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इंदौर में सम्मानजनक हार के उम्मीदवार की ढुंढाई में जुटी कांग्रेस… एक खुटका ये भी कि कहीं घोषित को ही न ले उड़े भाजपा

  • प्रदेश में कल से 6 सीटों पर नामांकन की प्रक्रिया हो रही है शुरू और दूसरी तरफ इंदौर सहित 18 सीटों पर नहीं मिल रहे ढंग-ढांग के उम्मीदवार

इंदौर। कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है। एक तरफ उसके नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकालते हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस छोड़ो का सिलसिला तेज हो जाता है। देशभर से कांग्रेस के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं, जिससे मध्यप्रदेश और इंदौर भी अछूता नहीं रहा। पिछले दिनों ही इंदौर के पूर्व विधायक विशाल पटेल, संजय शुक्ला सहित अन्य ने भाजपा का भगवा दुपट्टा ओड़ लिया। अब कांग्रेस के सामने चुनौती यह है कि वह ऐसा उम्मीदवार खड़ा करे जो सम्मानजनक तरीके सेहार सके, क्योंकि जीत की संभावना तो दूर-दूर तक है भी नहीं। वहीं एक खुटका कांग्रेस को यह भी है कि वह जिले प्रत्याशी घोषित करेगी उसे कहीं भाजपा ना ले उड़े।

इंदौर के साथ-साथ यह अंदेशा प्रदेश की अन्य सीटों पर भी है। अभी कांग्रेस को 18 उम्मीदवारों की घोषणा बची सीटों पर करनी है। 10 उम्मीदवार वह पहली सूची में घोषित कर चुकी है। प्रदेश की सभी 29 सीटों पर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। पिछले दिनों जिन सीटों को होल्ड पर रखा गया था उनमें इंदौर भी शामिल रहा। मगर यहां से भी वर्तमान सांसद शंकर लालवानी पर ही भाजपा नेतृत्व पर फिर से भरोसा जताया। श्री लालवानी के मुताबिक भी वे प्रदेश से लेकर केन्द्रीय नेतृत्व के हर पैमाने और कसौटी पर खरे साबित हुए हैं और उनके खिलाफ ना तो कोई शिकायत है और ना ही किसी तरह का कोई आरोप लगा। बल्कि विकास से लेकर अन्य तमाम मामलों में वे निरंतर 5 साल तक जागरूक रहे और केन्द्र और राज्य शासन की योजनाओं का लाभ भी जनता तक पहुंचाया और सडक़ों-फ्लायओवरों, मेट्र ो से लेकर तमाम विकास से जुड़े प्रोजेक्टों में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।


लालवानी ने पिछला लोकसभा चुनाव लगभग साढ़े 5 लाख वोट से जीता था और इस बार उनको उम्मीद है कि 8 लाख से अधिक मतों से जीत होगी और पिछली बार की तरह इस बार भी जीत का नया रिकॉर्ड बनेगा। वहीं कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि उसके सारे दमदार उम्मीदवार लोकसभा के ही सारे चुनाव हार चुके हैं और जो चुनाव लडऩे योग्य थे वे अब भाजपा में चले गए। लिहाजा अक्षय बम से लेकर उन उम्मीदवारों के नाम चल रहे हैं जिन्हें विधानसभा की टिकट नहीं मिली। मगर चुनाव लडक़र कम से कम शहर के नेतातो कहला ही सकते हैं, जिसमें अरविन्द बागड़ी सहित कई अन्य नाम भी हैं। दरअसल इंदौर पूरी तरह भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुका है। लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस पिछले 40 सालों से हार रही है। वहीं अभी विधानसभा चुनाव में भी सभी 9 सीटें भाजपा ने जीत ली और कांग्रेस के हाथ सिर्फ शून्य ही लगा। ऐसे में लोकसभा चुनाव किसी कांग्रेस उम्मीदवार के लिए जीतना दूर की कौड़ी है। अब तो सारे ठियों पर चर्चा इसी बात की होती है कि हार और जीत का अंतर कितना रहेगा और क्या कांग्रेस ऐसा उम्मीदवार दे सकती है जो हार के अंतर को घटा सके, क्योंकि पिछली बार भी साढ़े 5 लाख मतों से हार हुई थी और इस बार तो यह आंकड़ा बढऩे की संभावना ही अधिक है। अब देखना यह है कि कांग्रेस किसे बलि का बकरा बनाती है।

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