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कोरोना पर विजय में भारत की ‘संजीवनी’

– आर.के. सिन्हा

कोरोना जैसी भयंकर महामारी पर विजय पाने की दिशा में भारत ने दुनिया को मानो संजीवनी बूटी ही दे दी है। निश्चित रूप से भारत पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन चुका है। हमारे देश में बनी वैक्सीन दुनिया के कई देशों में जा रही है। यही वजह है कि आज दुनिया के तमाम बड़े देश भारत के इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं। कोरोना की सफल वैक्सीन ईजाद करके भारत ने सिद्ध कर दिया है कि मानव जाति की सेवा के लिए भारत सदैव प्रतिबद्ध है। हालांकि इस वैक्सीन को लेकर कुछ आशंकाएँ और संदेह भी जाहिर किए जा रहे थे, जो ऐसी किसी भी स्थिति में स्वाभाविक ही माने जायेंगे।

वैक्सीन को लेकर उठने वाली आशंकाओं, अफवाहों और भ्रमों को दूर करने के लिए दिल्ली स्थित एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने पहले खुद कोरोना वैक्सीन की डोज ली। यह कोई सामान्य बात नहीं है। भारत में कोरोना के खिलाफ टीकाकरण की शुरुआत की दिशा में यह बड़ा कदम था। दिल्ली एम्स के एक सैनिटेशन कर्मचारी को कोरोना का पहला टीका लगाया गया। डॉ. गुलेरिया कोरोना वैक्सीन लेने वाले तीसरे व्यक्ति बने। डॉ. गुलेरिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की मौजूदगी में वैक्सीन लगवाई। गुलेरिया साहब देश के टॉप चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि डॉ. गुलेरिया की पहल से देशभर में भारतीय वैक्सीन को लेकर विश्वास पैदा हुआ। अब तो गणतंत्र दिवस तक देशभर में लगभग बीस लाख लोग बिना किसी ज्यादा परेशानी वैक्सीन ले चुके होंगे।


बेशक, कोरोना वायरस ने दुनिया के हरेक इंसान की आंखों से आंसू निकलवा दिए। सारी दुनिया इस जानलेवा वायरस से बचने के लिए घरों के अंदर छिप गई थी। पृथ्वी पर मौजूद हरेक धर्म, जाति, रंग, लिंग से संबंधित मनुष्य की ये ही ईश्वर से प्रार्थना थी कि कोरोना वायरस की कोई वैक्सीन ईजाद हो जाए ताकि दुनिया फिर से अपनी गति से चलने लगे। कोरोना वायरस को लेकर कहीं भी टीका ईजाद होता तो मानव जाति के लिए राहत की बात होती। पर हरेक भारतीय इस बात पर गर्व कर सकता है कि भारत में भी कोरोना वायरस का एक प्रभावी टीका ईजाद कर लिया गया। ये भारत के वैज्ञानिकों की वास्तव में बड़ी खास उपलब्धि है। जैसे ही कोरोना के कारण मौतें बढ़ने लगीं, भारत में इसका टीका ईजाद करने की मुहिम चालू हो गई थी। एम्स और चडीगढ़ के पीजीआई में कोरोना की वैक्सीन पर काम चालू हो गया था। दिन-रात की मेहनत के बावजूद अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही थी। कोरोना वायरस की वैक्सीन ईजाद करके हमारे वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया कि उनकी असाधारण क्षमताओं पर अनावश्यक संदेह सही नहीं होगा।

अमेरिका और ब्राजील के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की तारीफ की है कि भारत कोरोना की वैक्सीन दुनिया को दे सका। इससे पहले ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने तो भारत में बनी वैक्सीन को ‘संजीवनी बूटी’ बताते हुए भारत को धन्यवाद दिया था। बोलसोनारो ने अपने ट्वीट में भगवान हनुमान की संजीवनी बूटी ले जाते तस्वीर भी शेयर की थी। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस मुश्किल वक्त में साथ देने के लिए आभार व्यक्त किया। ब्राजील में कोरोना वैक्सीन पहुंचने के बाद बोलसोनारो ने कहा, “कोरोना के खिलाफ इस जंग को लड़ने में ब्राजील की मदद के लिये हम भारत का आभार व्यक्त करते हैं।

ब्राजील अकेला देश नहीं जिसकी भारत ने मदद की हो। भारत लगातार अपने कई मित्र देशों की मदद में जुटा है। भारत ने विगत 22 जनवरी को कोविशील्ड की 1.417 करोड़ डोज भूटान, मालदीव, बांगलादेश, नेपाल, म्यामांर और सेशेल्स पहुंचाई है।

देखिए, भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया है। यह तो उस अंत की शुरुआत है जहां तक कोरोना महामारी का संबंध है। डॉ. गुलेरिया की बात में दम है कि भारतीय टीका पूर्णतः सुरक्षित है। यह प्रभावोत्पादक भी है। हालांकि कुछ विक्षिप्त तत्व इसपर भी शक कर रहे हैं। हमें अपने शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और नियामक अधिकारियों में विश्वास होना चाहिए। भारत के अलावा दुनिया में दर्जनों जगहों पर कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा था। पिछली एक सदी के दौरान दुनिया में जब कोई संकट आया तो अमेरिकी वैज्ञानिक ही सबसे आगे खड़े मिले। यानी वह संकट का मुकाबला करने वालों में अहम रोल निभा रहा था। अमेरिका में कोरोना की वैक्सीन खोजने के लिए शोध चल रहा है। पर इससे पहले भारत में कोरोना का टीका खोज लिया गया है। वैसे कई अन्य देशों के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे भी कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी टीका देर-सबेर खोज ही लेंगे। कई देशों में अभी क्लीनिकल ट्रायल ही चल रहा है।

अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत की प्रशंसा कर रहा है। इसी संगठन की तरफ से अबतक कहा जा रहा था कि कोरोना वैक्सीन के आने में अभी डेढ़ साल तक लग सकता है। उसकी तरफ से यह दावा कौन और किस आधार पर कर रहा है, इसकी जानकारी उसकी तरफ से नहीं मिली। उन्हें भी अपनी कार्यशैली में सुधार करना होगा।

एक बात समझ लीजिए कि भले वैक्सीन आ गई है, पर इसका मतलब ये नहीं है कि हम घर से बाहर निकलते हुए मुंह पर मास्क लगाना बंद कर दें। हमें सोशल डिस्टेनसिंग का भी हर सूरत में पालन जारी रखना होगा। सदा याद रखिये- “दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी।” दुर्भाग्यवश अब भी शहरों तक में तमाम पढ़े-लिखे लोग इन छोटी-छोटी बातों पर भी गौर नहीं कर रहे हैं। हाल ही में दिल्ली, मुंबई, मेरठ और चंडीगढ़ में अपने काम के सिलसिले में गया। यह देखकर निराशा हुई कि कुछ लोग मास्क लगाए बिना सड़कों पर घूम रहे हैं। ये लापरवाही सही नहीं है। भारत में कोरोना के फैलाव में हमारी लापरवाही की भी भूमिका रही थी। ये तो बंद होनी चाहिए। वैक्सीन आने का मतलब ये नहीं है कि हम पहले वाली स्थितियों में लौट जाएं। जब डॉक्टर कहेंगे तो हम पुराना लाइफ स्टाइल अपना लें तो कोई हर्ज नहीं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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