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खाद्यान संकट के चलते दूसरे देशों में खेती के लिए पट्टे पर जमीन ढूंढ रहा चीन


बीजिंग। इन दिनों चीन (China) बड़े खाद्य संकट के दौर से गुजर रहा है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक बीते कुछ वर्षों में चीन लगातार दुनिया भर के कई देशों के साथ किए गए खाद्यान्न सौदों को रद्द कर रहा है। अधिकांश सौदों में बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान शामिल है। चीन ने बाकायदा इन सौदों के लिए एग्रीमेंट किये थे लेकिन अब चीन इन सौदों को रद्द कर रहा है, इससे माना जा रहा है कि चीन एक बड़े खाद्य संकट से गुजर रहा है। वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) बॉर्डर पर तनाव के जरिए लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस साल जुलाई में चीन की खाद्य मुद्रास्फीति (food inflation) 13.2% बढ़ी है। एक आम चीनी द्वारा आमतौर पर उपभोग किए जाने वाले अधिकांश खाद्य उत्पादों की कम हुई है। इनमें अनाज से लेकर मीट तक शामिल है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (National Bureau of Statistics) ने खुलासा किया है कि सबसे अधिक खपत वाले मांस, पोर्क की कीमतों में 86% तक की वृद्धि हुई है। चीन दुनिया भर से खाद्य उत्पादों के आयात का सहारा ले रहा है। हालत यह है कि चीन को लगभग सभी प्रमुख खाद्य पदार्थों का आयात करना पड़ रहा है।

चीन के सीमा शुल्क विभाग के अनुसार, देश ने इस वर्ष की पहली छमाही के दौरान अपने अनाज के आयात में 22.7% की वृद्धि की है, जिससे खाद्यान्न आयात में 74.51 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। हालांकि चीन पिछले कुछ वर्षों से सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है फिर भी वह अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी यूएसए से इस साल 40 मिलियन टन सोयाबीन आयात करने की योजना बना रहा है।

आयात के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल जून में चीन का गेहूं आयात सात साल के उच्च स्तर पर चला गया है। इसने जून 2020 के दौरान 910,000 टन गेहूं का आयात किया। इसका मतलब है कि साल-दर-साल आधार पर 197% की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, इसने 880,000 टन मकई, 680,000 टन सोरघम और 140,000 टन चीनी का आयात किया है।

चीन में फसलें इतनी कम हो गई हैं कि चीन के सरकारी स्टेट ग्रेन रिजर्व सिस्टम के तहत जून-जुलाई में केवल 45 मिलियन टन गेहूं ही खरीद सकता है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 17.2% कम है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि कम फसल के चलते किसान खाद्य पदार्थों का भंडारण भी कर रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह खाद्य संकट है, वह आशंकाओं से घिरे हुए हैं जिसके चलते सरकार को माल नहीं बेच रहे हैं। कहा जा रहा है कि चीनी सरकार नागरिकों पर दबाव डाल रही है कि वे सरकार के साथ अपने खाद्यान्नों का भंडारण करें ताकि संदेश जाए कि कोई खाद्यान्न संकट नहीं है।

कम उत्पादन के साथ-साथ यांग्त्ज़ी बेसिन में बाढ़ भी चीन के लिए आफत बनकर आई है। बाढ़ में हजारों एकड़ खड़ी फसलें तबाह हो गईं। बाढ़ ने 54.8 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और 20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। टिड्डे झुंड के हमले और अफ्रीकी स्वाइन फ्लू बुखार भी देश के कृषि क्षेत्र के लिए घातक साबित हुए हैं। कहा जा रहा है कि चीन में आबादी क्षेत्रों में अधिकांश सूअर मार दिए गए हैं, जिससे मांस उत्पादन पर संकट आ गया है।

चीन में यह आपदा उस समय आई है जब वहां खेती योग्य भूमि का अनुपात तेजी से घट रहा है। चीन के प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के अनुसार, इसकी खेती योग्य भूमि लगातार चार वर्षों से कम हो रही है। पिछले वर्ष की तुलना में 60,900 हेक्टेयर कृषि भूमि कम हुई है। खाद्य उपभोग और खाद्य उत्पादन के बीच अंतर को पूरा करने के लिए चीन ने कई अफ्रीकी, दक्षिण अमेरिकी सहित जिबूती, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे, चिली, अर्जेंटीना, कंबोडिया, लाओस आदि में उपजाऊ भूमि खरीदना और पट्टे पर लेना शुरू कर दिया है। चीन ने विदेशों में कृषि भूमि खरीदने के लिए लगभग 94 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अपने सहयोगी पाकिस्तान की उपजाऊ भूमि पर भी नजर गड़ाए हुए है। बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के अलावा, अब चीन की निगाह सिंध पर है। चीन द्वारा पाकिस्तानी भूमि का उपयोग करने पर संस्थागत मंजूरी के लिए हाल ही में पाकिस्तान के साथ कृषि सहयोग पर एक समझौता किया है। चीन ने अब कृषि क्षेत्र में ‘प्रदर्शन परियोजनाओं’ के उद्देश्य से कई हजार एकड़ पाकिस्तानी भूमि का स्वामित्व प्राप्त कर लिया है।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग देश में बढ़ते खाद्य संकट के बारे में चिंतित हैं। भोजन की बरबादी रोकने के लिए अभियान चलाने के बाद शी जिनपिंग अब इस संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञों से विचार मांग रहे हैं। शीर्ष वैज्ञानिकों और व्यापारियों के साथ हाल ही में एक संगोष्ठी में जिनपिंग ने संभावित तरीकों पर चर्चा की और इसके लिए विदेशों पर निर्भरता कम करने के लिए विचार मांगे।

भारत, ताइवान, जापान और आसियान देशों के प्रति चीन का आक्रामक व्यवहार आर्थिक संकट पर चीनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए है। दिलचस्प बात यह है कि चीन कृषि पर अपने स्वयं के आंकड़ों के विपरीत, यह दावा करता है कि महामारी के बावजूद इसकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ चुकी है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि चीन प्रचार के उद्देश्य से आर्थिक आंकड़ों में हेरफेर कर रहा है।

 

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