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तालिबानी अफगानिस्तान के साथ चीन का खड़ा होना इसलिए है जरूरी, जानें BRI प्रोजेक्‍ट क्‍यों है महत्‍वपूर्ण

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) अब अपनी सरकार का ऐलान किसी भी वक्त कर सकता है. इस बीच दुनियाभर में तालिबान(Taliban) को सबसे ज्यादा उम्मीदें चीन (China) से हैं. यह बात तालिबान के प्रवक्ता (Taliban Spokeperson) ने अब खुलकर कह दी है. तालिबान(Taliban) को देश चलाने के लिए पैसे की जरूरत है वो उसे चीन(China) से मिलने की उम्मीद है. लेकिन चीन (China) की निगाहें अरबों डॉलर के अपने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव’ Belt And Road Initiative (BRI) प्रोजेक्ट पर लगी हुई हैं.
इस प्रोजेक्ट के सहारे चीन अपने सड़क, रेल और जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया को जोड़ना चाहता है. BRI के तहत पहला रूट जिसे चीन से शुरू होकर रूस और ईरान होते हुए इराक तक ले जाने की योजना है, इसके लिए अफगानिस्तान की मदद की जरूरत है. यही वजह है कि चीन अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहता है जो उसके अनुसार काम करे. इसी क्रम में चीन शुरुआत से तालिबान के साथ खड़ा नजर आ रहा है.


BRI प्रोजेक्ट पर चीन का बयान
चीन ने शुक्रवार को कहा कि BRI प्रोजेक्ट को तालिबान सपोर्ट कर रहा है और इसे अपने देश के लिए अच्छे रूप में देखता है. चीन ने कहा- तालिबान मानता है कि BRI प्रोजेक्ट के जरिए देश में समृद्धि आएगी और टूटी हुई अर्थव्यवस्था फिर से मजबूत हो सकेगी.

शी जिनपिंग का महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) ने साल 2013 में की थी. भारत शुरुआत से इस प्रोजेक्ट का विरोध करता रहा है क्योंकि इसी के तहत CPEC प्रोजेक्ट भी आता है, जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरेगा. भारत कहता रहा है कि पाक अधिकृत कश्मीर उसका अविभाज्य हिस्सा है जिस पर पाकिस्तान का कब्जा है.
सीपेक में चीन ने पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान को भी शामिल किया था लेकिन अब तक अमेरिकी प्रभाव के कारण काम तेजी से आगे नहीं बढ़ पाया. अशरफ गनी सरकार से चीन को बहुत मदद नहीं मिल रही थी. अब अफगानिस्तान में ऐसी सरकार आ चुकी है जिसे चीन की जरूरत है क्योंकि पश्चिमी देश उसकी मदद के लिए तैयार नहीं हैं.

भारत के लिए क्यों चिंता वाली बात
ऐसी स्थिति में चीन अगर अपने महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर दोबारा तेजी से काम शुरू करता है तो भारत के लिए चिंताजनक बात होगी. इसका कारण ये है कि अब न सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर बल्कि अफगानिस्तान में भी चीनी पैठ मजबूत होगी. भारत तालिबान के मसले पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्ट में ये कहा जा चुका है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. अगर भविष्य में ये ग्रुप अपनी ट्रेनिंग की व्यवस्था और बेस अफगानिस्तान तक फैला लेते हैं, तब वो काफी खतरनाक बन सकते हैं.
इस्लामिक चरमपंथ के नाम पर तालिबान इन संगठनों को पैसा और ट्रेनिंग मुहैया करा सकता है. भारत को अस्थिर करने की बात आएगी तो ड्रैगन की तरफ से फंडिंग की शायद ही कमी होने दी जाए.

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