इंदौर न्यूज़ (Indore News)

आओ चुने शहर सरकार, नेताओं की तो खूब सुन ली, आज करो मन की

अग्निबाण विश्लेषण… इंदौर एक सेल्फमेड सिटी… निगम के खाते में उपलब्धियां तो अपार, मगर जनता को अभी भी कई मूलभूत सुविधाओं की है दरकार
इंदौर, राजेश ज्वेल।
एकाएक टपक पड़े पंचायत (Panchayat) और नगरीय निकायों (Urban Bodies) के चुनावों (Elections) के लिए हालांकि दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस (Congress) और भाजपा (BJP) तैयार नहीं थे और यह पहला मौका है जब भर बरसात यानी मानसून सीजन (Monsoon Season) में चुनाव हो रहे हैं। कल ही साढ़े 3 इंच से अधिक हुई बारिश ( Rain) ने भाजपाइयों की नींद उड़ा दी। शहरभर में जो अफरा-तफरी मची उसके बाद सोशल मीडिया (Social Media) पर विकास कार्यों की पोल खोलने वाले धड़ाधड़ संदेश प्रसारित किए जाने लगे। गनीमत रही कि बारिश दोपहर बाद थम गई और आज सुबह मतदान दिवस (Polling Day) पर भी धूप निकल आई। वैसे भी देश का बड़ा आम चुनाव हो या प्रदेश सरकार बनाने के विधानसभा के चुनाव, 90 फीसदी से अधिक जनता की तमाम उम्मीदवारों से ये ही गुहार रहती है कि सडक़, बिजली, पानी, ड्रैनेज जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाए। यही कारण है कि सांसद से लेकर विधायक का चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों को इन समस्याओं से जुड़े सवालों का सामना हर चुनाव में करना पड़ता है। जबकि हकीकत में ये सारी समस्याएं शहर सरकार के चुनाव के वक्त कही या सुनी जानी चाहिए। आज उसी शहर सरकार को चुनने का वक्त आ गया है, जब शहर के प्रथम पुरुष महापौर (Mayor) से लेकर गली-मोहल्ले के जनप्रतिनिधि यानी पार्षदों का चयन करना है। बीते 20 सालों से अनवरत इंदौर निगम पर भाजपा का एकतरफा कब्जा रहा है और इसमें कोई शक नहीं कि निगम के खाते में स्वच्छता से लेकर उपलब्धियां भी अपार है। बावजूद इसके इंदौर की जनता को अभी भी मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। वैसे तो तुकोजीराव होल्कर का यह शहर सेल्फ मेड सिटी रहा है, जिसमें सरकारों का योगदान कम ही रहा और निजी उद्यमियों ने इस शहर को अधिक विकसित किया।


शहर, प्रदेश या देश की अधिकांश जनता चुनावों में अपनी सामान्य समस्याओं का ही दु:खड़ा जनप्रतिनिधियों को सुनाती है और हमारे तमाम नेता उन्हें सब्जबाग दिखाते हुए वोट मांगते रहे हैं। अब तो राजनीति में जाति और धर्म का जबरदस्त घालमेल हो गया है और बीते तमाम चुनाव धर्म को हथियार बनाकर ही लड़े और जीते जा रहे हैं। वरना क्या कारण है कि उदयपुर की घटना का असर इंदौर निगम के चुनाव पर पड़ता या बताया जाता हो या इसे भी भुनाने के प्रयास किए गए। मतदान रूपी यज्ञ में सभी को अपनी आहुति देना चाहिए। हालांकि चुनाव आयोग ने एक नोटा का हथियार भी थमा रखा है, उसका भी इस्तेमाल कई पढ़े-लिखे या सरकारों से ठगाए मतदाता अपना आक्रोश निकालने के लिए करते रहे हैं। शहर सरकार यानी इंदौर की जनता के लिए चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के चयन का आज एक और मौका हाथ लगा है। कोरोना और राजनीतिक उठापटक, तख्तापलट के चलते नगर निगम के चुनाव टलते रहे और लगभग सवा दो साल का समय प्रशासक काल के रूप में गुजरा। हालांकि यह बात भी सत्य है कि जो जनप्रतिनिधि अभी वोट मांगते वक्त ईमानदारी, सूचिता और सेवा का दावा कर रहे हैं वह चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले अपना घर भरेंगे। यही कारण है कि अदना सा पार्षद भी साइकिल से चंद महीनों बाद ही चमचमाती एसयूवी में घूमने लगता है। वार्ड में होने वाले हर कार्य में उसका प्रतिशत जहां ठेकेदारों से फीक्स रहता है, वहीं किसी भी बिल्डिंग का गड्ढा खोदने से पहले बिल्डर-कालोनाइजरों को चमकाने भी पहुंच जाते हैं। वरना और कोई कारण नहीं कि इंदौर अनियोजित विकास की पीड़ा इसीलिए भोग रहा है। मास्टर प्लान का कागजी अमल अधिक और मैदानी कम हुआ, क्योंकि हर मामले में नेतागिरी हावी रही। ठेले, गुमटी, नक्शे मंजूर करवाने या ठेकेदारों के साथ सेटिंग जैसे काम निगम से जुड़े नेताओं और उनके पट्ठों के प्रमुख रहे हैं। हालांकि दरोगाओं से लेकर निगम के अफसर, इंजीनियर भी कम भ्रष्ट नहीं हैं। यानी लूट के मामले में सबकी बराबरी की हिस्सेदारी है और सवा दो साल से ये हिस्सेदारी नहीं हो पा रही थी, लेकिन चुनाव जीतते ही पार्षदों की बंद पड़ी दुकानों के शटर खुल जाएंगे और जो माल अभी खर्च किया उससे कई गुना 5 साल में कमाकर गच्च हो जाएंगे। अब तो निगम का बजट भी 7 हजार करोड़ पार पहुंच चुका है और राज्य, केन्द्र तमाम योजनाओं का भी करोड़ों रुपया मिलने लगा। 5 बार स्वच्छता का तमगा हासिल करने वाले इंदौर का नाम देश और दुनिया में मकबूल हो गया है, लेकिन रैंगते यातायात, भीषण पार्किंग समस्या से लेकर जल जमाव, ड्रैनेज, पीने के पानी से लेकर अच्छी सडक़ों, बिजली से लेकर तमाम मूलभूत सुविधाओं की अभी भी दरकार है। चुनाव प्रचार के दौरान महापौर से लेकर पार्षद प्रत्याशियों ने आसमान से चांद-सितारे तोड़ लाने जैसे वायदे भरपूर किए हैं। अब मतदाता अपने विवेक का इस्तेमाल करें और योग्य प्रत्याशी का चयन करते हुए मतदान के लिए अवश्य घर से निकलें। बारिश हो या आंधी-तूफान लोकतंत्र के लिए अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल निहायत ही जरूरी है, ताकि एक जवाबदेही खुद की भी तय हो सके और जिसे चुना है उससे वादाखिलाफी होने पर सवाल पूछे जा सकें, तो अब देर किस बात की, उठिये और निकलिए, वैसे भी सरकार ने आज छुट्टी दे ही रखी है। सुबह से हालांकि कई जागरूक मतदाता पहली फुर्सत में अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर आए हैं और ऊंगली पर लगी अमिट स्याही का सोशल मीडिया पर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ प्रशासन से लेकर तमाम सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक संगठनों ने भी आज अधिक से अधिक मतदान करने की अपीलें जारी की है। लिगाजा सोचिए मत और अभी तक वोट नहीं दिया है तो फटाफट अपने नजदीक केन्द्र जाइए और मताधिकार का इस्तेमाल कीजिए।

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