खरी-खरी

मुकाबला मोदी से… और कांग्रेस के पास मच्छर तक नहीं

वक्त हर किसी का आता है…जो शिखर पर हो वो जमीन पर आता है… ताकि वक्त की ताकत और इंसान की हिमाकत का फैसला हो सके…यह वही कांग्रेस है, जिसके नाम में आजादी की जंग, विकास का रंग और विश्वास का संग था…साठ साल की अद्भुत सत्ता में कहीं गांधी, नेहरू और शास्त्रीजी के नामों की श्रद्धा शुमार रही तो कहीं इंदिराजी का शौर्य, पराक्रम और तेजस्विता की कहानी बसी… लेकिन बस वक्त यहां ठहर गया… आतंकी बेअंतसिंह की गोली ने इंदिराजी का ही अंत नहीं किया, उसने कांग्रेस की भी जान ले ली…इंदिराजी के शून्य के बाद शुरू हुई राजीव की अनुभवहीनता, गठबंधन सरकार की निरंकुशता और भ्रष्टाचार की सुगमता… देश बस चल रहा था… मनमोहन काबिल थे, लेकिन कांग्रेस बैसाखी पर थी… यह बैसाखी न केवल गठबंधन के दलों की थी, बल्कि कांग्रेस के ही शातिर नेताओं की भी थी…लिहाजा कांग्रेस की रुखसती तय थी…पर इस कदर…भाजपा की चकाचौंध में व्यक्तित्व की सूरत बने नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की सत्ता पर इस तरह ग्रहण लगाया कि सोनियाजी अस्तांचल में चली गईं…उनके नवाबजादे राहुल गांधी अमित शाह जैसे धुरंधर के चक्रव्यूह में फंसकर मैदान छोड़ गए और लावारिस हुई कांग्रेस अपने आका की तलाश में भटकने पर मजबूर हो गई… कोई उसका दामन थामना ही नहीं चाहता…या यूं कहें कि कोई काबिल ही नहीं बचा… अवसरवादी नेता अपने मुकम्मिल मुकाम को छोडऩा नहीं चाहते… अब वो चाहे कमलनाथ हों जो मध्यप्रदेश की प्रतिबद्धता से जुडक़र भीष्म बनना चाहते हों, तो अशोक गहलोत कमाऊ राजस्थान को छोडक़र घाटे की दुकान बनी कांग्रेस से दूर रहना चाहते हों… अब जो कहीं के नहीं हैं वो कहीं भी रहकर अपना नाम जिंदा रखने की तलाश में मुर्दा कांग्रेस के मुखिया बनने के लिए हिलोरे मार रहे हैं… अब उनमें शशि थरूर हों, मल्लिकार्जुन खडग़े हों या दिग्विजयसिंहजी… हकीकत यह है कि मुकाबला मोदी से है और कांग्रेस के पास मच्छर तक नहीं है…दावेदारों में कुछ उम्र की ढलान पर हैं तो कुछ व्यक्तित्व की… देश का संकट यह है कि हमारे पास मजबूत विपक्ष के बजाय ऐसा मजबूर विपक्ष है, जो सपना तो देश संभालने का देखता है, लेकिन खुद को संभालने के लिए एक काबिल नेता नहीं ढूंढ पाता है…कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि गरीब की जोरू को हर कोई भाभी बना रहा है और भाभी की तस्वीर पर माला चढ़ा रहा है…

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