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चीन से तकनीकी सहयोग रोकने के अमेरिकी फरमान को नहीं मान रही हैं कंपनियां, इस दिशा में बढ़ाए कदम

नई दिल्ली। चीन के साथ हाई टेक में पश्चिमी देशों की कंपनियों का सहयोग रोकने की अमेरिका की कोशिश कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। अमेरिका ने हाल में पारित अपने एक कानून के तहत ऐसी कंपनियों को सब्सिडी से वंचित करने का प्रावधान किया है, जो चीन में कारोबार करेंगी। इसके बावजूद हाई टेक क्षेत्र की दो कंपनियों- बीएएसएफ और एबीबी ने इस हफ्ते चीन में दो बड़े संयंत्र चालू की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।

जर्मनी की कंपनी बीएएसएफ ने चीन के झानजियांग में अपना नया औद्योगिक परिसर शुरू किया है। उधर स्वीडन की कंपनी एबीबी ने शंघाई में आधुनिक रोबोटिक्स फैक्टरी लगाई है। बीएएसएफ ने छह सितंबर को बताया कि झानजियांग में शुरू हुए उसके परिसर में हर साल 60 हजार मिट्रिक टन इंजीनयरिंग प्लास्टिक का उत्पादन होगा। इसकी सप्लाई मुख्य रूप से चीन के ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक कारखानों को की जाएगी।

इसके पहले दो सितंबर को चीन के अखबार चाइना डेली ने खबर दी थी कि एबीबी की रोबोटिक्स फैक्टरी शंघाई में बन कर लगभग तैयार हो गई है। इससे कुछ महीनों के अंदर ही उत्पादन शुरू हो जाएगा। अखबार ने एबीबी के रोबोटिक्स एंड डिस्क्रीट ऑटोमेशन बिजनेस के प्रमुख समी अतिया के हवाले से बताया कि 15 करोड़ यूरो की लागत से बनी इस फैक्टरी में रोबोट्स ही रोबोट का निर्माण करेंगे। एबीबी का मुख्यालय ज्यूरिख में है। उसे प्रोसेस ऑटोमेशन, मोटर पॉवर ट्रांसमिशन उत्पादों और विद्युतीकरण के क्षेत्र में दुनिया की अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनी माना जाता है।

एबीबी के कारखाने को चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना में तय लक्ष्यों के अनुरूप बताया गया है। इस योजना में साल 2025 तक चीन को रोबोटिक्स का वैश्विक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है। चीन रोबोटिक्स के कई औद्योगिक क्लस्टर बनाने में जुटा है, जिससे इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका प्रभाव बढ़ सके।


गौरतलब है कि इस साल जुलाई में फ्रांस की कंपनी एयरबस ने पुष्टि की थी कि उसे चीन के एयरलाइन्स- चाइना ईस्टर्न, चाइना सदर्न और शेनझेन एयरलाइंस से 292 ए-320 विमानों की सप्लाई का ऑर्डर मिला है। चाइना सदर्न एयरलाइन्स ने इसके पहले मई में अमेरिकी कंपनी बोइंग को दिए 100 विमानों के ऑर्डर को कैंसिल कर दिया था। इसे अमेरिका के साथ चीन के बढ़ रहे तनाव का नतीजा बताया गया था। लेकिन फ्रांस की कंपनी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने चीन के ऑर्डर स्वीकार कर लिए।

चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस घटना पर अपनी टिप्पणी में लिखा था- ‘जो देश बार-बार संबंध तोड़ने की बात करता हो, जो प्रतिबंधों की तलवार लटकाए रखता हो और व्यापार को सीमित करने के लिए अक्सर विधेयक पारित करता हो, उसके साथ कौन-सा देश आश्वस्त रहते हुए कारोबार कर सकता है?’

विश्लेषकों का कहना है कि अब दो और पश्चिमी कंपनियों ने अमेरिकी प्रतिबंध की परवाह नहीं की है। इससे चीन का हौसला बढ़ेगा। वेबसाइट एशिया टाइम्स ने अपनी एक टिप्पणी में लिखा है- ‘यूरोपीय अधिकारी एक तरफ चीन से संपर्कों पर पुनर्विचार करने की अपनी इच्छा और दूसरी तरफ कंपनियों की चीनी बाजार से होने वाले फायदे पर नजर के कारण असमंजस में फंसे दिखते हैँ।’ इस टिप्पणी में कहा गया है कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के हानिकारक अनुभव के कारण भी चीन के प्रति उनकी सख्ती कमजोर पड़ रही है।

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