। सीरीज हो या फिल्में नैशनल अवॉर्ड विनर अभिनेता पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) हर भूमिका की रूह में उतर जाते हैं। अब तक पर्दे पर हर रंग के चरित्र निभा चुके पंकज इन दिनों चर्चा में हैं अपनी फिल्म ‘मिमी’ (Mimi) से। यहां वे पिता से समांतर भूमिका के सफर, सरोगेसी (surrogacy), अपनी बेटी, पत्नी और भविष्य में अपने रोमांटिक हीरो (Romantic Hero) बनने जैसे मुद्दों पर बात करते हैं

कृति के साथ आप ‘बरेली की बर्फी’ में पिता के किरदार में थे मगर आपकी आगामी फिल्म मिमी में आप कृति सेनन के साथ समांतर या यूं कहिए नायक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। इस ट्रांसफॉर्मेशन को कैसे देखते हैं आप?
-बहुत ही अच्छा है,ये। असल में यह रूपांतरण हमारी ऑडियंस की परिपक्वता का परिचायक है। हमारा दर्शक वर्ग मच्योर हुआ है। वर्ल्ड सिनेमा से परिचित होने के बाद उनमें अभिनय को परखने की क्षमता बढ़ी है। कहानियों को समझने और जज करने की समझ बढ़ी है। इसमें ओटीटी (OTT) का भी बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि इसमें बॉक्स ऑफिस (Box Office) का कोई रोल नहीं। ओटीटी (OTT) पर प्रॉजेक्ट के अच्छे या बुरे होने के बारे में लिखा जाता है। बाकी कलेक्शन का कोई दबाव् नहीं रहता। मैं तो पिछले 12-15 सालों से काम कर रहा हूं, मगर अब जो मेरे साथ हो रहा है, वो अनपेक्षित है। मैंने सोचा नहीं था कि बतौर अभिनेता मुझे इतना प्यार मिलेगा। जहां तक कृति की बात है, तो जब आप जब उनको मिमी में देखेंगे, तो उनके क्राफ्ट और अभिनय पर बात होगी। उनकी खूबसूरती के साथ-साथ उनकी दमदार अदायगी की चर्चा होगी। बहुत ही अच्छा काम किया है उन्होंने।

फिल्म सरोगेसी के मुद्दे पर आधारित है। इंडिया में कमर्शल सरोगेसी पर प्रतिबंध है। इस पर आपकी राय?
-एक समय हमारा देश सरोगेसी का हब बन गया था। इंडिया को बेबी फैक्ट्री के रूप में जाना जाने लगा था। सालों पहले एक मराठी फिल्म आई थी, ‘मला आई व्हायचे आहे’ (मुझे मां बनना है) उसी मराठी फिल्म से ‘मिमी’ का बीज लिया गया। असल में जब हमारे यहां कमर्शल सरोगेसी का दुरुपयोग होने लगा, तो सरकार ने महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए नए कानून बनाए। ‘मिमी’ की तरह एक सत्य घटना भी हुई थी, जिसमें पैरंट्स ने सरोगेट मदर से बच्चा लेने से इंकार कर दिया था। उसी के बाद कानून कड़े किए गए। मुझे लगता है कि अच्छा ही हुआ। वैसे सरोगेसी के कानूनी पक्ष का मैंने गहरा अध्ययन नहीं किया है, क्योंकि मेरे किरदार को उस हिस्से में नहीं जाना था। मगर इससे जुड़े कुछ लेख मैंने जरूर पढ़े हैं।

‘मिमी’ के सेट पर एक ऐक्टर के रूप में क्या यादगार रहा?
-सेट पर खिचड़ी बनाना। ‘मिमी’ के सेट पर अक्सर मैं खिचड़ी बनाया करता था और उसमें से एक-एक कटोरी कभी कृति को, तो कभी निर्देशक को देता था। मैं सब्जी मिक्स खिचड़ी बनाता हूं। कुकिंग का बहुत शौक़ीन हूं। मुझे अच्छा लगता है ऑर्गेनिक हल्दी, अदरक जैसी चीजों के साथ खाना बनाना। शूटिंग पर वैनिटी के बाहर एक अलग ही माहौल हो जाता है। मैंने ‘मिमी’ की पूरी शूटिंग के दौरान घर जैसा माहौल रखा। मैं घर से अपना कुकर, चूल्हा और ऑर्गेनिक सामान लेकर गया था। मुझे शूटिंग में कुकिंग करने में काफी मजा आया।



आपने पर्दे पर अब तक कई विविधतापूर्ण भूमिकाएं की हैं, सबसे ज्यादा आपको अपनी किन भूमिकाओं ने प्रभावित किया?
-मुझे लगता है ‘गुड़गांव’ का केबी सिंह और ‘न्यूटन’ का आत्मा सिंह जैसे किरदारों ने मुझे काफी प्रभावित किया। ‘मसान’ की छोटी-सी भूमिका ने भी मुझ पर गहरा असर छोड़ा था और अब आने वाले दिनों में ‘मिमी’ की भूमिका का प्रभाव लंबे समय तक रहेगा। असल में होता ये है कि किरदार की जो मनोदश होती है, वो कुछ समय तक ऐक्टर के साथ चलती है, क्योंकि कलाकार इस चरित्र के साथ कई दिनों तक रहता है। कई बार यह समस्या भी होती है, क्योंकि यदि किरदार इंटेंस या जटिल है, तो आप भी कन्फ्लिक्ट्स का सामना करते हैं।

हाल ही में आपने सोशल मीडिया पर अपनी बेटी आशी के साथ एक तस्वीर शेयर की थी। पिता होने के नाते बेटी को किस तरह के मूल्य देना चाहेंगे?
-मैं तो अपनी बेटी से सीखता हूं। पिता तो उसी ने बनाया है। मुझे लगता है, वही सिखाती है कि मुझे कैसा पिता होना चाहिए? वो बहुत पढ़ती है। मैं उसकी बातों को सुनता हूं। मैं चाहता हूं कि मैं गुंजन सक्सेना (फिल्म) के पिता अनुज सक्सेना जैसा पिता बनूं। अपनी बच्ची के सपोर्ट में, उसकी उड़ान में साथ रहूं। किसी रूढिवादिता या कुरीति के तहत मैं अपनी बेटी को रोकूं, यह मुझे पसंद नहीं।

आपकी पत्नी बीते सालों में आपके लिए आधारस्तंभ रही हैं।
-सच कहूं, तो 2004 से लेकर 2010 तक मैं कुछ नहीं कमा रहा था। घर का भार वही संभाले हुए थीं। मैं तो अंधेरी में स्क्रिप्ट लेकर घूमता था और गुहार लगाता था, ऐक्टिंग करवा लो, कोई ऐक्टिंग करवा लो। मगर तब कोई सुनता नहीं था। अब जब घर जाता हूं, तो मेरी पार्किंग में कोई फिल्म मेरे लिए घूम रही होती है। पार्किंग में निर्देशक निकलता है और मुझसे पूछता है, आप कहां हैं? फिल्म करनी है आपके साथ, नरेशन सुन लीजिए। पहले संघर्ष करके अंधेरी में भी नहीं मिल पाती थी फिल्म, अब पार्किंग में लाइन लगी रहती है। संघर्ष के उन दिनों में मृदुला ही घर चला रही थीं। मकान के किराए से लेकर मूलभूत जरूरतों तक, सब कुछ वे ही पूरा करती थीं।

आप फिल्मों और सीरीज में हर तरह के रोल निभा चुके हैं, आपको हीरो के रूप में रोमांटिक भूमिका में कब देख पाएंगे?
-बहुत जल्द मैं आपको रोमांटिक हीरो के रूप में नजर आऊंगा। हीरोइन की तलाश जारी है। मुझे निर्माता ने अभी डिटेल्स का खुलासा करने से मना किया है, मगर जैसे ही सब चीजें लॉक होंगी।

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